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गणेश चतुर्थी: साकार से निराकार की यात्रा

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
मंगलवार, 26 अगस्त 2025 (21:51 IST)
-गुरुदेव श्रीश्री रविशंकर
 
Ganesh Chaturthi 2025: ऐसी मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश पृथ्वी पर अपने भक्तों को अपने सान्निध्य की अनुभूति प्रदान करते हैं। क्या आप जानते हैं कि जिसे हम प्रतिमा में पूजते हैं, वह वास्तव में हमारे भीतर छिपी दिव्यता के बोध का माध्यम है? गणेश चतुर्थी केवल भगवान गणेश के जन्मोत्सव का पर्व नहीं है, यह हमारे भीतर की चेतना को जाग्रत करने की एक आध्यात्मिक यात्रा है। आदिशंकराचार्य ने गणेशजी के बारे में बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है।
 
यद्यपि गणेशजी की पूजा गजमुख वाले भगवान के रूप में की जाती है, लेकिन उनका यह स्वरूप उनके परब्रह्म रूप को प्रकट करने हेतु ही है। उन्हें 'अजम् निर्विकल्पं निराकारमेकम्' कहा गया है। इसका अर्थ है कि गणेशजी कभी जन्म नहीं लेते। वे अजन्मा (अजम्), विकल्परहित (निर्विकल्पम्) और आकाररहित (निराकारम्) हैं। वे उस चेतना के प्रतीक हैं, जो सर्वव्यापी है, इस ब्रह्मांड का कारण है जिससे सब कुछ प्रकट होता है और जिसमें संपूर्ण जगत विलीन हो जाएगा।
 
गणेशजी हमसे कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे जीवन के केंद्र में स्थित हैं। लेकिन यह अत्यंत सूक्ष्म तत्व-ज्ञान है। निराकार को साकार रूप के बिना हर कोई नहीं समझ सकता। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि यह जानते थे इसलिए उन्होंने सभी स्तरों के लोगों के लाभ और समझ के लिए साकार रूप का निर्माण किया। जो निराकार का अनुभव नहीं कर सकते, वे व्यक्त रूप का निरंतर अनुभव करते-करते निराकार ब्रह्म तक पहुंच जाते हैं।
 
वास्तव में गणेशजी निराकार हैं, फिर भी एक ऐसा रूप है जिसकी आदिशंकराचार्य ने उपासना की और वह रूप स्वयं गणेशजी की निराकार सत्ता का संदेश देता है। इस प्रकार साकार रूप एक प्रारंभिक बिंदु के रूप में कार्य करता है और धीरे-धीरे निराकार चेतना जाग्रत होने लगती है।
 
गणेश चतुर्थी का पर्व गणेशजी के साकार रूप की बार-बार पूजा करके निराकार परमात्मा तक पहुंचने की एक अनूठी साधना का प्रतीक है। यहां तक कि गणेश स्तोत्रम् और गणेशजी की स्तुति में की जाने वाली प्रार्थनाएं भी यही संदेश देती हैं।
 
हम अपनी चेतना में स्थित गणेश से प्रार्थना करते हैं कि वे बाहर आएं और कुछ समय के लिए मूर्ति में विराजमान हों ताकि हम उनके साकार रूप के दर्शन कर कृतार्थ अनुभव कर सकें। और पूजा के बाद हम उनसे पुन: प्रार्थना करते हैं कि वे वहीं लौट जाएं, जहां से वे आए थे अर्थात् हमारी ही चेतना में। हमें जो कुछ भी ईश्वर से प्राप्त हुआ है, उन सब पदार्थों को प्रेमपूर्वक पूजा में उन्हें अर्पित करते हैं और स्वयं को धन्य अनुभव करते हैं। 
 
कुछ दिनों की पूजा के बाद मूर्तियों को विसर्जित करने की प्रथा इस समझ की पुष्टि करती है कि ईश्वर मूर्ति में नहीं, बल्कि हमारे भीतर हैं इसलिए सर्वव्यापी स्वरूप का अनुभव करना और उसी स्वरूप से आनंद प्राप्त करना ही गणेश चतुर्थी उत्सव का सार है। एक तरह से इस प्रकार के संगठित उत्सव और पूजा, उत्साह और भक्ति में वृद्धि का कारण बनते हैं।
 
गणेश हमारे भीतर विद्यमान सभी सद्गुणों के स्वामी हैं इसलिए जब हम उनकी पूजा करते हैं तो हमारे भीतर सभी सद्गुण प्रस्फुटित होते हैं। वे ज्ञान और बुद्धि के भी अधिपति हैं। ज्ञान तभी प्रकट होता है, जब हम स्वयं के प्रति जागरूक हो जाते हैं। जब जड़ता होती है, तब न ज्ञान होता है, न बुद्धि, न ही जीवन में कोई जीवंतता या प्रगति। चेतना को जाग्रत करना आवश्यक है और चेतना को जाग्रत करने के लिए प्रत्येक पूजा से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
 
इसलिए मूर्ति स्थापित करें, अनंत प्रेम से उनकी पूजा करें, ध्यान करें और अपने हृदय की गहराइयों से भगवान गणेश का अनुभव करें।  यही गणेश चतुर्थी उत्सव का प्रतीकात्मक सार है- हमारे भीतर छिपे गणेश-तत्व को जाग्रत करना।
 
Edited by: Ravindra Gupta

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