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शशि थरूर ने आपातकाल को बताया काला अध्याय, क्या कांग्रेस छोड़ने की है तैयारी?

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वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, गुरुवार, 10 जुलाई 2025 (11:22 IST)
Shashi Tharoor on emergency : कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कांग्रेस को घेरते हुए कहा कि आपातकाल को भारत के इतिहास का महज काला अध्याय नहीं मानना चाहिए, बल्कि इसके सबक को पूरी तरह से समझना जरूरी है। उन्होंने आपातकाल में इंदिरा गांधी और संजय गांधी के कृत्यों को याद किया। थरूर के इस लेख के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या वे कांग्रेस से दूरी बनाकर भाजपा में शामिल होने जा रहे हैं।
 
आपातकाल के 50 वर्ष पूरे होने पर एक मलयालम अखबार में प्रकाशित लेख में थरूर ने 25 जून 1975 और 21 मार्च 1977 के बीच प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा घोषित आपातकाल के काले युग को याद किया। उन्होंने कहा कि अनुशासन और व्यवस्था के लिए किए गए प्रयास अक्सर क्रूरता के कृत्यों में बदल जाते थे, जिन्हें उचित नहीं ठहराया जा सकता था।
 
उन्होंने कहा कि आपातकाल के समय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छिन ली गई थी। इस वजह से लोगों को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। उस समय जबरन नसबंदी अभियान चलाया गया था।  
 
तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस सांसद ने लिखा कि इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी ने जबरन नसबंदी अभियान चलाया जो इसका एक संगीन उदाहरण बन गया। पिछड़े ग्रामीण इलाकों में मनमाने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हिंसा और बल का इस्तेमाल किया गया। नई दिल्ली जैसे शहरों में झुग्गियों को बेरहमी से ध्वस्त कर उनका सफाया कर दिया गया। हजारों लोग बेघर हो गए। उनके कल्याण पर ध्यान नहीं दिया गया।
 
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे हल्के में लिया जाए, यह एक अनमोल विरासत है जिसे निरंतर पोषित और संरक्षित किया जाना चाहिए।
 
मोदी सरकार की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि आज का भारत 1975 का भारत नहीं है। हम ज्यादा आत्मविश्वासी, ज्यादा विकसित और कई मायनों में ज्यादा मजबूत लोकतंत्र हैं। फिर भी, आपातकाल के सबक चिंताजनक रूप से प्रासंगिक बने हुए हैं। सत्ता को केंद्रीकृत करने, असहमति को दबाने और संवैधानिक रक्षात्मक उपायों को दरकिनार करने की प्रवृत्ति विभिन्न रूपों में फिर से उभर सकती है।

गौरतलब है कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद मोदी सरकार के प्रतिनिधिमंडल में शामिल होकर विदेश यात्रा पर गए थरुर के कांग्रेस नेताओं से मतभेद बढ़ते ही जा रहे हैं। थरूर ने अंग्रेजी दैनिक ‘द हिंदू’ के लिए 24 जून को लिखे एक लेख में कहा था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ऊर्जा, उनका बहुआयामी व्यक्तित्व और संवाद की तत्परता वैश्विक मंच पर भारत के लिए एक ‘अहम पूंजी’ बनी हुई है, लेकिन इसे अधिक सहयोग एवं समर्थन की जरूरत है। 
edited by : Nrapendra Gupta 

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