क्या भारत ईरान-इजराइल युद्ध के बावजूद दोनों के साथ मजबूत संबंध बनाए रख सकता है?

संदीपसिंह सिसोदिया
सोमवार, 16 जून 2025 (14:16 IST)
Iran Israel war and Indian foreign policy: ईरान, एक प्राचीन सभ्यता और मध्य पूर्व का एक महत्वपूर्ण देश, भारत के लिए केवल एक भू-राजनीतिक साझेदार नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक, आर्थिक और सामरिक दृष्टिकोण से भी अपरिहार्य है। भारत और ईरान के बीच ऐतिहासिक संबंध हजारों वर्ष पुराने हैं, जो सांस्कृतिक आदान-प्रदान, व्यापार और रणनीतिक सहयोग पर आधारित हैं। आज के वैश्विक परिदृश्य में, ईरान का अस्तित्व और स्थिरता भारत के लिए कई कारणों से महत्वपूर्ण है। दूसरी ओर, इजराइल के साथ भारत के बढ़ते दोस्ताना संबंध भी रक्षा, प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण हैं। इन दोनों देशों —ईरान और इजराइल— के साथ संबंध बनाए रखना भारत के लिए एक जटिल धर्मसंकट बन गया है, क्योंकि दोनों के बीच गहरी शत्रुता है। 
 
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जुड़ाव : भारत और ईरान के बीच संबंध प्राचीन काल से चले आ रहे हैं। पारसी धर्म के अनुयायी, जो आज भारत में एक महत्वपूर्ण समुदाय हैं, ईरान से आए थे। इसके अलावा, मुगल काल में फारसी भाषा और संस्कृति ने भारतीय उपमहाद्वीप को गहराई से प्रभावित किया। सूफीवाद और भारतीय भक्ति आंदोलन के बीच भी समानताएं देखी जा सकती हैं, जो दोनों देशों की साझा आध्यात्मिक विरासत को दर्शाती हैं। आज भी, भारत में ईरानी संस्कृति के अवशेष, जैसे कि फारसी साहित्य, वास्तुकला (जैसे ताजमहल में फारसी प्रभाव) और खान-पान में देखे जा सकते हैं। यह सांस्कृतिक जुड़ाव भारत के लिए ईरान को एक महत्वपूर्ण साझेदार बनाता है, जो न केवल अतीत को जोड़ता है, बल्कि भविष्य में भी सांस्कृतिक सहयोग की संभावनाओं को बढ़ाता है।
 
इसके विपरीत, इजराइल के साथ भारत के संबंध अपेक्षाकृत नए हैं, जो मुख्य रूप से 1992 में राजनयिक संबंध स्थापित होने के बाद मजबूत हुए। इजराइल के साथ भारत का जुड़ाव सांस्कृतिक से अधिक प्रौद्योगिकी, रक्षा और कृषि नवाचार पर आधारित है। ALSO READ: ईरान में फंसे 10000 भारतीय, जंग थमने के फिलहाल कोई आसार नहीं
 
आर्थिक महत्व : ऊर्जा और व्यापार के क्षेत्र में ईरान भारत के लिए एक प्रमुख ऊर्जा आपूर्तिकर्ता रहा है। भारत, जो अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है, के लिए ईरान का कच्चा तेल और प्राकृतिक गैस महत्वपूर्ण हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण भारत-ईरान व्यापार में कमी आई है, फिर भी ईरान की भू-स्थानिक स्थिति इसे भारत के लिए महत्वपूर्ण बनाती है।
 
चाबहार बंदरगाह इसका एक प्रमुख उदाहरण है। भारत ने ईरान के चाबहार बंदरगाह के विकास में महत्वपूर्ण निवेश किया है, जो भारत को मध्य एशिया और अफगानिस्तान तक पहुंच प्रदान करता है, बिना पाकिस्तान के रास्ते से गुजरे। यह बंदरगाह न केवल भारत के लिए व्यापारिक मार्ग खोलता है, बल्कि क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को भी बढ़ाता है। उदाहरण के लिए, अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC), जिसमें ईरान एक महत्वपूर्ण कड़ी है, भारत को रूस और यूरोप के साथ जोड़ने में मदद करता है। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के अनुसार, चाबहार बंदरगाह भारत की क्षेत्रीय कनेक्टिविटी रणनीति का एक अभिन्न हिस्सा है। (MEA, 2023)
 
इसके विपरीत, इजराइल भारत के लिए रक्षा उपकरणों, साइबर सुरक्षा, और ड्रिप सिंचाई जैसी प्रौद्योगिकियों का एक प्रमुख स्रोत है। भारत-इजराइल व्यापार 2024 में 10 बिलियन डॉलर को पार कर चुका है, जो इस साझेदारी की आर्थिक मजबूती को दर्शाता है।
 
सामरिक महत्व : मध्य पूर्व में ईरान की स्थिति भारत के सामरिक हितों के लिए महत्वपूर्ण है। ईरान न केवल एक शिया-प्रधान देश है, बल्कि यह क्षेत्र में सऊदी अरब और अन्य सुन्नी-प्रधान देशों के प्रभाव को संतुलित करता है। भारत, जो मध्य पूर्व के सभी देशों के साथ अच्छे संबंध रखता है, के लिए ईरान की स्थिरता क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने में मदद करती है। इसके अलावा, ईरान भारत के लिए अफगानिस्तान में स्थिरता का एक महत्वपूर्ण साझेदार है। दोनों देशों ने मिलकर अफगानिस्तान में कई विकास परियोजनाओं में सहयोग किया है, जो भारत की क्षेत्रीय प्रभाव को बढ़ाता है। ईरान की अनुपस्थिति या अस्थिरता से भारत के अफगानिस्तान में हितों को नुकसान हो सकता है, विशेष रूप से तालिबान के सत्ता में आने के बाद। ALSO READ: इजराइल और ईरान को लेकर को लेकर डोनाल्ड ट्रंप का बड़ा दावा, चली भारत-PAK के साथ वाली चाल
 
इजराइल, दूसरी ओर, भारत के लिए रक्षा और आतंकवाद-रोधी सहयोग में एक महत्वपूर्ण भागीदार है। भारत-इजराइल रक्षा सौदे, जैसे कि बराक-8 मिसाइल सिस्टम और ड्रोन प्रौद्योगिकी, भारत की सुरक्षा को मजबूत करते हैं। हालांकि, इजराइल और ईरान के बीच शत्रुता भारत को एक कठिन स्थिति में डालती है, क्योंकि इजराइल ईरान को अपने लिए सबसे बड़ा खतरा मानता है।
 
क्षेत्रीय संतुलन और सुरक्षा : ईरान, एक शिया-प्रधान देश, मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में सुन्नी-प्रधान इस्लामिक कट्टरपंथी समूहों के खिलाफ एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में उभरा है। ईरान और भारत दोनों ने अफगानिस्तान में तालिबान के प्रभाव को कम करने के लिए सहयोग किया है। 1990 के दशक में, जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया, ईरान ने नॉर्दर्न अलायंस (उत्तरी गठबंधन) का समर्थन किया, जिसमें भारत भी शामिल था। नॉर्दर्न अलायंस ने तालिबान के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
 
ईरान ने अफगानिस्तान में पाकिस्तान के प्रॉक्सी प्रभाव को कम करने में मदद की है, जिससे भारत को अफगानिस्तान में अपनी विकास परियोजनाओं को लागू करने में सहायता मिली। यही नहीं ईरान ने सीरिया और इराक में इस्लामिक स्टेट (ISIS) जैसे सुन्नी चरमपंथी समूहों के खिलाफ सक्रिय रूप से लड़ाई लड़ी है। ईरान समर्थित शिया मिलिशिया, जैसे हिजबुल्लाह और ईरानी रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) ने ISIS (ISIS ने भारत में आतंकी हमलों की धमकी दी है) के खिलाफ महत्वपूर्ण अभियान चलाए हैं। 
 
धर्मसंकट : इजराइल और ईरान के बीच संतुलन
भारत की स्वतंत्र विदेश नीति उसे विभिन्न देशों के साथ संबंध बनाए रखने की अनुमति देती है, लेकिन ईरान और इजराइल के बीच गहरी शत्रुता इस संतुलन को जटिल बनाती है। निम्नलिखित बिंदु इस धर्मसंकट को स्पष्ट करते हैं :
 
अमेरिकी प्रतिबंध और इजराइल का दबाव : ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों ने भारत के लिए ईरान के साथ व्यापार को कठिन बना दिया है। इजराइल, जो अमेरिका का करीबी सहयोगी है, भारत पर दबाव डाल सकता है कि वह ईरान के साथ अपने संबंधों को सीमित करे। फिर भी, भारत ने चाबहार बंदरगाह जैसे प्रोजेक्ट्स में निवेश जारी रखा है, जो उसकी स्वतंत्र नीति को दर्शाता है।
 
 
एक जटिल लेकिन आवश्यक संतुलन : ईरान का अस्तित्व और स्थिरता भारत के लिए ऐतिहासिक, आर्थिक और सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। चाबहार बंदरगाह, अफगानिस्तान में सहयोग, और क्षेत्रीय संतुलन में ईरान की भूमिका भारत के हितों को मजबूत करती है। हालांकि, इजराइल के साथ बढ़ती दोस्ती भारत के लिए एक धर्मसंकट पैदा करती है, क्योंकि दोनों देशों के बीच गहरी शत्रुता है। भारत को अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के तहत इस जटिल संतुलन को बनाए रखना होगा, ताकि वह दोनों देशों के साथ अपने हितों को सुरक्षित रख सके।
 

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