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क्या मोदी अब पुतिन और शी जिनपिंग के पाले में जा चुके हैं?

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हमें फॉलो करें Narendra Modi closeness to Putin and Jinping
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संदीपसिंह सिसोदिया

, मंगलवार, 2 सितम्बर 2025 (14:38 IST)
Narendra Modi closeness to Putin and Jinping: प्रधानमंत्री मोदी के हालिया चीन दौरे से ही विदेशी मीडिया में यह चर्चा तेज हो रही है कि क्या भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में रूस और चीन के नेताओं— व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग के करीब जा रहा है? कुछ विश्लेषकों का मानना है कि डोनाल्ड ट्रम्प की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति और भारत पर लगाए गए आर्थिक दबाव ने भारत को अपनी विदेश नीति में रणनीतिक बदलाव के लिए मजबूर किया है। हालांकि, यह कहना कि भारत पूरी तरह से रूस और चीन के पाले में चला गया है, शायद जल्दबाज़ी होगी। फिर भी, भारत की हालिया कूटनीतिक गतिविधियां, विशेषकर शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में मोदी की उपस्थिति यह संकेत देती हैं कि भारत अब वैश्विक शक्तियों के बीच संतुलन साधने की कोशिश कर रहा है।
 
ट्रम्प की नीतियों का प्रभाव : हाल ही में ट्रम्प प्रशासन ने भारत-अमेरिका व्यापार को 'एकतरफा' करार देते हुए भारत पर 50 फीसदी टैरिफ थोप दिया, जो कि दुनिया में सबसे ज्यादा है। इसने भारत की ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति को झटका दिया, जिसका मकसद पश्चिमी कंपनियों को चीन से बाहर निकलकर भारत में निवेश के लिए प्रोत्साहित करना था। ट्रम्प की नीतियों ने भारत को अमेरिका पर आर्थिक और रणनीतिक निर्भरता कम करने के लिए मजबूर किया।
 
लंदन स्थित थिंक टैंक ‘चैथम हाउस’ के वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ. गैरेथ प्राइस कहते हैं, “ट्रम्प की नीतियों ने भारत को यह अहसास दिलाया कि वह केवल पश्चिमी देशों पर निर्भर नहीं रह सकता। भारत अब रूस और चीन जैसे देशों के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करके एक बहुध्रुवीय विश्व में अपनी स्थिति को सुरक्षित करना चाहता है।”
 
SCO शिखर सम्मेलन : एक भू-राजनीतिक संदेश
मोदी की हालिया चीन यात्रा, जो सात वर्षों में उनकी पहली यात्रा थी, ने वैश्विक मंच पर चर्चा छेड़ दी। SCO शिखर सम्मेलन में मोदी और शी जिनपिंग की मुलाक़ात को एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। दोनों नेताओं ने भारत और चीन को “प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि भागीदार” बताया। यह बयान इस बात का संकेत है कि दोनों देश ट्रम्प युग की आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच अपने संबंधों को फिर से परिभाषित करने के लिए तैयार हैं।
 
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर और दक्षिण एशिया मामलों के विशेषज्ञ जेम्स क्रॉल कहते हैं, "यह सिर्फ एक मुलाकात नहीं थी, बल्कि एक रणनीतिक संदेश था। भारत ने अमेरिका को साफ तौर पर बता दिया कि उसके आर्थिक दबाव का जवाब रणनीतिक विविधीकरण से दिया जाएगा।" क्रॉल आगे कहते हैं, "भारत अपनी विदेश नीति में अपने राष्ट्रीय हितों को सबसे ऊपर रखता है और अगर अमेरिका उसे आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचा रहा है, तो भारत चीन के साथ संबंधों को सुधारने में संकोच नहीं करेगा।"
 
वहीं, रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने SCO मंच का उपयोग पश्चिमी देशों पर यूक्रेन युद्ध के लिए निशाना साधने के लिए किया। शी जिनपिंग ने भी अमेरिका की “दादागिरी” की आलोचना की और “शीत युद्ध की मानसिकता” का विरोध करने का आह्वान किया। भारत की इस मंच पर उपस्थिति ने पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका, को यह स्पष्ट संदेश दिया कि भारत अब एकतरफ़ा दबाव का जवाब रणनीतिक विविधीकरण से देगा।
 
वाशिंगटन के ‘सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज’ (CSIS) के विशेषज्ञ रिचर्ड रॉसो कहते हैं, “भारत की SCO में भागीदारी और रूस-चीन के साथ बढ़ती नज़दीकियां यह दर्शाती हैं कि भारत अब गुटनिरपेक्षता की अपनी नीति को नए रूप में लागू कर रहा है। यह एक ऐसी रणनीति है, जो भारत को किसी भी एक गुट के साथ पूरी तरह बंधने से रोकती है।”
 
भारत-चीन संबंधों का जटिल भविष्य : भारत और चीन के बीच संबंधों का भविष्य आर्थिक सहयोग और रणनीतिक अविश्वास के बीच एक जटिल संतुलन बनाए रखने वाला है। 2020 की गलवान घाटी हिंसा के बाद दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर था, लेकिन SCO शिखर सम्मेलन ने संभावित सुलह का रास्ता दिखाया। दोनों देशों ने आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने की बात कही, लेकिन सीमा विवाद पर मतभेद बरकरार हैं। भारत का रुख स्पष्ट है कि सीमा पर शांति के बिना द्विपक्षीय संबंध सामान्य नहीं हो सकते, जबकि चीन इसे अलग मुद्दा मानता है।
 
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर ग्राहम एलिसन कहते हैं, "भारत-चीन संबंध एक क्लासिक 'थुसीडाइड्स ट्रैप' (Thucydides Trap) का उदाहरण हैं, जहां एक बढ़ती हुई शक्ति (भारत) एक स्थापित शक्ति (चीन) के लिए खतरा बन रही है। लेकिन, वे दोनों जानते हैं कि सीधे टकराव से दोनों को नुकसान होगा। इसलिए, वे SCO जैसे बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग करते रहेंगे, जहां उनके हित अमेरिका के प्रभुत्व को चुनौती देने में समान हैं।"
 
भारत और चीन दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं और उनके बीच का व्यापार खरबों डॉलर का है। भारत, चीन से इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और अन्य सामान आयात करता है, जबकि चीन के लिए भारत एक बड़ा बाज़ार है। ट्रम्प की नीतियों के कारण उत्पन्न आर्थिक दबाव ने भारत के लिए चीन के साथ आर्थिक संबंधों को बनाए रखना और भी ज़रूरी बना दिया है।
 
जर्मनी के ‘मर्केटर इंस्टीट्यूट फॉर चाइना स्टडीज’ की विश्लेषक डॉ. सारा हेस कहती हैं, “भारत और चीन के बीच आर्थिक सहयोग अपरिहार्य है, लेकिन रणनीतिक अविश्वास दोनों देशों को एक-दूसरे के साथ सतर्क रहने के लिए मजबूर करता है। यह एक ‘जटिल सह-अस्तित्व’ का दौर है, जहां सहयोग और प्रतिस्पर्धा साथ-साथ चलते हैं।”
 
भारत की नई गुटनिरपेक्ष नीति : भारत की हालिया कूटनीतिक चालें उसकी दशकों पुरानी गुटनिरपेक्ष नीति के आधुनिक संस्करण को दर्शाती हैं। भारत न तो पूरी तरह से पश्चिम के साथ है और न ही रूस-चीन के पाले में। वह अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देता है और वैश्विक शक्तियों के बीच संतुलन साधने की कोशिश कर रहा है। SCO जैसे मंच भारत को ग्लोबल साउथ के नेतृत्व में अपनी भूमिका मज़बूत करने का अवसर देते हैं।
 
हालांकि, यह भी सच है कि भारत के लिए अमेरिका के साथ संबंध अभी भी महत्वपूर्ण हैं। क्वाड जैसे गठबंधनों में भारत की भागीदारी और अमेरिका के साथ रक्षा सहयोग इस बात का संकेत हैं कि भारत पूरी तरह से पश्चिम से दूरी नहीं बना रहा। लेकिन ट्रम्प की नीतियों ने भारत को यह सिखाया है कि वह अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखे और किसी एक शक्ति पर अत्यधिक निर्भर न हो।
 
क्या भारत वाकई पुतिन और शी के पाले में जा चुका है? इसका जवाब इतना सरल नहीं है। भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखते हुए वैश्विक शक्तियों के बीच संतुलन साध रहा है। रूस और चीन के साथ बढ़ती नज़दीकियां भारत की उस नीति का हिस्सा हैं, जो इसे किसी एक गुट के प्रभुत्व से बचाने और अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने की कोशिश करती है। 
 
भविष्य में, दोनों देशों के संबंध एक "जटिल सह-अस्तित्व" (complex co-existence) की स्थिति में रहने की संभावना है। आर्थिक संबंध भले ही मज़बूत हों, लेकिन रणनीतिक अविश्वास बना रहेगा। दोनों देश एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करते रहेंगे, विशेषकर एशियाई क्षेत्र में अपने प्रभाव को लेकर, लेकिन साथ ही वे अपने राष्ट्रीय हितों के लिए सहयोग भी करेंगे। भारत की नई विदेश नीति अमेरिका और चीन के बीच एक संतुलन साधने की कोशिश है, जहाँ वह अपने राष्ट्रीय हितों के लिए दोनों से ही लाभ उठाने का प्रयास करता है। यह भारत की दशकों पुरानी गुटनिरपेक्ष नीति का एक नया और अधिक यथार्थवादी संस्करण है।

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