Environmentalist Sunita Narayan's statement on Delhi's air : देश की जानी-मानी पर्यावरणविद सुनीता नारायण ने कहा कि दिल्ली की हवा को स्वच्छ बनाने के लिए असहज और असुविधाजनक निर्णय लेने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति, खासकर अमीर लोगों के प्रति अच्छे बने रहकर इस लक्ष्य को नहीं प्राप्त किया जा सकता जो इस समस्या के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं।
नारायण ने कहा कि दिल्ली में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने कई कदम उठाए हैं जिनमें कोयला जलाने पर पाबंदी और बीएस-छह ईंधन का इस्तेमाल शामिल है। लेकिन उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की अनियमित प्रवृत्ति और संकट का समाधान करने की अपर्याप्त गति के कारण समस्या लगातार बढ़ती जा रही है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की महानिदेशक नारायण ने कहा कि सर्दियों में किसानों द्वारा समय-समय पर फसल के अवशेष जलाना प्राथमिक चिंता का विषय नहीं है। इसके बजाय परिवहन और उद्योगों सहित शहर के भीतर लगातार प्रदूषण फैलाने वाले प्रमुख स्रोत अधिक चिंताजनक हैं।
जीएसटी शासन के तहत लाने का आग्रह : उन्होंने कहा, नई सरकार से मेरा एकमात्र अनुरोध वायु प्रदूषण पर आगे बढ़ने के लिए कुछ असहज और असुविधाजनक निर्णय लेने का है। हम हर किसी के साथ खासकर दिल्ली के अमीरों के प्रति अच्छा बने रहकर कभी भी दिल्ली की हवा को स्वच्छ नहीं कर सकेंगे। उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण की हिस्सा रहीं नारायण ने केंद्र में नई सरकार से प्राकृतिक गैस को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) शासन के तहत लाने का भी आग्रह किया।
उन्होंने कहा कि गैस पर मौजूदा तीन गुना कराधान इसे गंदे कोयले की तुलना में अवहनीय बनाता है। उन्होंने कहा कि यह बदलाव स्वच्छ गैस को अधिक व्यवहार्य विकल्प बना देगा। नारायण ने कहा, अगली सरकार से मेरा सबसे बड़ा अनुरोध... दिल्ली में प्रदूषण कम करने के लिए हम जो सबसे आसान काम कर सकते हैं, वह है प्राकृतिक गैस को जीएसटी के तहत लाना।
उन्होंने सार्वजनिक परिवहन को बढ़ाकर वाहन प्रदूषण को कम करने की आवश्यकता पर बल दिया। पूर्व में किए गए स्रोत विभाजन अध्ययन से पता चलता है कि दिल्ली के पीएम 2.5 प्रदूषण में परिवहन का योगदान 17.9 प्रतिशत से 39.2 प्रतिशत है, जबकि उद्योगों का योगदान 2.3 प्रतिशत से 28.9 प्रतिशत तक है।
कोयले पर प्रतिबंध लगाने वाला देश का एकमात्र शहर : नारायण ने कहा, दिल्ली ने वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठाए हैं। यह कोयले के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने वाला देश का एकमात्र शहर है, जो एक बड़ी उपलब्धि है। दिल्ली ने अपना आखिरी कोयला आधारित बिजली संयंत्र बंद कर दिया और बिजली उत्पादन के लिए गैस का उपयोग शुरू कर दिया। सरकार ने बीएस-छह ईंधन पेश किया और दिल्ली में प्रवेश करने वाले ट्रकों पर कंजेशन शुल्क लगाया। पेरीफेरल एक्सप्रेसवे के निर्माण से अब ट्रकों ने शहर को एक तरह से बख्श दिया है।
उन्होने कहा कि दिल्ली में प्राकृतिक गैस के उपयोग को प्रोत्साहित करने के भी प्रयास किए गए हैं जहां गैस पर शून्य वैट है, और प्राकृतिक गैस अब शहरभर के औद्योगिक क्षेत्रों में आसानी से उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि इन पहलों से सामूहिक रूप से प्रदूषण के स्तर में साल दर साल कमी आई है।
मानव नियंत्रण से परे है बिगड़ती मौसम की स्थिति : नारायण ने कहा कि दो प्रमुख कारक हैं जो समस्या को बढ़ा रहे हैं- बिगड़ती मौसम की स्थिति जो मानव नियंत्रण से परे है, और संकट से निपटने की अपर्याप्त गति। उदाहरण के लिए इस सर्दी में दिल्ली सहित उत्तर-पश्चिम भारत में बारिश नहीं हुई। उन्होंने बताया कि वर्षा की कमी पश्चिमी विक्षोभ को प्रभावित करने वाले आर्कटिक जेट स्ट्रीम में बदलाव के कारण है, जो अधिक अनियमित हो रही है और उत्तर की ओर बढ़ रही है।
नारायण ने कहा कि इसके कारण पहाड़ों पर कम बर्फबारी हुई और दिल्ली में कम बारिश हुई, जिसके परिणामस्वरूप प्रदूषण का स्तर बढ़ गया। उन्होंने कहा, दूसरी बात यह कि वर्ष 2021 तक की गई सभी कार्रवाइयों के बाद, हम उस गति से कार्रवाई नहीं कर रहे हैं जो संकट के कारण आवश्यक है।
पर्यावरणविद ने कहा कि बस बेड़े का आखिरी बड़ा विस्तार दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के कार्यकाल के दौरान राष्ट्रमंडल खेलों के आसपास हुआ था। उन्होंने कहा कि इसके बाद से कई बसों को प्रतिस्थापित नहीं किया गया है, जिससे बस की सवारियों की संख्या में गिरावट आई है।
खतरनाक वायु गुणवत्ता स्तर के लिए जिम्मेदार हैं ये : उन्होंने कहा कि बस प्रणाली को प्रभावी बनाने के लिए इसे मेट्रो सिस्टम और पार्किंग सुविधाओं के साथ एकीकृत करने की आवश्यकता है। वाहन उत्सर्जन, पुआल या पराली जलाने, पटाखे और अन्य स्थानीय प्रदूषण स्रोतों के साथ प्रतिकूल मौसम संबंधी स्थितियां, सर्दियों के दौरान दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में खतरनाक वायु गुणवत्ता स्तर के लिए जिम्मेदार हैं।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के विश्लेषण के अनुसार, शहर में एक से 15 नवंबर तक प्रदूषण चरम पर होता है, जब पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं की संख्या बढ़ जाती है। दुनिया के राजधानी शहरों में वायु गुणवत्ता के लिहाज से दिल्ली की गिनती दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में की जाती है। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour