कुत्तों ने अब राजस्थान में एक महीने के बच्चे की ली जान, जवाबदेही को लेकर बहस हुई तेज

Webdunia
बुधवार, 1 मार्च 2023 (14:28 IST)
नई दिल्ली। राजस्थान के सिरोही में एक सरकारी अस्पताल में अपनी मां के पास सो रहे 1 महीने के बच्चे को कुत्ते उठाकर ले गए और नोंच-नोचकर उसे मार डाला। ऐसा नहीं है कि यह इस प्रकार का पहला मामला है। देश के गांवों और कस्बों में तो दिल दहला देने वाली अक्सर ऐसी दुखद घटनाएं सुनने को मिलती हैं। ऐसे में कुत्तों के हमलों को लेकर देशभर में बहस तेज हो गई है।
 
सवाल उठ रहे हैं कि इसके लिए कौन जवाबदेह है? कुत्ते इतने हिंसक और आक्रामक कैसे हो जाते हैं? इस समस्या से निपटने के लिए क्या किया जा सकता है? मालूम हो कि तेलंगाना के हैदराबाद में हाल ही में आवारा कुत्तों के एक झुंड ने 5 साल के एक बच्चे पर हमला कर दिया था। इस हमले में बच्चे की मौके पर ही मौत हो गई। दिल दहला देने वाली इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय रहा।
 
ताजा मामले में सिरोही पुलिस ने बताया कि घटना सोमवार देर रात की है, जब बच्चा अपनी मां के पास सो रहा था और एक आवारा कुत्ता उसे उठाकर ले गया। उन्होंने बताया कि बच्चे का शव बाद में अस्पताल परिसर में ही मिला। पुलिस ने बताया कि सीसीटीवी फुटेज में 2 कुत्ते अस्पताल के टीबी वार्ड के अंदर जाते दिख रहे हैं जबकि बाद में एक कुत्ता, शिशु को मुंह में दबाए वार्ड से बाहर निकलते दिख रहा है।
 
गाजियाबाद में रहने वाली शिक्षिका सुरेखा त्रिपाठी ने कहा कि खुला घूमने वाला कुत्ता हमेशा खतरनाक होता है, विशेष रूप से छोटे बच्चों के लिए, जो अपना बचाव नहीं कर सकते। या तो सभी आवारा कुत्तों को आवासीय क्षेत्रों से हटा दें या उन्हें एक अलग निर्जन क्षेत्र में रखें, जहां पशु प्रेमी जाकर उन्हें भोजन खिला सकें या उनकी देखभाल कर सकें।
 
त्रिपाठी इस मुद्दे पर हुईं कई परिचर्चाओं में हिस्सा ले चुकी हैं। एक ओर त्रिपाठी जैसे कुछ लोगों का कहना है कि कुत्तों के मिजाज का कुछ पता नहीं होता और उन्हें रिहायशी इलाकों के आसपास से हटा दिया जाना चाहिए तो दूसरी ओर पशु अधिकार विशेषज्ञों का तर्क है कि कुत्ते अपनी, अपने बच्चों की व इलाके की सुरक्षा करने और भूख के कारण आक्रामक हो जाते हैं। ऐसे में इस समस्या का एकमात्र दीर्घकालिक समाधान नसबंदी और टीकाकरण है।
 
पीपुल फॉर एनिमल्स की अंबिका शुक्ला ने कहा कि कुत्ते का काटना या हमला करना स्वाभाविक व्यवहार नहीं है। कुत्ते आत्मरक्षा में आक्रामक हो सकते हैं। इसके अलावा जब उन्हें लगता है कि उनके बच्चों को खतरा है तो भी वे आक्रामक हो सकते हैं। साथ ही कुत्ते संभोग के सीजन में उत्तेजित हो जाते हैं।
 
शुक्ला ने कहा कि लोगों का इन घटनाओं को एक साथ जोड़कर सभी कुत्तों को एक नजर से देखना सही नहीं है। आमतौर पर चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की प्रवृत्ति देखी जाती है और कुत्तों को इसके बहुत ही गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं। अदालत के निर्देशानुसार कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण नहीं किया जाना इन जानवरों की गलती नहीं है।
 
उन्होंने कहा कि सभी नगर निकाय नियमित रूप से ऐसा करने के लिए जिम्मेदार हैं, लेकिन ऐसा होता नहीं है। हर जगह इस कार्यक्रम (पशु जन्म नियंत्रण) को अपनाया गया है और यह आवारा पशुओं की आबादी को नियंत्रित करने का एकमात्र सिद्ध वैज्ञानिक तरीका है। नवीनतम पशुधन गणना के अनुसार 2019 में देश में 1.5 करोड़ आवारा कुत्ते थे। इनमें से उत्तरप्रदेश में सबसे अधिक 20.59 लाख और उसके बाद ओडिशा में 17.34 लाख कुत्ते थे।
 
फ्रेंडिकोस सीईसीए की उपाध्यक्ष गीता शेषमणि ने कहा कि किसी क्षेत्र में कुत्तों की संख्या कम होने के कारण अक्सर कुत्तों के बीच अधिक शांति देखने को मिलती है, क्योंकि उन्हें भोजन या क्षेत्र पर आक्रमण की आशंका कम होती है।
 
उन्होंने कहा कि दूसरी बात, लोगों को अच्छी तरह उनका पेट भरना चाहिए। भूख के कारण कुत्ते खाना चुराने या छीनने जैसी हरकतें करने लगते हैं। अच्छी तरह से प्रेमपूर्वक खिलाकर कुत्तों को सामाजिक बनाया जा सकता है। कुत्ते भी इस दयालुता के प्रति प्यार का इजहार करते हैं।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta

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