जी-7 शिखर सम्मेलन 2025: राष्ट्रपति ट्रम्प इस बार G-7 समिट में क्या नया बखेड़ा करेंगे?

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
सोमवार, 16 जून 2025 (15:01 IST)
जी-7 शिखर सम्मेलन वैश्विक कूटनीति का एक महत्वपूर्ण मंच है, लेकिन इस बार इसकी चर्चा संयुक्त घोषणापत्र या वैश्विक समस्याओं के समाधान से ज्यादा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की अप्रत्याशित कार्यशैली और संभावित विवादों को लेकर हो रही है। 2018 के कनाडा में हुए जी-7 सम्मेलन में ट्रम्प ने तत्कालीन कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को "बेईमान और कमजोर" कहकर और साझा बयान से अमेरिका का नाम वापस लेकर वैश्विक मंच पर हंगामा खड़ा किया था। इस बार का माहौल और भी तनावपूर्ण है, और सवाल यह है कि क्या ट्रम्प फिर कोई नया बखेड़ा खड़ा करेंगे या सहयोग की दिशा में कदम बढ़ाएंगे?

2018 का विवाद और ट्रम्प की शैली : 2018 में क्यूबेक के चार्लेवोइक्स में हुए जी-7 सम्मेलन में ट्रम्प ने स्टील और एल्यूमिनियम पर भारी टैरिफ लगाए थे, जिससे कनाडा, यूरोपीय संघ, और अन्य जी-7 देशों में नाराजगी फैली। अन्य नेताओं ने इन टैरिफ को वैश्विक व्यापार के लिए हानिकारक बताया, लेकिन ट्रम्प ने न केवल उनकी आलोचना को खारिज किया, बल्कि अंतिम संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर समय से पहले समिट छोड़ दिया। ट्रम्प ने ट्रूडो पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया था कि वे "बेईमान और कमजोर" हैं, जिससे जी-7 की एकता पर सवाल उठे। यह घटना ट्रम्प की अप्रत्याशित और टकराव वाली शैली का प्रतीक बन गई।

2025 का माहौल: वैश्विक संकट और ट्रम्प की केंद्रीयता : इस बार जी-7 समिट कई जटिल वैश्विक मुद्दों के बीच हो रहा है। इजरायल और ईरान के बीच हाल के हमलों ने पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ा दिया है, और जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मेर्ज़ ने ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने से रोकने को प्राथमिकता बताया है। यूक्रेन युद्ध भी एक बड़ा मुद्दा है, जहां ट्रम्प के "24 घंटे में युद्ध समाप्त करने" के दावे कूटनीतिक ठहराव के सामने खोखले साबित हो रहे हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की अब केवल ट्रम्प के साथ सौहार्दपूर्ण बैठक की उम्मीद कर रहे हैं। इसके अलावा, अमेरिकी टैरिफ, महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति श्रृंखला, और प्रवासन जैसे मुद्दे भी एजेंडे में हैं।

ट्रम्प की केंद्रीयता ने जी-7 की गतिशीलता को बदल दिया है। मेजबान कनाडा, जिसके नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी हैं, ने संभावित विवादों से बचने के लिए पारंपरिक संयुक्त घोषणापत्र के बजाय "चेयर समरी" जारी करने का फैसला किया है। समिट की अवधि भी बढ़ाई गई है ताकि ट्रम्प के साथ द्विपक्षीय बैठकों के लिए समय मिल सके, क्योंकि ट्रम्प बड़े गोलमेज सम्मेलनों की तुलना में व्यक्तिगत बातचीत को प्राथमिकता देते हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह रणनीति ट्रम्प को केंद्र में रखकर अन्य देशों को उनके हितों के लिए समझौता करने पर मजबूर कर सकती है।

ट्रम्प का संभावित बखेड़ा: ट्रम्प की नीतियां, खासकर टैरिफ, इस समिट में विवाद का प्रमुख कारण हो सकती हैं। उन्होंने कनाडा और मेक्सिको पर 25% टैरिफ की धमकी दी है, जिससे कनाडा की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो सकता है। 2018 की तरह, ट्रम्प इन टैरिफ को वैश्विक व्यापार में अमेरिका की स्थिति मजबूत करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। कुछ एक्स पोस्ट्स में ट्रम्प के पुराने बयानों का जिक्र है, जहां उन्होंने ट्रूडो से कहा था कि अगर कनाडा टैरिफ का सामना नहीं कर सकता, तो वह "51वां राज्य" बन जाए।

इसके अलावा, ट्रम्प की यूक्रेन युद्ध और पश्चिम एशिया संकट पर बयानबाजी भी तनाव बढ़ा सकती है। उनके "24 घंटे में युद्ध समाप्त करने" के दावे ने सहयोगियों में भ्रम पैदा किया है, और अगर वह समिट में रूस या ईरान के खिलाफ सख्त रुख की जगह अप्रत्याशित प्रस्ताव रखते हैं, तो यह जी-7 की एकता को और कमजोर कर सकता है।

जी-7 देशों के नेता ट्रम्प के साथ अलग-अलग रणनीतियां अपना रहे हैं। ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने ट्रम्प को राजकीय यात्रा का निमंत्रण देकर और एक अलग व्यापार समझौते पर काम शुरू करके तुष्टीकरण का रास्ता चुना है। यह कदम कनाडा जैसे सहयोगी देशों के लिए असहज स्थिति पैदा कर सकता है, खासकर जब ट्रम्प ने कनाडा को "51वां अमेरिकी राज्य" बनाने जैसी धमकियां दी हैं। फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने ग्रीनलैंड की प्रतीकात्मक यात्रा कर संप्रभुता के सिद्धांत पर जोर दिया, जो ट्रम्प की धमकियों पर अप्रत्यक्ष टिप्पणी मानी जा रही है।

भारत और गैर-जी7 देशों की भूमिका : समिट में भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, और मेक्सिको जैसे गैर-जी7 देशों के नेताओं को भी आमंत्रित किया गया है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति खास तौर पर चर्चा में है, क्योंकि कनाडा के सिख समुदाय ने उनके निमंत्रण पर नाराजगी जताई है। यह नाराजगी 2023 में खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर भारत और कनाडा के बीच तनाव से जुड़ी है। फिर भी, कनाडाई पीएम मार्क कार्नी ने भारत को आमंत्रित कर द्विपक्षीय संबंधों में सुधार की कोशिश की है।

मोदी के अलावा अन्य गैर-जी7 नेताओं का फोकस भी ट्रम्प के साथ अपने मुद्दों पर चर्चा करने पर है। उदाहरण के लिए, यूक्रेन के ज़ेलेंस्की और मेक्सिको की राष्ट्रपति क्लॉडिया शेनबॉम ट्रम्प के साथ द्विपक्षीय वार्ता को प्राथमिकता दे रहे हैं। इससे जी-7 एकता का मंच कम और द्विपक्षीय वार्ताओं का केंद्र ज्यादा नजर आ रहा है।

क्या है जी-7 की चुनौती?
जी-7 का मूल उद्देश्य वैश्विक आर्थिक और सुरक्षा मुद्दों पर सहयोग को बढ़ावा देना है, लेकिन ट्रम्प की मौजूदगी इसे एक कठिन परीक्षा बना रही है। कनाडा ने संयुक्त घोषणापत्र छोड़कर और समिट की अवधि बढ़ाकर टकराव से बचने की कोशिश की है, लेकिन अगर ट्रम्प फिर से वॉकआउट करते हैं या कोई अप्रत्याशित कदम उठाते हैं, तो जी-7 की विश्वसनीयता पर सवाल उठ सकते हैं।

दूसरी ओर, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि ट्रम्प की अप्रत्याशितता अन्य देशों को अपनी रणनीति मजबूत करने का मौका दे सकती है। भारत जैसे गैर-जी7 देश इस मंच का इस्तेमाल वैश्विक दक्षिण की आवाज उठाने और ट्रम्प के साथ अपने हितों को साधने के लिए कर सकते हैं।

2025 का जी-7 शिखर सम्मेलन ट्रम्प के व्यवहार और नीतियों के इर्द-गिर्द घूमता दिख रहा है। अगर ट्रम्प सहयोगी रुख अपनाते हैं और वैश्विक संकटों पर सकारात्मक चर्चा होती है, तो यह समिट जी-7 की प्रासंगिकता को मजबूत कर सकता है। लेकिन अगर ट्रम्प टैरिफ, वॉकआउट, या अप्रत्याशित बयानों से नया बखेड़ा खड़ा करते हैं, तो यह जी-7 को एक बिखरे हुए मंच के रूप में पेश करेगा। मेजबान कनाडा और अन्य नेताओं की कूटनीतिक कुशलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वे ट्रम्प की अनिश्चितता को कितना संभाल पाते हैं। अंततः, यह समिट न केवल जी-7 की एकता, बल्कि वैश्विक बहुपक्षीय सहयोग की दिशा को भी परिभाषित करेगा।
Edited By: Navin Rangiyal

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