Hanuman Chalisa

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

Sunday Read: राहुल गांधी बनाम चुनाव आयोग : लोकतंत्र पर सवाल, और 'एटम बम' की चेतावनी

Advertiesment
हमें फॉलो करें Leader of Opposition in Lok Sabha Rahul Gandhi

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, रविवार, 3 अगस्त 2025 (10:10 IST)
Rahul Gandhi allegations on Election Commission: भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े स्तंभों में से एक चुनाव आयोग इन दिनों विपक्षी दलों के हमलों के केंद्र में है। और इस बार हमला न केवल तीखा है बल्कि ऐतिहासिक रूप से अभूतपूर्व भी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी, जिन्हें लंबे समय तक सत्ताधारी दल ने 'अपरिपक्व नेता' की छवि में बांधने की कोशिश की, अब खुले मंचों से चुनाव आयोग को 'मर चुकी संस्था' कह रहे हैं। चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर यह हमला साधारण नहीं। 
 
यह एक ऐसा बयान है जो संविधान, व्यवस्था और जनविश्वास तीनों को चुनौती देता है। यह बहस केवल एक व्यक्ति बनाम संस्था नहीं, बल्कि लोकतंत्र बनाम सत्ता-केन्द्रित राष्ट्रवाद के संघर्ष की नई कथा है। बीते 10 दिनों में तीसरी बार, राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर ऐसा हमला बोला है, जिससे भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की निष्पक्षता पर बहस छिड़ गई है।
 
राहुल गांधी के तीखे आरोप : चुनाव आयोग पर 'मर चुकी संस्था' का ठप्पा
 
राहुल गांधी ने बीते कुछ हफ्तों में कई बार चुनाव आयोग पर हमला बोला है, जिससे भारतीय लोकतंत्र में चुनाव की निष्पक्षता पर बहस तेज हो गई है। 2 अगस्त, 2025 को विज्ञान भवन में दिए अपने बयान में उन्होंने कहा कि भारत का चुनावी सिस्टम मर चुका है। अगर 10-15 सीटों पर धांधली न होती, तो नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बनते। यह बयान सीधे तौर पर चुनाव प्रक्रिया की विश्वसीयता वैधता को चुनौती देता है। इस वाक्य ने एक बार फिर भारतीय लोकतंत्र की सबसे संवेदनशील नस को छू लिया है — चुनाव प्रणाली और उसकी निष्पक्षता को। ALSO READ: लोकसभा चुनाव में धांधली नहीं होती तो मोदी पीएम भी नहीं होते, राहुल ने सीटों का आंकड़ा भी दिया
 
हमारे पास एटम बम है, सियासी धमाका या लोकतंत्र की पुकार?
 
1 अगस्त को राहुल गांधी ने बयान दिया जो समाचार चैनलों की हेडलाइन बन गया: 'हमारे पास एटम बम है। जब फटेगा तो चुनाव आयोग बचेगा नहीं। इस राजनीतिक धमाके का जवाब दिया रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने, जो खुद एक अनुभवी नेता हैं। उन्होंने कहा कि अगर आपके पास परमाणु बम है तो उसे फोड़ दीजिए, लेकिन ध्यान रहे कि आप सुरक्षित रहें।
 
यह संवाद जितना तीखा था, उतना ही प्रतीकात्मक भी, यह सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप नहीं बल्कि संस्थाओं की जवाबदेही और साख पर सीधी बहस थी। यह संवाद दर्शाता है कि भारत में चुनाव अब केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि एक गंभीर राजनीतिक युद्ध का रूप ले चुके हैं।
 
चुनाव आयोग की वैधता पर राहुल गांधी के चार गंभीर आरोप : राहुल गांधी ने चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं, जो इस प्रकार हैं-
  • 2014 की जीत और मतदाता डेटा में अनियमितता : राहुल का दावा है कि भाजपा की 2014 की जीत 'अप्राकृतिक' थी। उन्होंने महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए कहा कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बीच 1 करोड़ नए मतदाता जुड़े, जिनमें से अधिकांश ने भाजपा को वोट दिया।
  • वोटर लिस्ट की अपारदर्शिता और सुरक्षा तंत्र : राहुल ने सवाल उठाया कि चुनाव आयोग द्वारा जारी दस्तावेज़ स्कैन या कॉपी क्यों नहीं किए जा सकते और इसे छिपाया क्यों जा रहा है।
  • संस्था पर कब्ज़ा और निष्क्रियता : उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग अब 'अस्तित्वहीन संस्था' है, जिसे 'खत्म कर कब्ज़ा कर लिया गया है। 
  • सबूतों की घोषणा की धमकी : राहुल गांधी ने चेतावनी दी है कि उनके पास 100% सबूत हैं कि कैसे मतदाता सूची से युवाओं को हटाया गया और फर्जी उम्र वाले वोटर जोड़े गए। 
चुनाव आयोग का रुख : 'निराधार आरोपों' पर तीखी प्रतिक्रिया
राहुल गांधी के बयानों के बाद चुनाव आयोग ने भी चुप्पी तोड़ी है। आयोग ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि वह 'निष्पक्ष और पारदर्शी ढंग से काम करता है' और 'निराधार आरोपों की अनदेखी कर चुनाव प्रक्रिया को साफ और निष्पक्ष रखने के लिए प्रतिबद्ध है'। आयोग का यह रुख दर्शाता है कि वह सार्वजनिक दबाव में झुकने को तैयार नहीं है, लेकिन यह चुप्पी विरोधियों को और आक्रामक बना रही है। ALSO READ: राजनाथ की राहुल को चुनौती, फोड़ दो सबूतों का एटम बम
 
बिहार में 65 लाख वोटर गायब : आंकड़ों से उठते सवाल
बिहार की नई वोटर लिस्ट में 65 लाख मतदाताओं को सूची से हटाए जाने की जानकारी ने विपक्ष के संदेह को और मजबूत किया है। विपक्षी नेताओं ने इसे 'लोकतंत्र की हत्या' बताया है। यदि यह आंकड़ा तकनीकी भूल नहीं है, तो यह भारत के चुनावी तंत्र में एक बड़ी खामी की ओर इशारा करता है, जो मतदाता सूची की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाता है।
 
आरोप बनाम साक्ष्य : किसके पास है नैतिक बल? : लोकतांत्रिक संस्थाओं की आलोचना भारतीय राजनीति में कोई नई बात नहीं है, लेकिन राहुल गांधी के आरोप तीन खास वजहों से अलग हैं-
  • दस्तावेज़ी सबूतों की चेतावनी : ये केवल राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि दस्तावेज़ी सबूत जारी करने की चेतावनी के साथ दिए गए हैं।
  • संस्थाओं पर 'हाईजैक' का आरोप : यह संविधान और संस्थाओं पर सीधा हमला नहीं, बल्कि उन्हें 'हाईजैक' किए जाने का आरोप है, जो अधिक गंभीर प्रकृति का है।
  • अंतरराष्ट्रीय साख पर प्रभाव : ये बयान ऐसे समय में आ रहे हैं जब भारत की लोकतांत्रिक साख पर अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं, जैसे Freedom House और V-Dem Institute, की भी निगाहें टिकी हैं, जिन्होंने भारत को 'Partially Free' करार दिया है।
राहुल गांधी द्वारा चुनाव आयोग की आलोचना इन ऐतिहासिक घटनाओं की पृष्ठभूमि में नई नहीं, लेकिन यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या वे सिर्फ ‘राजनीतिक बयान’ बनकर रह जाते हैं या 'जनांदोलन' की नींव रखते हैं।
 
लोकतंत्र की लड़ाई या सियासी रणनीति? : राहुल गांधी के बयानों को दो नजरों से देखा जा सकता है- एक, वे एक पराजित विपक्ष के नेता हैं, जो चुनावी हार के बाद संस्थाओं पर ठीकरा फोड़ रहे हैं। दूसरा, वे लोकतंत्र को पुनर्जीवित करने की लड़ाई के अग्रदूत बन रहे हैं।
 
जब संस्थाओं पर सवाल उठे, इतिहास क्या कहता है?
  • 1975 - आपातकाल और चुनाव आयोग : प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में, जब 1975 में देश में आपातकाल लगा, तब चुनाव आयोग और प्रेस की स्वतंत्रता दोनों खतरे में थीं। चुनाव आयोग के तत्कालीन प्रमुख एसएल शाकधर की भूमिका पर सवाल उठे थे।
  • 2002 - गुजरात चुनाव और चुनाव आयोग बनाम मोदी सरकार : तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह ने गुजरात विधानसभा चुनावों को स्थगित किया था, यह मानते हुए कि दंगे के बाद वहां 'Level Playing Field' नहीं है। उस समय नरेंद्र मोदी और भाजपा ने इस निर्णय की तीव्र आलोचना की थी।
  • 2009-2024: EVM और वीवीपैट विवाद : भाजपा के सत्ता में आने से पहले और बाद ईवीएम की विश्वसनीयता, मतदाता सूची से नाम गायब होना और VVPAT स्लिप की गणना में पारदर्शिता की कमी बार-बार विपक्षी पार्टियों और स्वतंत्र विशेषज्ञों के निशाने पर रही है।
आगामी हफ्तों में राहुल गांधी और कांग्रेस द्वारा सबूतों का 'बम फटने' का वादा क्या सिर्फ शब्दों का युद्ध होगा या वास्तव में भारत के चुनावी इतिहास का टर्निंग पॉइंट, यही तय करेगा भारत में लोकतंत्र की दिशा।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

उत्तराखंड के चमोली में बड़ा हादसा, जल विद्युत परियोजना स्थल पर हुआ भूस्खलन, 12 मजदूर घायल