Delhi High Court's decision on celebrating Constitution Murder Day : दिल्ली उच्च न्यायालय ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस घोषित करने संबंधी केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी। देश में वर्ष 1975 में 25 जून को आपातकाल लागू किया गया था।
याचिकाकर्ता ने कहा था कि यह निर्णय न केवल संविधान का उल्लंघन है, बल्कि अपमानजनक भी है, क्योंकि इसमें संविधान, जो एक जीवंत दस्तावेज है, उसके साथ हत्या शब्द का प्रयोग किया गया है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि केंद्र की 12 जुलाई को जारी की गई अधिसूचना संविधान का उल्लंघन नहीं करती, क्योंकि यह आपातकाल की घोषणा के मुद्दे को चुनौती देने के लिए नहीं, बल्कि सत्ता एवं कानून के दुरुपयोग और उसके बाद हुई ज्यादतियों के खिलाफ जारी की गई है।
याचिकाकर्ता समीर मलिक के वकील ने दलील दी कि 1975 में भारत के संविधान के अनुच्छेद 352 के अनुसार आपातकाल की घोषणा की गई थी और घोषणा के दिन को संविधान हत्या दिवस के रूप में घोषित करने का निर्णय अपमानजनक और संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है। उन्होंने दलील दी कि संविधान एक जीवंत दस्तावेज है जो कभी नष्ट नहीं हो सकता।
वकील ने यह भी दलील दी कि संविधान हत्या दिवस की घोषणा राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम का भी उल्लंघन होगी। पीठ में न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला भी शामिल थे। पीठ ने कहा, हत्या शब्द का इस्तेमाल इसी संदर्भ में किया गया है। यह संविधान का अपमान नहीं करता। अदालत ने कहा, यह अधिसूचना किसी भी तरह से संविधान को कमजोर या अपमानित नहीं करती। अदालत ने कहा कि यह याचिका विचार करने योग्य नहीं है।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम के तहत संविधान का अनादर करना अपराध है और यहां तक कि सरकार को भी अपने व्यक्तिगत और राजनीतिक उद्देश्य के लिए संविधान के संबंध में अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। याचिका में यह भी कहा गया है कि अधिसूचना में यह नहीं बताया गया कि इसे किस कानून या नियम के तहत जारी किया गया है। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour