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चीता की मौत के बाद सवालों के घेरे में पालपुर कूनो चीता प्रोजेक्ट, एक्सपर्ट्स ने एक ही स्थान पर चीतों को रखने पर उठाए सवाल

कूनो में क्षमता से दोगुने रख दिए गए चीते, चीतों की बसाहट के लिए दो स्थानों पर रखना जरूरी

हमें फॉलो करें चीता की मौत के बाद सवालों के घेरे में पालपुर कूनो चीता प्रोजेक्ट, एक्सपर्ट्स ने एक ही स्थान पर चीतों को रखने पर उठाए सवाल
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विकास सिंह

, बुधवार, 29 मार्च 2023 (12:40 IST)
भोपाल। 70 साल बाद देश में चीतों को फिर से बसाने के लिए मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के पालपुर कूनो अभ्यारण्य में जोर-शोर से शुरु किए गए चीता प्रोजेक्ट अचानक से सवालों के घेरे में आ गया है। पिछले सितंबर में नमीबिया से लाए गए 8 चीतों में से एक मादा चीता की बीमारी से मौत के बाद पूरे चीता प्रोजेक्ट को लेकर कई तरह के सवाल उठने लगे है। वर्तमान में पालपुर कूनो में नमीबिया के लाए गए जीवित बचे 7 चीतों के साथ इस साल फरवरी में दक्षिण अफ्रीका से लाए गए 12 अन्य चीता भी मौजूद है। वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने चीता टॉस्क फोर्स में शामिल विशेषज्ञों की योग्यता और अनुभवों की जानकारी मांगी है।
 
‘वेबदुनिया’ ने भारत में चीता प्रोजेक्ट में अहम भूमिका निभाने वाले वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून के पूर्व डीन डॉ. वायवी झाला और रिटायर्ड IAS अफसर एमके रंजीत सिंह से बातचीत कर पूरे मामले को समझने की कोशिश की।   
 
कूनो में 20 चीतों को रखना सवालों के घेरे में-पालपुर कूनो में चीता प्रोजेक्ट की पूरी कार्ययोजना तैयार करने वाले मध्यप्रदेश कैडर के 1961 बैच के आईएएस अफसर एमके रंजीत सिंह पालपुर कूनो में चीता साशा की मौत से दुखी होने के साथ निराश और नाराज भी है। ‘वेबदुनिया’ से बातचीत में वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट एमके रंजीत सिंह कहते हैं कि पालपुर कूनो अभ्यारण्य में जिस तरह से 20 चीतों का रख दिया गया वह ही चीतों की सुरक्षा और उनके भविष्य को लेकर सबसे बड़ा सवाल है। 

‘वेबदुनिया’ से बातचीत में एमके रंजीत सिंह कहते हैं कि पालपुर कूनो में इतनी संख्या में चीतों को रखने की कभी योजना ही नहीं थी। वह साफ शब्दों में कहते हैं कि पालपुर कूनो में 8 से अधिक चीतों को नहीं रखा जा सकता। अभी नमीबिया से 7 चीतों को तो छोड़ दिया गया है लेकिन फरवरी जो दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते लाए गए वह कहां छोड़े जाएंगे,यह सबसे बड़ा सवाल है।   
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वहीं भारत में भारत में चीता प्रोजेक्ट से शुरु से जुड़े रहे और वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून के पूर्व डीन डॉ. वायवी झाला कहते हैं कि भारत में चीतों की बसाहट में कभी एक जगह ही सिर्फ चीतों को छोड़ने का कभी प्लान नहीं था और एक ही जगह सभी चीते छोड़ने से चीता बस नहीं जाएंगे। 

चीतों को छोटे बाड़ों और पिजरों रखने पर सवाल?-चीता प्रोजेक्ट से जुड़े रहे वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट रंजीत सिंह कहते हैं कि चीता एक रेसिंग जानवर है जिसको एक बाड़े में नहीं रखा जा सकता। छोटे बाड़ों और पिंजरों में रखने से चीतों के पैर बंध जाते है। वह सवाल उठाते हुए कहते हैं कि कूनों में क्या चीतों को पिंजरों में रखकर क्या सफारी पार्क बनाया जा रहा है? ‘वेबदुनिया’ से बातचीत में एमके रंजीत सिह कहते हैं नौरादेही अभ्यारण और गांधी सागर को चीतों के पुनर्वास के लिए बनाया जा रहा है लेकिन काम बहुत लेट से शुरु हुआ और उसमें अभी सालों लग जाएंगे। ऐसे में सवाल उठाता है कि तब तक चीते क्या पिजरों में रखे जाएंगे।
 
चीतों की ब्रीडिंग पर हो फोकस- वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट रंजीत सिंह कहते हैं कि भारत में चीतों को फिर से बसाने की जो कार्ययोजना थी उसमें चीतों की ब्रीडिंग पर फोकस करना था। चीतों को अब बाहर से लाने की जगह ब्रीडिंग पर फोकस करना चाहिए। बाड़ों में चीतों को रखकर ब्रीडिंग नहीं कराई जा सकती।  वहीं रंजीत सिंह आंशका जताते है कि अब शायद निकट भविष्य में नमीबिया और दक्षिण अफ्रीका से चीता नहीं मिले सके। ऐसे में अब सरकार को ब्रीडिंग पर फोकस करना चाहिए। 
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वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून के पूर्व डीन डॉ. वायवी झाला कहते हैं कि भारत में चीतों को फिर से बसाने के लिए चीतों की संख्या 50 से 60 करनी होगी तब हम मानेंगे कि भारत में लॉर्ग टर्म पर चीतों की बसाहट सफल हो पाएगी। इसलिए हमें गांधी सागर और नौरादेही में चीतों को रखना होगा और उसके लिए जल्दी से जल्दी काम करना जरूरी है।  नौरादेही और गांधी सागर में जो काम शुरु होना था वह अभी नहीं शुरु हुआ है।
 
डॉ वायवी झाला कहते हैं कि बाहर से चीता लाने के साथ-साथ चीतों की ब्रीडिंग पर फोकस करना चाहिए। अच्छी बात यह है कि कूनों में दो मादा चीता ब्रीड हो चुकी है और बच्चे आएंगे। इसके लिए पहले चीतों की संख्या बढ़ानी होगी और सब के सब चीते कूनों में छोड़ने की जगह 4-5 चीते अन्य स्थानों पर छोड़ने होंगे। अगर मुकंदरा या गांधी सागर में चार से पांच चीते चले गए तो अच्छा रहेगा। इससे अगर चीतों में कोई बीमारी फैलती है तो सभी चीतों में समस्या नहीं हो और चीतों पर संकट नहीं आए।

डॉ. वायवी झाला कहते हैं कि हमको चीतों की एक-दो बसाहट बनाना और जरूरी है। वह कहते हैं कि कूनों में चीतों को लेकर सभी सावधानी बरती जा रही है लेकिन बीमारी नहीं होगी इसकी कोई गांरटी नहीं ले सकता। इसलिए चीतों को दो जगह बांटने जरूरी है। चीता प्रोजेक्ट में शुरु से प्लान यहीं था 4 से 5 चीते राजस्थान के मुकंदरा ले जाएंगे, बाकी के 15 चीता कूनों में रखे जाएंगे। ऐसे में सवाल है कि मुकंदरा में चीता रखने के लिए केंद्र सरकार तैयार नहीं है और गांधी सागर तैयार नहीं है, ऐसे में सवाल है कि चीता कहां रखे जाएंगे।  
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मुकंदरा चीतों की ब्रीडिंग के लिए उपयुक्त?- 'वेबदुनिया' से बातचीत में एमके रंजीत सिंह कहते हैं कि  चीतों की ब्रीडिंग के लिए मुकंदरा राष्ट्रीय उद्यान उपयुक्त जगह है और केंद्र सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए। वह कहते हैं कि उनकी अध्यक्षता में 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने जो कमेटी बनाई थी उसने अपनी रिपोर्ट में राजस्थान के मुकंदरा राष्ट्रीय उद्यान को चीता प्रोजेक्ट के लिए उपयुक्त माना था। लेकिन सवाल यह है कि केंद्रीय सरकार इसको क्यों नहीं मान रही है। मुकंदरा में 80 वर्ग किलोमीटर का एरिया है जो चीतों की ब्रीडिंग के लिए उपयुक्त है। 
 
चीता प्रोजेक्ट में अब आगे क्या?-कूनों में एक चीता की मौत के बाद अब अन्य चीतों को लेकर भी सवाल उठने लगे है। वर्तमान में कूनो अभ्यारण्य में नामीबिया से लाए गए बाकी 7 चीता, जिनमें 3 नर और 1 मादा को क्वारेंटाइन पीरियड खत्म होने के बाद अभ्यारण्य में छोड़ा जा चुका है। पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ जेएस चौहान के मुताबिक सभी सात चीते पूरी तरह से स्वस्थ है और वह अपना शिकार खुद कर रहे है। वहीं पिछले दिनों दक्षिण अफ्रीका से लाए गए 12 चीतों को क्वारेंटाइन बाड़ों में रखा गया है जहां उनकी लगातार निगारनी की जा रही है।
 
वहीं वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट एमके रंजीत सिंह कहते हैं कि देश में चीता प्रोजेक्ट की सफलता में अभी बहुत लंबा समय बाकी है। चीता प्रोजेक्ट में आगे हमको सांइटिस्ट और विशेषज्ञों (एक्सपर्ट्स) को लेकर आगे बढ़ना पड़ेगा, ब्यूरोक्रेट के सहारे चीता प्रोजेक्ट सफल नहीं होगा। वहीं वह सवाल उठाते हैं कि अब आगे चीता मिलेगा यह सवाल है, अब आगे यह सबसे बड़ा सवाल है.

साशा की मौत पर सवाल?- कूनो अभ्यारण्य में मादा चीता साशा की मौत के बाद भी कई तरह के सवाल उठ रहे है। सबसे बड़ा सवाल साशा की मेडिकल हिस्ट्री को लेकर है। मध्यप्रदेश पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ जेएस चौहान के मुताबिक पहली बार 22 जनवरी को साशा के बीमार होने पर उसके क्वारेंटाइन कर तीन डॉक्टरों की निगरानी में इलाज शुरु किया गया था। चीता की मेडिकल जांच में खून की जांच में पता चला कि साशा के किडनी में संक्रमण है।
 
जेएस चौहान के मुताबिक जब नामीबिया से चीता कंजर्वेंशन फाउडेंशन से साशा की ट्रीटमेंट हिस्ट्री मांगी गई तो इस बात का पता चला कि नमीबिया में जब 15 अगस्त 2022 को साशा के खून की जांच की गई थी तब उसका क्रिएटिनिन का स्तर 400 से अधिक पाया गया था, जिससे इस बात की पुष्टि हुई कि साशा को गुर्दे की बीमारी भारत आने के पहले से ही थी।
 

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