नई दिल्ली, तेज आर्थिक विकास के साथ ऊर्जा की जरूरतें बढ़नी स्वाभाविक है। बढ़ती ऊर्जा जरूरतों के साथ पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना भी एक बड़ी चुनौती है।
यही कारण है कि दुनियाभर में स्वच्छ एवं नवीकरणीय ऊर्जा पर विशेष बल दिया जा रहा है। भारत में भी पर्यावरण-हितैषी ऊर्जा से जुड़े शोध एवं विकास का कार्य निरंतर प्रगति पर है।
ऊर्जा के स्वच्छ स्रोत के रूप में हाइड्रोजन में तमाम संभावनाएं छिपी हुई हैं। इन्हीं संभावनाओं को तलाशने के लिए देश में अनेक शोध एवं अनुसंधान के कार्य किए जा रहे हैं।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने हाल में ही देशभर के वैज्ञानिकों, औद्योगिक संस्थाओं और शोध एवं विकास प्रयोगशालाओं के अलावा अकादमिक वर्ग द्वारा हाइड्रोजन को लेकर किए जा रहे शोध-अनुसंधानों का एक संकलन प्रस्तुत किया है।
‘इंडिया कंट्री स्टेटस रिपोर्ट ऑन हाइड्रोजन ऐंड फ्यूल सेल्स’ शीर्षक से जारी यह संकलन हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था को तेजी से बढ़ावा देने के लिए विकसित किए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों एवं रणनीतियों पर हुए व्यापक विचार-विमर्श का निचोड़ है।
यह प्रयास ‘मिशन इनोवेशन रिन्यूएबल ऐंड क्लीन हाइड्रोजन चैलेंज’ मुहिम के सदस्य देश के रूप में भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
न्यूनतम कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य की पूर्ति के लिए अपने ऊर्जा उपभोग में अक्षय ऊर्जा का अधिक से अधिक मिश्रण भारत की ऊर्जा नीति का अहम हिस्सा है। इसके लिए अन्य स्रोतों के अलावा स्वच्छ ऊर्जा के स्रोत हाइड्रोजन पर विशेष जोर दिया जा रहा है। यह उम्मीद की जाती है कि आने वाले दशकों में एक जलवायु-निरपेक्ष तंत्र के विकास में ऊर्जा स्रोत के रूप में हाइड्रोजन की अहम भूमिका होगी।
प्रति यूनिट मास की दृष्टि से हाइड्रोजन में ऊर्जा की मात्रा काफी अधिक होती है। यह गैसोलिन (पेट्रोल) की तुलना में तीन गुना अधिक होती है। ऊर्जा जरूरतों के संदर्भ में हाइड्रोजन का उपयोग ईंधन सेल रूप पूर्व से ही किया जा रहा है।
हालांकि, अक्षय हाइड्रोजन को एक कारगर विकल्प बनाने की राह में नई सामग्री के विकास, इलेक्ट्रोलाइट्स, भंडारण, सुरक्षा और मानक निर्धारण जैसी कई चुनौतियां बनी हुई हैं। चूंकि हाइड्रोजन तकनीक ग्लोबल वार्मिंग को घटाने में मददगार हो सकती है, इसीलिए आने वाले दशकों में ऊर्जा के रूप में हाइड्रोजन की हिस्सेदारी बढ़ाने के प्रयास अत्यधिक महत्व रखते हैं।
हाल के वर्षों में दो पहलुओं ने हाइड्रोजन की वृद्धि में अहम योगदान दिया है। एक तो ऊर्जा स्रोत के रूप में हाइड्रोजन की लागत कम हुई है, और दूसरा यह कि ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन ने तमाम देशों को हाइड्रोजन जैसे विकल्प अपनाने पर मजबूर किया है। यह ऐसा विकल्प है, जो ऊर्जा से जुड़ी तमाम चुनौतियों का तोड़ निकालने में सक्षम है।
ऊर्जा की बड़े पैमाने पर खपत करने वाले परिवहन, रसायन, लौह एवं इस्पात जैसे बड़ी ऊर्जा खपत वाले क्षेत्रों को भी इससे बड़ी राहत मिल सकती है, जहां उत्सर्जन घटाने की चुनौती कठिन है। इसके साथ ही, इससे हवा की गुणवत्ता में सुधार और ऊर्जा सुरक्षा भी सुनिश्चित हो सकेगी। इसके अतिरिक्त पावर सिस्टम में लचीलापन भी बढ़ेगा। यह अक्षय ऊर्जा के भंडारण के सबसे किफायती स्रोतों में से एक है, जो बिजली को कई दिनों, हफ्तों और यहां तक कि महीनों तक संचित रख सकता है।