नई दिल्ली। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को कहा कि भारत का तरीका व्यवधान डालने वाला नहीं है और यह किसी चुनौती से दूर रहने की तुलना में निर्णय लेने में कहीं अधिक यकीन रखता है।
जयशंकर की यह टिप्पणी ऐसे वक्त आई है, जब कई देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की व्यापक भूमिका की अपील कर रहे हैं। विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि वणिकवादी होना भारत का तरीका नहीं है।
उन्होंने यहां ‘रायसीना डायलॉग’ को संबोधित करते हुए अमेरिका-ईरान के बीच चल रहे तनाव का जिक्र किया और कहा कि वे दो विशिष्ट देश हैं तथा अंतत: जो कुछ भी होगा वह इसमें शामिल पक्षों पर निर्भर करेगा। चीन के साथ संबंधों पर विदेश मंत्री ने कहा कि पड़ोसी देशों के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहमति बनाना जरूरी है।
उन्होंने कहा कि न तो भारत, ना ही चीन भारत-चीन संबंधों को गलत दिशा में ले जा सकता है। हमारा संबंध अनूठा है। दुनिया में हर देश साथ-साथ आगे बढ़ रहे हैं। यह जरूरी है कि दोनों देश के बीच संतुलन हो। उन्होंने कहा कि भारत अपनी अतीत की छवि से जकड़ा हुआ है और उसे अवश्य ही इससे बाहर निकलना होगा।
विदेश मंत्री ने कहा कि व्यवधान डालना भारत का तरीका नहीं है। वणिकवादी होना भारत का तरीका नहीं है। किसी चीज से दूर रहने की तुलना में भारत निर्णय लेने में कहीं अधिक यकीन रखता है। उन्होंने 'भारत का तरीका : वृद्धि एवं प्रतिस्पर्धा के लिए तैयारी करने’ सत्र के दौरान यह कहा।
जयशंकर ने कहा कि भारत आतंकवाद से दृढ़ता से निपट रहा है। उन्होंने कहा कि एक वक्त था जब हम बोलते ज्यादा थे और करते कम थे। यह अब बदल रहा है। क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) से भारत के बाहर होने के बारे में उन्होंने कहा कि जो देश इसका हिस्सा हैं उन पर इसकी जिम्मेदारी है।
जयशंकर ने कहा कि जहां तक आरसीईपी की बात है हमें इसके नफा-नुकसान पर गौर करना होगा। हम आरसीईपी के आर्थिक एवं व्यापारिक गुण-दोष के आधार पर इसका मूल्यांकन करेंगे। हम इस पर विचार करने के प्रति अनिच्छुक नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत-अमेरिका संबंध पर हम उम्मीद से कम काम नहीं कर रहे हैं।
विदेश मंत्री ने कहा कि ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां भारत और अमेरिका साथ काम नहीं कर रहे हैं। उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि दुनिया की एक जैसी चुनौतियां हैं। उन्होंने कहा कि आतंकवाद एक साझा चुनौती है। अलगाववाद एक साझा चुनौती है। प्रवास एक साझा चुनौती है। दुनिया को खुद से पूछना होगा कि वे इन चुनौतियों से कैसे निपटेंगे।
उल्लेखनीय है कि ‘रायसीना डायलॉग’ के पांचवें संस्करण का आयोजन विदेश मंत्रालय और ‘ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन’ सम्मिलित रूप से कर रहे हैं। इसमें 100 से अधिक देशों के 700 अंतरराष्ट्रीय भागीदार हिस्सा ले रहे हैं और इस तरह का यह सबसे बड़ा सम्मेलन है।
मंगलवार से शुरू हुए इस 3 दिवसीय सम्मेलन में 12 विदेश मंत्री हिस्सा ले रहे हैं। इनमें रूस, ईरान, ऑस्ट्रेलिया, मालदीव, दक्षिण अफ्रीका, एस्तोनिया, चेक गणराज्य, डेनमार्क, हंगरी, लातविया, उज्बेकिस्तान और ईयू के विदेश मंत्री शामिल हैं।