जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान ने बदली फिदायीन हमलों की रणनीति

सुरेश डुग्गर
श्रीनगर। कारगिल युद्ध के बाद जम्मू कश्मीर में आरंभ हुए फिदायीन हमलों का रूप अब बदल गया है। यहां शुरुआत के फिदायीन हमलों में एक से दो आतंकी शामिल हुआ करते थे अब उनकी संख्या बढ़कर 4 से 6 तक हो गई है। साथ ही नई रणनीति के तहत फिदायीनों ने एकसाथ हमले करने की बजाय कैंपों पर आगे और पीछे की रणनीति अपनाकर सुरक्षाबलों को चौंकाना आरंभ किया है।
यह सच है कि फिदायीन हमला करने वालों ने अब अपनी रणनीति को भी पूरी तरह से बदल लिया है। अब उनका मकसद सुरक्षाबलों को अधिक से अधिक क्षति पहुंचाने के साथ ही ऐसा कुछ करने का है जो हमेशा पहली बार हो। यह बारामूला में हुए फिदायीन हमले तथा पिछले साल अरनिया में हुए हमलों से साबित होता है।
 
जुलाई 1999 में जब कारगिल युद्ध समाप्त हुआ तो 6 अगस्त 1999 को पहला फिदायीन हमला हुआ था। एकमात्र आतंकी ने फिदायीन की भूमिका निभाते हुए सैनिक शिविर के भीतर घुसकर हमला किया तो एक मेजर समेत तीन सैनिकों की मौत हो गई थी।
 
पहले फिदायीन हमले के 17 सालों के बाद फिदायीन हमलों में शामिल होने वालों की संख्या अब एक से बढ़कर 6 तक पहुंच गई है। जबकि पिछले साल अरनिया में हुए फिदायीन हमले में चार फिदायीनों ने शिरकत की थी। फिदायीन हमलों में सिर्फ फिदायीनों की संख्या ही नहीं बढ़ी है बल्कि उनकी रणनीति भी बदल गई है। 
 
पिछले 17 सालों के दौरान होने वाले सैकड़ों फिदायीन हमलों में अभी तक यही होता रहा था कि 2 से 3 आतंकी सैनिक शिविर में अंधाधुंध गोलीबारी करते हुए घुसने की कोशिश करते थे और जितने लोग सामने आते थे उन्हें ढेर कर देते थे। पर कल देर रात बारामूला के 46 आरआर के कैंप पर हुए फिदायीन हमले में आतंकियों ने जो रणनीति अपनाई उसने सभी को चौंका दिया। उन्होंने दो दलों में बंटकर हमला बोला था। एक दल कैम्प में सामने से घुसने की कोशिश कर रहा था तो दूसरे ने कैंप के पीछे से हमला कर सभी को चौंका दिया था।
 
यही नहीं उड़ी में हुए फिदायीन हमले में पहली बार आतंकियों ने सैनिकों की बैरकों को भी आग लगा दी थी। आग लगने के कारण 14 सैनिक जलकर मारे गए। यह पहला अवसर था कि फिदायीनों ने सोए हुए सैनिकों को जिन्दा जला दिया था।
 
दो हफ्तों में हुए दो बड़े फिदायीन हमलों का खास पहलू यह था कि दोनों ही हमलों में शामिल आतंकी अपने साथ राकेट लांचर और मोर्टार जैसे हथियार लेकर आए थे और अपने साथ वे इतना गोला-बारूद लेकर आए थे जो मुठभेड़ों को कई दिनों तक जारी रखने के लिए काफी थे। यही नहीं इन दोनों फिदायीन हमलों से एक और बात सामने आई कि दोनों ही हमले कई किमी भीतर आकर हुए हैं, जबकि दोनों ही हमलों में शामिल फिदायीनों ने ताजा घुसपैठ की थी और फिर सुरक्षाबलों पर हमले कर सभी को चौंकाया था।
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