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गांधीजी का पहला भाषण सुन नौकरी छोड़ स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे लोग

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, सोमवार, 1 अक्टूबर 2018 (12:16 IST)
गोरखपुर। स्वतंत्रता आन्दोलन के सूत्रधार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में पहली बार आठ फरवरी 1921 को गोरखपुर के बाले मियां मैदान में अपार जनसमूह को सम्बोधित करते हुए कहा था कि यदि विदेशी वस्त्रों का पूर्ण रूप से बहिष्कार कर दिया जाए और लोगों ने चरखे से कातकर तैयार किए गए धागे का कपड़ा पहनना शुरू कर दिया तो अंग्रेजों को यह देश छोडकर जाने के लिए विवश होना ही पड़ेगा।


उन्होंने कहा था कि हमें गुलामी की जंजीर तोड़ना उतना ही जरूरी है जितना सांस लेने के लिए हवा जरूरी है। उन्होंने यहां ब्रिटिश हुकूमत को देश से हटाने के लिए लोगों का आह्वान किया था। उनके इस भाषण से लोग इतने प्रभावित हुए कि वे सरकारी नौकरियों का त्याग कर आन्दोलन में शामिल हो गए। उस दिन गोरखपुर के बाले मियां के मैदान में एक लाख से अधिक लोग इकट्ठा थे, जहां गांधीजी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में पहला भाषण दिया। उनका भाषण सुनकर सभी लोग उनके मुरीद हो गए थे।

महात्मा गांधी के इस उद्बोधन का परिणाम दो रूप में सामने आया, एक तो लोग स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े और नौकरी व स्कूल छोड़कर सभी गांधीजी के साथ हो लिए। इस संबंध में गांव-गांव पंचायत स्थापित होने लगी। पूर्वी उत्तर पदेश की जनता ने तन-मन धन से गांधीजी को स्वीकार कर लिया और पूर्वांचल के गोरखपुर, खलीलाबाद, संतकबीर नगर, बस्ती, मगहर और मऊ आदि क्षेत्रों में चरखा चलाने वालों की बाढ़ आ गई। गांधीजी ने 30 सितम्बर 1929 से पूर्वांचल का दौरा दूसरे चरण में शुरू किया।

वे चार अक्टूबर 1929 को आजमगढ़ से चलकर नौ बजे गोरखपुर पहुंचे थे। यहां उन्होंने चार दिन तक प्रवास किया। सात अक्टूबर 1929 को उन्होंने गोरखपुर में मौन व्रत भी रखा और 9 अक्टूबर 1938 को बस्ती के लिए रवाना हो गए। उनके साथ जाने वालों में प्रख्यात उर्दू शायर फिराक गोरखपुर भी थे। वर्ष 1930 में नमक सत्याग्रह और 1931 में जमींदारी अत्याचार के विरुद्ध यहां की जनता ने प्रोफेसर शिब्बन लाल सक्सेना के नेतृत्व में आंदोलन में भाग लिया।

वर्ष 1930 में प्रोफेसर सक्सेना ने गांधीजी के आह्वान पर गोरखपुर स्थित सेन्ट एन्ड्रयूज कॉलेज के प्रवक्ता पद का परित्याग कर पूर्वांचल के किसान-मजदूरों का नेतृत्व संभाल लिया। महात्मा गांधी की नजरों से पूर्वांचल में फैली अस्पृश्यता की बीमारी छिप नहीं सकी और उन्होंने इसे दूर करने के लिए 22 जुलाई 1934 से दो अगस्त 1938 तक विभिन्न क्षेत्रों का दौरा किया और गांव-गांव दलित बस्तियों में गए। उस समय उन्हें गोरखपुर में इकट्ठा किए गए 951 रुपए की थैली भी भेंट की गई।

यहीं 19 जुलाई 1921 को बाबा राघव दास गांधीजी के सम्पर्क में आए। उन्होंने कहा कि लोगों को पहनने के लिए वस्त्र मुहैया कराने वाला बुनकर और भोजन मुहैया कराने वाला किसान सबसे अधिक बेहाल है। गन्ना मिलें बन्द हो गई हैं। चरखे और करघे खामोश हैं। देखिए शासन की निगाहें कब इन तक पहुंचती हैं। किसान, बुनकर खुशहाल होंगे तभी तो गांधी का सपना साकार होगा।

आज गांधीजी द्वारा दिए गए अभियानों में एक स्वच्छता अभियान को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में शुरू कर गांधीजी की प्रासंगिकता को और बढ़ा दिया है। गांधीजी की 150वीं जयंती पर स्वच्छ भारत के सपने को साकार करने का संकल्प अब लोगों में दिख रहा है। सरकारी कार्यालयों और स्वयंसेवी संगठनों ने अपने-अपने क्षेत्रों को भी स्वच्छ रखने का बीड़ा उठाया है।

केन्द्र और राज्य सरकार के अधिकारियों व कर्मचारियों ने भी अब इसकी पहल करते हुए हाथों में झाडू लेकर लोगों को संदेश दिया कि अपने आसपास की सफाई सभी का व्यक्तिगत कर्तव्य है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिया गया नारा तब तक सफल नहीं होगा जब तक कि देश का प्रत्‍येक नागरिक अपने हिस्से की सफाई कर्तव्य समझकर नहीं करेगा।

गांधी जयंती के अवसर पर गोरखपुर जिला जेल से पांच बंदी रिहा हो रहे हैं और बंदियों को पांच अक्टूबर को सुबह छोड़ा जाएगा। तीन दिन तक जेल में कार्यक्रम चलेगा। जेल प्रशासन ने रिहा होने वाले चार बंदियों के नामों पर मुहर लगा दी है और एक नाम पर विचार चल रहा है। गौरतलब है कि प्रदेश सरकार ने दो अक्टूबर 'गांधी जयंती' पर आधे से अधिक सजा पूरी कर चुके बंदियों को छोड़ने का निर्णय लिया है और इनकी शेष सजा सरकार माफ कर देगी।

स्वयंसेवी संस्था की मदद से जेल प्रशासन सजा के तौर पर मिला अर्थदंड कोर्ट में जमा कराएगा। गोरखपुर जेल के अधिकारियों ने परीक्षण के बाद गोरखपुर जेल से पांच बंदियों का नाम शासन को भेजा था, जिसमें एक बंदी प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर छूट गया। गांधी जयंती पर रिहा होने वाले चार बंदी अब पांच अक्टूबर को छूटेंगे। गांधी जयंती पर जेल में तीन दिन कार्यक्रम का आयोजन होगा।

इसी बीच गोरखपुर जिला जेल के वरिष्ठ जेल अधीक्षक डॉ. राम धनी ने बताया कि गांधी जयंती पर छूटने वाले बंदियों को जेल के अधिकारी महात्मा गांधी के जीवन पर लिखी गई किताब भेंट करेंगे। उन्होंने बताया कि इस संबंध में कारागार मुख्यालय से निर्देश जारी हुआ है। (वार्ता)

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