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भारत में करोड़ों लोग करते हैं पृथ्वी के संसाधनों का इस्तेमाल, नवीनीकरण ऊर्जा के भविष्य की ओर टिकी हैं देश की निगाहें

हमें फॉलो करें भारत में करोड़ों लोग करते हैं पृथ्वी के संसाधनों का इस्तेमाल, नवीनीकरण ऊर्जा के भविष्य की ओर टिकी हैं देश की निगाहें
, बुधवार, 27 जुलाई 2022 (19:20 IST)
नई दिल्ली। दुनिया प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल उनकी भरपाई के मुकाबले अधिक तेजी से कर रही है और ऐसे में भारत की निगाहें नवीनीकरण ऊर्जा के भविष्य की ओर टिकी हैं। चाहे देश चलाना हो या घर, हमारे लिए हमेशा अपने बजट के भीतर खर्च करना आवश्यक है। पारिस्थितिकी बजट, जहां आय और खर्च प्राकृतिक संसाधन के रूप में होते हैं। हर बजट की तरह पृथ्वी का बजट भी सीमित है।

आज मनुष्य पृथ्वी के संसाधनों को केवल सात से आठ महीनों में खर्च कर रहा है जबकि उनका इस्तेमाल एक साल तक किया जाना चाहिए। ‘अर्थ ओवरशूट डे’ वह तारीख है जब साल के लिए पृथ्वी के सभी पारिस्थितिकी संसाधनों और सेवाओं का उपभोग कर लिया जाता है। इस साल यह 28 जुलाई को आ रहा है। ‘ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1971 में अर्थ ओवरशूट डे 25 दिसंबर को था और हर साल यह दिन पहले ही आ रहा है।

वर्तमान में मनुष्य एक साल के संसाधनों का इस्तेमाल 1.7 गुना अधिक कर रहा है। 2030 तक मनुष्यों को दो पृथ्वी पर पैदा होने जितने संसाधनों की आवश्यकता पड़ेगी। भारतीय संदर्भ में देश को 2030 तक अपनी मांग पूरी करने के लिए 2.5 गुना अधिक प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता पड़ेगी।
 
तेजी से बढ़ती आबादी द्वारा किए जा रहे संसाधनों के अंधाधुंध दोहन ने मांग और आपूर्ति के संबंध को पलट दिया है। अगर उसकी जन्म दर कम भी होती है तब भी 2030 तक भारत की आबादी करीब 1.51 अरब होगी।
 
‘ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क’ की रिपोर्ट के अनुसार, अधिक मछलियां पकड़ने, वनों की अंधाधुंध कटाई और कार्बन डाइऑक्साइड के अत्यधिक उत्सर्जन पृथ्वी पर संसाधनों की कमी की मुख्य वजहें हैं। पृथ्वी कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करके वातावरण को स्वच्छ करती है।
 
रिपोर्ट में कहा गया है कि वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड हटाने के लिए आवश्यक प्राकृतिक संसाधन पारिस्थितिकी फुटप्रिंट का 60 फीसदी हैं। 150 वर्ष पहले यह फुटप्रिंट न के बराबर था।
 
दुनिया अपनी ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड द्वारा जारी जीवाश्म ईंधन पर काफी हद तक निर्भर करती हैं। ‘बीपी स्टैटिस्टिकल रिव्यू ऑफ वर्ल्ड एनर्जी’ के अनुसार, 2021 में करीब 61.74 फीसदी बिजली की मांग जीवाश्म स्रोतों से पूरी की गई थी। भारत में करीब 78.5 प्रतिशत बिजली जीवाश्म ईंधनों से पैदा की जाती है। इसके बाद 19 प्रतिशत बिजली की जरूरत नवीनीकरण स्रोतों और 2.5 फीसदी परमाणु स्रोतों से पूरी की जाती है। भारत में बिजली आपूर्ति का सबसे बड़ा, 44 प्रतिशत स्रोत कोयला है।
 
भारत 2050 तक ऊर्जा क्षेत्र से उत्सर्जन कम करके और नवीनीकरण ऊर्जा को तुरंत अपनाकर शून्य कार्बन फुटप्रिंट का लक्ष्य हासिल कर सकता है। पृथ्वी के संसाधनों की अधिक खपत का मतलब है कि 28 जुलाई के बाद उपभोग किया जाना वाला कोई भी संसाधन पृथ्वी के भविष्य के संसाधनों से उधार लिया गया होगा। अगर यह रोका नहीं गया तो मनुष्य का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।
 
‘ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर हम अब से 2050 तक हर साल ओवरशूट डे पांच दिन बाद मनाते हैं तो पृथ्वी द्वारा पैदा किए जाने वाले संसाधन मानव उपभोग के लिए पर्याप्त होंगे।

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