Hanuman Chalisa

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

रुपए में आई गिरावट, क्‍या बढ़ेगी महंगाई, विशेषज्ञों ने जताई यह उम्‍मीद

Advertiesment
हमें फॉलो करें Experts expressed this hope regarding inflation

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

नई दिल्ली , रविवार, 5 जनवरी 2025 (18:21 IST)
Experts' statement on inflation : रुपए की विनिमय दर में आ रही गिरावट के बीच विशेषज्ञों ने कहा है कि घरेलू मुद्रा के मूल्य में गिरावट से आयातित कच्चे माल के महंगा होने से उत्पादन लागत बढ़ेगी और कुल मिलाकर देश में महंगाई बढ़ सकती है जिससे आम लोगों की जेब पर प्रभाव पड़ेगा। हालांकि दुनियाभर में कच्चे तेल की कीमतों में नरमी के कारण भारत की मुद्रास्फीति पर बहुत प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि बीते वर्ष रुपए में लगभग 3 प्रतिशत की गिरावट के बावजूद यह एशिया के अपने समकक्ष देशों की तुलना में बेहतर स्थिति में है।
 
उल्लेखनीय है कि बीते सप्ताह शुक्रवार को अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया चार पैसे टूटकर अब तक के सबसे निचले स्तर 85.79 प्रति डॉलर पर बंद हुआ। पिछले साल रुपए की विनिमय दर में लगभग तीन प्रतिशत की गिरावट आई है। डॉलर के मुकाबले रुपए के मूल्य में कमी के कारण आम लोगों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर जाने-माने अर्थशास्त्री और मद्रास स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के निदेशक प्रोफेसर एनआर भानुमूर्ति ने कहा, रुपए के मूल्य में गिरावट आयातित मुद्रास्फीति (आयातित महंगे कच्चे माल) से चीजें महंगी होंगी।
उन्होंने कहा, हालांकि अगर इससे निर्यात को गति मिलती है तब आर्थिक वृद्धि और रोजगार पर सकारात्मक असर पड़ सकता है। यदि रुपए में गिरावट बाजार की ताकतों (मांग और आपूर्ति) के कारण होती है, तो उत्पादन वृद्धि और महंगाई दोनों बढ़ेंगे।
 
इस बारे में आनंद राठी शेयर्स एंड स्टॉक ब्रोकर्स के निदेशक (जिंस और मुद्रा) नवीन माथुर ने कहा, रुपए की विनिमय दर में गिरावट का सबसे बड़ा असर महंगाई बढ़ने के रूप में होता है क्योंकि आयातित कच्चे माल और उत्पादन की लागत बढ़ जाती है जिसका बोझ अंतत: उपभोक्ताओं को उठाना होता है। इससे विदेश यात्रा और दूसरे देश में जाकर पढ़ाई करना महंगा हो जाता है।
अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर भानुमूर्ति ने कहा, यदि विनिमय दर पूरी तरह से बाजार की ताकतों के कारण बदल रही है, तो निर्यात और आयात में स्वतः समायोजन होगा। हालांकि केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप के बारे में चर्चाएं हैं और हाल ही में सोने की खरीद के कारण चालू खाते के घाटे (कैड) में वृद्धि हुई है। कमजोर विनिमय दरों से आयात महंगा होता है, इससे देश में महंगाई बढ़ सकती है। इसका विभिन्न क्षेत्रों पर नकारात्मक असर होता है।
 
उन्होंने कहा, हालांकि इस बार दुनियाभर में कच्चे तेल की कीमतों में नरमी के कारण भारत की मुद्रास्फीति पर बहुत प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है। अगर प्रभाव होगा भी तो वह सीमित होगा। उल्लेखनीय है कि वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा शुक्रवार को 0.43 प्रतिशत गिरकर 75.60 डॉलर प्रति बैरल पर था।
 
इस बारे में माथुर ने कहा, कमजोर रुपया ईंधन और इलेक्ट्रॉनिक जैसे आयातित सामानों की लागत में वृद्धि का कारण बनता है, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ सकती है और क्रय शक्ति कम हो सकती है। विदेशी मुद्रा में कर्ज लेने वाली कंपनियों को भुगतान की अधिक लागत चुकानी पड़ेगी और आयातित कच्चे माल पर निर्भर इकाइयों को कम लाभ मार्जिन देखने को मिल सकता है। साथ ही, यह भारत में विदेशी निवेश प्रवाह को सीमित कर सकता है
उन्होंने कहा, दूसरी तरफ, निर्यात से जुड़ी कंपनियों को स्थानीय मुद्रा के मूल्य में गिरावट का लाभ मिल सकता है। इसका कारण वे चीन के मुकाबले अधिक प्रतिस्पर्धी बन जाती हैं। सॉफ्टवेयर और विनिर्माण निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है क्योंकि वे चीन की तुलना में अधिक प्रतिस्पर्धी होंगे।
 
डॉलर के मुकाबले रुपए की विनिमय दर में गिरावट के कारण के बारे में पूछे जाने पर भानुमूर्ति ने कहा, इसके दो मुख्य कारण हैं। एक तो तीसरी तिमाही में व्यापार घाटा बढ़ा, आयात में वृद्धि निर्यात में बढ़ोतरी से कहीं ज्यादा रही। साथ ही हाल ही में अमेरिकी चुनाव के नतीजों के बाद भारतीय बाजारों से विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की पूंजी निकासी है। दूसरा कारण, भारत और अमेरिका के बीच मुद्रास्फीति का अंतर बढ़ना है। अमेरिकी में महंगाई में गिरावट भारतीय मुद्रास्फीति की तुलना में ज्यादा है, इसलिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने वृद्धि दर को बढ़ावा देने के लिए प्रमुख ब्याज दर में कमी की है।
 
इस बारे में माथुर ने कहा, वर्ष की पहली छमाही में रुपया सीमित दायरे में रहा। हालांकि पिछले कुछ महीनों में इसमें काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। रुपए को 84 डॉलर से 85.75 डॉलर के स्तर को पार करने में सिर्फ दो महीने लगे, जबकि जनवरी-अक्टूबर में यह 83-84 के स्तर पर सीमित दायरे में रहा।
उन्होंने कहा, देश के चालू खाते के घाटे में बीते साल तेजी बनी रही और नवंबर महीने में यह 37.8 अरब डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया। इससे पिछले कुछ महीनों में रुपए की धारणा प्रभावित हुई। नवंबर से ही एफआईआई की पूंजी निकासी और डॉलर की मजबूती ने रुपए पर अतिरिक्त दबाव डाला और वर्ष के अंत तक रुपए में तेज गिरावट आई। वित्त वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर में कमी ने भी रुपए के लिए मुश्किलें बढ़ाईं...।
 
रुपए की विनिमय दर के मामले में दुनिया के अन्य उभरते बाजारों के मुकाबले भारत की स्थिति के बारे में पूछे जाने पर माथुर ने कहा, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए में गिरावट निर्यात प्रतिस्पर्धा के लिहाज से सकारात्मक है और इससे व्यापार घाटे में भी सुधार हो सकता है।
 
2024 में भारतीय रुपए में 2.9 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। इसके बावजूद यह एशिया के अपने समकक्ष देशों की तुलना में बेहतर स्थिति में है। भारतीय मुद्रा 2024 के लिए क्षेत्र में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली मुद्राओं में से एक बनी रही और अन्य उभरते बाजार देशों की तुलना में अपेक्षाकृत स्थिर रही।
भानुमूर्ति ने कहा, विनिमय दर का स्तर अर्थव्यवस्थाओं की तुलनात्मक ताकत को समझने के लिए एकमात्र कारक नहीं है। यह देशों में क्रय शक्ति के संबंध में समानता सुनिश्चित करता है और प्रत्‍येक देश के उत्पादकता स्तर को भी दर्शाता है। उत्पादकता जितनी अधिक होगी, मुद्रा उतनी ही मजबूत होगी क्योंकि उन देशों में मुद्रास्फीति कम होगी। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

अरविंद केजरीवाल ने कहा- PM मोदी ने दिल्‍ली सरकार को गालियां दीं, सुनकर बुरा लगा, लोग करारा जवाब देंगे