नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय को अवगत कराया कि वह बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए 8वीं कक्षा तक स्वास्थ्य एवं योग विज्ञान को पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाए जाने संबंधी याचिका पर अपना रुख स्पष्ट करेगी।
उच्च न्यायालय ने सुनवाई की अगली तारीख से पहले जवाब दाखिल करने का केंद्र को निर्देश देते हुए स्पष्ट किया कि अदालत नीति निर्माण नहीं कर सकती। इसकी जिम्मेदारी सरकार पर है।
कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की खंडपीठ ने याचिका के इस चरण में नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया और कहा कि कोई भी व्यक्ति यह मांग नहीं कर सकता कि जो वह सोचता है वह ठीक है और उसे लागू किया ही जाना चाहिए।
पीठ ने कहा कि यह नीतिगत मामला है और इसमें अदालत के आदेश का इंतजार करने के बजाय सरकार को खुद इस बारे में गौर करना चाहिए।
अदालत ने वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर याचिका पर कहा, आप (सरकार) इसे करें। हमारे आदेश के लिए क्यों इंतजार करना? हमने बार-बार कहा है कि ये नीतिगत मामले हैं। यह हिचकिचाहट क्यों? यदि यह महत्वपूर्ण है तो खुद से करें।
खंडपीठ ने आगे कहा, यदि आप (सरकार) मानते हैं कि उपाध्याय (याचिकाकर्ता) जो सोचते हैं, उसमें दम है तो इस पर विचार करें। हम नीतिगत मामलों में हाथ नहीं डालेंगे। हम उस दिशा में एक कदम नहीं बढ़ाना नहीं चाहते जहां हम नहीं जा सकते। हम नीति नहीं बना सकते हैं और इसकी जिम्मेदारी सरकार की है।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने कहा कि वह इस मामले में (सरकार से) दिशानिर्देश लेंगे। इसके साथ ही अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 11 नवंबर की तारीख मुकर्रर कर दी।
याचिकाकर्ता ने अनुच्छेद 21ए के तहत गारंटीकृत शिक्षा के अधिकार को 'समग्र एकीकृत समान गुणवत्ता शिक्षा का अधिकार' घोषित करने की मांग की।(भाषा)