शायद! डॉ. नारंग के परिजन वोट बैंक नहीं हैं...

Webdunia
शनिवार, 26 मार्च 2016 (13:55 IST)
संभवत: सितंबर 2015 में यूपी के दादरी में हुए अखलाक हत्याकांड को अभी कोई भी नहीं भूला होगा। गोमांस की अफवाह के बाद जिस तरह उनकी हत्या की गई, वह घटना दुखद तो थी ही शर्मनाक भी थी। दूसरी ओर 23 मार्च को एक हादसा दिल्ली में हुआ, जहां पंकज नारंग नामक एक डॉक्टर की कुछ लोगों ने मामूली सी बात पर हत्या कर दी। 
 
डॉक्टर पंकज नारंग का कसूर सिर्फ इतना था कि वे टी-20 विश्वकप में बांग्लादेश पर भारत की जीत से काफी उत्साहित थे और अपने बेटे के साथ घर में ही क्रिकेट खेल रहे थे। दुर्भाग्य से रबर की गेंद एक स्कूटी सवार को लग गई। इसके बाद नारंग ने उससे माफी भी मांगी, लेकिन कुछ समय बाद वह व्यक्ति अपने साथियों को लेकर आ गया और डॉक्टर की बुरी तरह से पिटाई कर दी, जिससे उनकी मौत हो गई।
 
इस बीच, नारंग के मित्रों ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल से मिलकर नारंग के परिजनों के लिए सुरक्षा की मांग की। इसका उल्लेख केजरीवाल ने ही अपने ट्‍वीट में किया है। ट्‍वीट में उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल ने भी नारंग के परिजनों को सुरक्षा देने के लिए सहमति जताई है। केजरीवाल ने एक अन्य ट्‍वीट में कहा कि एलजी ने मुझे सलाह दी है कि मैं डॉ. नारंग के परिजनों से अभी नहीं मिलूं क्योंकि वे सदमे में होंगे। 
 
निश्चित ही नारंग के परिजन सदमे में होंगे क्योंकि एक महिला ने पति खोया है तो बच्चों ने पिता। लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि केजरीवाल को नारंग के मामले में एलजी की सलाह समझ में आ गई, लेकिन जब अखलाक की मौत हुई थी तो दादरी जाने में उन्होंने देर नहीं लगाई थी, रोहित वेमुला की मौत पर वे हैदराबाद पहुंच गए थे। क्या अखलाक के परिजन उस समय सदमे में नहीं थे या फिर वेमुला के परिजन उनकी मौत से दुखी नहीं थे?
 
अखलाक की मौत के समय तो आप नेता आशुतोष ने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी दादरी आना चाहिए। पीड़ित परिवार से मिलकर उनके आंसू पोंछना चाहिए। मोदी देश के लोगों को यह भरोसा दिलाएं कि अब कहीं भी किसी को भी अखलाक की तरह निशाना नहीं बनाया जाएगा। 
 
...तो फिर अब केजरीवाल और उनकी पार्टी के नेताओं के डॉ. नारंग के परिजनों के आंसू क्यों नजर नहीं आ रहे हैं? क्यों वे पीड़ित परिवार के आंसू सूखने का इंतजार कर रहे हैं? क्यों एलजी की सलाह के नाम पर बहानेबाजी कर रहे हैं? यह तो उनकी अपनी दिल्ली का मामला है। इसके लिए तो उन्हें कहीं दूर जाने की भी जरूरत नहीं है। 
 
दरअसल, यही हमारे राजनेताओं का असली चरित्र है। जब तक उन्हें अपना फायदा नजर नहीं आता वे कहीं नहीं जाते। क्योंकि डॉ. नारंग न तो मुस्लिम अखलाक थे और न ही दलित रोहित वेमुला। इसलिए डॉक्टर नारंग के परिजन उनके लिए वोट बैंक भी नहीं हैं। यही असलियत है। चाहे फिर वे अरविन्द केजरीवाल हों या फिर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी। इसी तरह हम मौत भी अपना फायदा ढूंढ़ते रहेंगे...
   
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