जीवन कटना था कट गया, अच्छा कटा, बुरा कटा...

अरविन्द शुक्ला
गुरुवार, 19 जुलाई 2018 (20:50 IST)
मशहूर कवि और गीतकार गोपाल दास नीरज का 93 वर्ष की आयु में आज यानी गुरुवार को निधन हो गया। नीरज का वह 84वां जन्मदिन था। वही अल्हड़ मस्ती, वही बांकपन। क्या खोया, क्या पाया? अचानक गंभीर मुद्रा में नीरज बोले बस यही इच्छा है कि 'कालजयी रचना लिख जाऊं'। नीरज ने कहा था कि पिछले 65 वर्षों से जनता उन्हें बड़े प्यार से सुनती है और वह प्यार आज भी मेरे पास है।
 
कवि नीरज के 84वें जन्मदिन पर वेबदुनिया ने उनसे खास बातचीत की थी, जिसमें उन्होंने अपने जीवन से जुड़े हर पहलू पर खुलकर बातचीत की थी। वेबदुनिया के पाठकों के लिए हम एक बार फिर इसी साक्षात्कार को पेश कर रहे हैं। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश- 
 
काश! कालजयी रचना लिख जाऊँ : नीरज का कहना था कि यद्यपि हिन्दी फिल्म 'नई उमर की नई फसल' का फिल्मी गीत 'कारवाँ गुजर गया...' काफी चर्चित हुआ फिर भी उन्हें मलाल है कि वे जयशंकर प्रसाद की कामायनी, तुलसी के राम चरितमानस और पैराडाइज्ड लॉस्ट की तरह कोई कालजयी रचना नहीं लिख सके।
 
नीरज ने कहा उन्होंने प्रयास शुरू-शुरू में किया था, किन्तु कालजयी रचना लिखने के लिए शांति चाहिए जो उनके संघर्षमय जीवन में न मिल सकी। वे बोले कि अब महाकाव्य का काल भी नहीं रहा। हर चीजें छोटी होती जा रही हैं जैसे युवतियों के बदन के कपड़े।
 
जन्मदिन 4 जनवरी को : इसे महज संयोग ही कहें कि वेबदुनिया संवाददाता नीरजजी से मिलने 4 जनवरी को उनके अलीगढ़ जनकपुरी स्थित आवास 'नीरज निशा' पहुंचे। नीरजजी घर के बाहर आँगन में एक पाइप वाले पलंग पर बैठे गुलाबी धूप का आनन्द ले रहे थे। चेक वाली लुंगी, स्लेटी रंग का पूरी आस्तीन का स्वेटर, गले में सोने की चेन और बेफिक्र सफेद बाल उनके व्यक्तित्व को निखार रहे थे। गले में मोबाइल लटका था, जिस पर बधाई संदेशों का आदान-प्रदान हो रहा था।
 
मुझ पर नजर पड़ते ही लपककर अभिवादन की मुद्रा में वे आ गए और बोले कि बहुत अच्छे समय आए, आज हमारा जन्मदिन है। यह कहकर उन्होंने घर वालों से लड्डू मँगवाए। हैरत हुई, धीरे से पूछा कि आपका जन्मदिन तो 8 फरवरी को होता है? वे जोर से हँसते हुए बोले- अरे वह तो घर वालों ने उमर कम दिखाने को स्कूल के रिकॉर्ड में दर्ज करा दिया था। रिकॉर्ड में तो जन्मतिथि वही है, लेकिन जन्मदिन आज है। नीरज ने बताया कि उनकी असली जन्मतिथि 4 जनवरी, 1925 है। 
 
इसी बीच उनके अनेक चाहने वालों के बराबर मोबाइल पर जन्मदिन की शुभकामना संदेश आ रहे थे। पास-पड़ोसी भी उन्हें जन्मदिन की बधाइयाँ देकर लड्डू खिलाने लगे। नीरजजी के इस जन्मदिन का साक्षी बन मन रोमांचित हो रहा था।
 
याद आया अमर प्रेम : दोपहर की खिली धूप और खुशी का मौका। चर्चा के दौरान अचानक नीरजजी अपने जीवन के सफर में गोता लगाने लगे। एकाएक वे भावुक हो गए और इस क्षण अपने अमर प्रेम को याद करने लगे-
 
मेरे प्राणों एक निकाह,
सती बन गई जिसकी धुन में,
आत्मा की गणिका। 
 
नीरज बोले कि वर्ष 1952 से 1962 तक का मेरे जीवन का बड़ा काल था, जब उनके जीवन में किसी महिला मित्र ने प्रवेश किया था। उसका नाम न लेकर वह बोले वह गुजराती कहानी लेखिका थी। जीवन के इन 12 सालों में उसके प्रेम से नीरज को ऊँचाइयाँ मिलीं। उन्होंने कहा कि इसी दौरान उन्होंने सर्वश्रेष्ठ लेखन किया।
 
नीरज ने कहा कि उसके प्रेम से उनको महान आध्यात्मिक बल और उसके प्यार से आध्यात्मिक दृष्टि मिली। अपनी गुजराती लेखिका मित्र के पत्रों का नीरज ने प्रकाशन भी कराया है। किताब का नाम है 'प्रेम पत्र नीरज के नाम'। उन्होंने कहा कि उनकी गुजराती लेखिका मित्र द्वारा भेजे गए पत्रों का एक चौथाई भी प्रकाशित नहीं हुए हैं।
 
उन्होंने बताया कि उनकी महिला मित्र ने 65-65 पेज के पत्र उन्हें लिखे हैं। यह सभी पत्र अंग्रेजी में हैं जिसका हिन्दी अनुवाद स्वयं नीरज ने ही किया। नीरज बोले पत्र लिखना एक कला है। वे बोले आजकल मोबाइल के युग में लोग पत्र लिखना भूल गए। नीरज ने प्रश्न किया आजकल पत्र क्यों बिकेंगे? 
 
नई विधा 'पाती' : अपनी महिला मित्र के पत्रों से प्रभावित होकर गोपालदास नीरज ने नई विधा 'पाती' चलाई। 1953 से 1965 तक यह विधा चली। नीरज ने कहा कि एकाध लोगों को छोड़ कोई इस विधा पर लिख नहीं पाया। जब मिस्र देश पर हमला हुआ था तब नीरज ने 'नील की बेटी' नाम से पाती लिखी थी जिसका कि अरबी भाषा में अनुवाद हुआ था। उसमे नीरज ने लिखा था-
 
नील की बेटी न घबराना,
समझ से काम लेना,
गर उठे तूफान,
हिन्दुस्तान को आवाज देना।
 
नीरज ने कहा कि अचानक उनकी महिला मित्र उनसे दूर चली गईं। आजकल कहाँ हैं उन्हें मालूम नहीं। नीरज ने कहा कि उन्हें अचानक अपनी महिला मित्र से विछोह हुआ और जिसका उत्तरदायी मैं हूँ। वे बोले-
 
अगाध समुद्र, सातों जनम डुबकी लगाते रहो अगर,
सभी धर्मों को पढ़ा, सत्य क्या मिला,
हर धर्म के आदेश को माना मैंने,
दर्शन के हर सूत्र को छाना मैंने,
जब जान लिया सब कुछ ऐ मेरे नीरज, 
मै कुछ भी नही जानता,
यह जाना मैंने जीवन का सत्य।
 
दार्शनिक कवि : गीतकार नीरज ने कहा कि मूर्खों ने उन्हें श्रंगारिक कवि कहा। उन्होंने कहा कि जो मुझे समझते नहीं वह मुझे रोमांटिक कवि कहते हैं। नीरज ने दावे के साथ कहा कि वे दार्शनिक कवि हैं।
 
उन्होंने कहा यद्यपि दर्शन को नीरस कहा गया है और दर्शन कविता के पंख कतर देता है। नीरज ने कहा कि फिर भी रूमानी बिम्ब के माध्यम से दर्शन की बात सरस हो जाती है। वे कहते हैं-
 
सागर में कोई न बचा, 
सबके सब क्षण में डूब गए,
एक पल ही जीवन है,
जो मझधारों बच गए,
वे किसी नयन में डूब गए।
 
इसी सदी में मृत्यु पर विजय : लगता है गीतकार नीरज के जीवन पर महर्षि अरविन्द के दर्शन का गहरा प्रभाव पड़ा है। नीरज ने कहा कि यह सच है कि इसी सदी में मनुष्य मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेगा और इसके लिए महर्षि अरविन्द का फार्मूला आसान है।
 
नीरज ने कहा कि अरविन्द के अनुसार पदार्थ को चेतना में और चेतना को पदार्थ में बदला जा सकता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य का शरीर पदार्थ और चेतना ऊर्जा है। उनका दावा है कि इसी सदी में मनुष्य यह जरूर सीख जाएगा और फिर मृत्यु पर प्राप्त कर लेगा विजय।
 
मृत्यु है क्या?
घबड़ाते सूरज से प्राण,
धरा से पाया है शरीर,
ऋण लिया वायु से है, 
हमने इन साँसों का,
सागर ने दान दिया आँसू का प्रवाह,
नभ में सूनापन, विफल विधुर उच्छवासों का,
जो जिसका है उसको उसका धन लौटाकर, 
मृत्यु के बहाने हम ऋण यहीं चुकाते हैं,
कोई-कोई कहता है अभिशाप ताप,
वरदान समझकर जिसे खुशी मनाते हैं,
खुशी का दिन।
 
नीरज ने क्या नहीं लिखा। गीत, लोकगीत, दार्शनिक गीत, फिल्मी गीत, भक्तिगीत, प्रेमगीत, दोहा, गजल, हाइकू, छंद से कविता यहाँ तक कि ज्योतिष पर भी कविता लिखी। उन्होंने बताया कि ज्योतिष पर उन्होंने तीन किताबें लिखी हैं- नीरज ज्योतिष दोहावली, शुकनाड़ी, ज्योतिष दोहावली (तीन खंडों में)।
 
उन्होंने बताया कि संस्कृत के श्लोकों को उन्होंने दोहे में लिखा। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इन्दिरा गाँधी को वे महाभाग्यवान मानते थे क्योंकि ऐसा योग उनकी कुंडली में था। नीरज कहते हैं कि अर्धरात्रि में जन्म लेने वाली स्त्री, जिसकी कुंडली में सूर्य, चन्द्रमा और लग्न सम राशि में हों वह महाभाग्यवान होती है। वे लिखते हैं-
 
जन्मराशि में, लग्न सम, समय राशि रविचन्द्र,
है नारी के लिए यह महाभाग्य का छन्द।
 
ज्योतिष ब्रह्मांडीय संगीत : गीतकार नीरज कहते हैं कि ज्योतिष संगीत है ब्रह्मण्ड का संगीत (म्यूजिक ऑफ कॉसमॉस)। नीरज कहते है कि संसार के दो ही सत्य हैं- एक तो कुछ भी स्थिर नहीं, दूसरा सब कुछ लय में है। धरती लय में चलती है, ग्रह-नक्षत्र भी और मनुष्य का पूरा जीवन लयमय है। वे कहते हैं-
 
ज्योतिष लय ब्रह्मांड की, बहती सरित समान,
उद्गम पर अध्यात्म है, संगम पर विज्ञान।
 
नीरज और बीड़ी : नीरजजी अपनी रौ में थे। बड़े इत्मिनान से वे लोकल मार्का बीड़ी सुलगा रहे थे। जब वे बीड़ी का कस लेते मानो सारे जमाने का दर्द अपने सीने में पी लेते। मुझ पर नजर पड़ते ही बोले बीड़ी के अलावा और कोई लत नहीं।
 
बात चल पड़ी फिल्मी गीत 'बीड़ी जलइले जिगर से पिया, जिगर मा बड़ी आग है...'। इस गीत पर नीरज बोले लोगों को होगी आपत्ति मुझे नहीं। उन्होंने कहा कि गुलजार शानदार लिखते हैं। यह गीत सिचुएशन की माँग थी। गीत में प्रयोग किया गया है।
 
नीरज बोले की उन्होंने सिचुएशन पर खटमल पर भी फिल्मी गीत लिखा था- धीरे से जाना खटमल खटियन में..., जिसे लोगों ने खूब पसंद किया था। मैंने टोका और कहा क्या अब पीते नहीं। वे बोले लत नहीं है। मंच पर ऊर्जा के लिए ले लेता हूँ। उन्होंने कहा कि बदनाम हैं नीरज-
 
इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने से,
तुमको लग जाएँगी सदियाँ हमें भुलाने में।
 
कवि, गीतकार नीरज कई मायनों में अपनी समरूपता केवल अपने से 9 दिन बड़े पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी से करते हैं। वे उन दिनों की याद में खो जाते हैं जब वे दोनों कानपुर के डीएवी कॉलेज के एक ही छात्रावास में दो वर्षों तक रहकर साथ-साथ कवि सम्मेलनों में जाते थे। 
 
अपने जन्मदिन पर नीरज बेहद खुश थे। मानो सब कुछ न्योछावर कर दें। पूछा- क्या आप संतुष्ट हैं? नीरज बोले बेहद। उनका मानना है कि उन्हें हिन्दी और उर्दू दोनों ही समाज के लोगों ने भरपूर सम्मान दिया। समाज ने ही यश भारती, मानद डीलिट उपाधि, हिन्दी वाचस्पति, पद्मश्री, पद्मभूषण दिया और आज भी मैं मंगलायतन विश्वविद्यालय का कुलाधिपति हूँ।
 
नीरज ने सुनाया-
जीवन कटना था कट गया, 
अच्छा कटा, बुरा कटा,
यह तुम जानो,
मैं तो यह समझता हूँ, 
कर्जा जो मिट्टी का पटना था पट गया।
 
अनोखा है इन्दौर : गीतकार नीरज के लिए मध्यप्रदेश का शहर इन्दौर अनोखा है क्योंकि देश में एक मात्र इन्दौर शहर ही ऐसा है, जहाँ वे पिछले 55-56 वर्षों से लगातार जा रहे हैं और यह सिलसिला अभी तक खत्म नहीं हुआ है।
 
नीरज भावविभोर होकर आश्चर्य से कहते हैं कि 'एक नगर किसी को इतना प्यार कर सकता है'। उन्होंने बताया कि जब इन्दौर नगर में उनके लगातार आगमन का 51वाँ वर्ष हुआ था तो इन्दौर में उनका अभिनन्दन हुआ था जिसकी याद आज तक उन्होंने सँजो रखी है। नीरज ने इस मौके पर इन्दौर में अपने मित्र साहित्यकार एवं कवि सरोज कुमार का विशेष उल्लेख किया। 
 
वर्ष 1941 से लेखन करने वाले गीतकार नीरज के साहित्य का प्रकाशन मुख्यतः मेसर्स आत्माराम एंड सन्स, दिल्ली ने किया इसके अलावा पेंग्विन और हिन्द पॉकेट बुक्स ने भी उनकी रचनाओं को प्रकाशित किया है।
 
नीरज की नई पुस्तक 'आज की लोकप्रिय कवयित्रियाँ' का ताजा प्रकाशन है, जिसका संपादन नीरज ने किया है। उन्होंने बताया कि इसमें देश की लोकप्रिय कवयित्रियों के बारे में प्रकाश डाला गया है जिनमें सरिता शर्मा, कीर्ति काले, श्रीसीता सागर, अनुरूपन, उमाश्री एवं किरणसिंह प्रमुख हैं।
 
छायाकार के आ जाने के कारण बातचीत का सिलसिला थम जाता है और नीरजजी फोटो खिंचवाने को तैयार होते है किन्तु कहते हैं कि पहले दाँत (नकली सेट) लगा लें और कमीज पहन लें, वे हरे रंग की कमीज पहन लेते हैं। फोटो ‍खिंचवाने के बाद जैसे उन्हें समय का भान (दिन के दो बजे) होता है। कहते हैं कि अब मुझे नहाने जाना है और यह कहकर वह पलंग से उठ जाते हैं।

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