राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना की हकीकत

Webdunia
शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018 (13:16 IST)
नई दिल्ली। जब से मोदी सरकार शासन में आई है तब से इस तरह की योजना की चर्चा होती रही है। 2015-16 के बजट भाषण में वित्त मंत्री ने एक लाख रुपए के कवरेज के साथ यही घोषणा की थी। 
 
लेकिन यह योजना आज तक अमल में नहीं आई है, इसलिए सरकार ने 2018-19 के बजट में जो दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की है, उसका क्रियान्वयन कब और कैसे होगा, इस बात का कोई अता पता नहीं है?   
 
जबकि वास्तविकता यह है कि भारत सरकार एक तरफ तो सरकारी अस्पतालों की स्थिति कमजोर करती जा रही है और दूसरी तरफ लोगों को स्वास्थ्य सुरक्षा के नाम पर निजी अस्पतालों की तरफ धकेलती रही है। इस तरह की योजनाओं का लाभ निजी अस्पतालों और बीमा कंपनियों को होता है और यह सरकारी स्तर पर होने वाली बंदरबांट से ज्यादा कुछ नहीं है।  
 
ऐसा लगता है कि सरकार ने स्वास्थ्य और शिक्षा को निजी क्षेत्र के लिए ही छोड़ दिया है। परिणामस्वरूप देश में सरकारी अस्पताल बद से बदतर होते जा रहे हैं तो लोगों के पास निजी अस्पतालों में जाने के सिवा कोई चारा नहीं है जहां उन्हें केवल शोषण का शिकार होना पड़ता है। लोगों से बेहतर इलाज के नाम पर लाखों रुपए के बिल दिए जाते हैं और बिल न भर पाने की हालत में मृत मरीजों के शव तक नहीं दिए जाते हैं। 
 
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2018-19 के बजट में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना की घोषणा करते समय इसे विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना बताया है। वित्त मंत्री ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के 10 करोड़ परिवारों के प्रति व्यक्ति को 5 लाख रुपए के स्वास्थ्य बीमा का वादा किया। अस्पताल में भर्ती होने पर प्रत्येक परिवार को हर साल 5 लाख का कवर मिलेगा।
 
विदित हो कि 15 अगस्त 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने लाल किले से भाषण में गरीबों की मदद के लिए इसका जिक्र किया था लेकिन नवंबर 2016 से यह प्रस्ताव केंद्रीय मंत्र‍िमंडल के पास है। अब इस नई योजना का क्रियान्वयन कब और कैसे होगा , कोई नहीं जानता क्योंकि सरकार को योजना के नाम पर वाह-वाही लूटनी थी सो लूट ली गई। सरकार के पास इस बात का भी कोई रिकार्ड नहीं रहता है कि उसकी सुविधाओं का लाभ उठाने वाले लोग कौन हैं और कैसे उन्हें लाभ पहुंचाया गया?   
 
2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी के अगुवाई वाले गठबंधन ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन को बेहतर योजना से बदलने का वादा किया था। इसमें बीमा के बदले मदद को तवज्जो दी गई थी। लेकिन घूम फिरकर सरकार वापस बीमा पर ही भरोसा दिखा रही है लेकिन इस सारी कवायद में केवल बड़े निजी अस्पतालों और बीमा कंपनियों का भला होता है। वैसे भी विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय वित्त संगठन चाहते हैं कि भारत जैसे देश में विकास के लिए विदेशी बीमा कंपनियों भी सौ फीसदी प्रवेश दिया जाए।
 
चूंकि सरकारी अस्पताल बद से बदतर होते जा रहे हैं तो लोगों के पास निजी अस्पतालों में जाने के सिवा कोई चारा नहीं है जहां उन्हें न केवल शोषण का शिकार होना पड़ता है बल्कि भारी कीमत की वजह से आर्थिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। प्राइवेट अस्पतालों में इलाज से कई लोग कर्जदार हो जाते हैं। 2015 में नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) के एक सर्वे के मुताबिक, 70 प्रतिशत से ज्यादा बीमारियों का इलाज निजी अस्पतालों में हुआ है। 72 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र और 79 प्रतिशत शहरी क्षेत्र में रहने वाले लोगों ने निजी क्षेत्र पर भरोसा किया। निजी क्षेत्र में नर्सिंग होम और चेरिटेबल संस्थान भी शामिल हैं।
 
एसएसएसओ की एक दूसरी रिपोर्ट कहती है कि लोगों के द्वारा निजी क्षेत्र पर अधिक पैसा खर्च करने की वजह सरकारी स्वास्थ्य तंत्र का क्षरण है। प्राइवेट नर्सिंग होम में इलाज से औसतन 25,850 रुपए का खर्च बैठता है जो सरकारी अस्पताल के मुकाबले 3 गुणा अधिक है। प्राइवेट अस्पतालों की वास्तविक लागत और अधिक बैठेगी क्योंकि एनएसएसओ के सर्वे में चैरिटी हॉस्पिटल को प्राइवेट श्रेणी में माना गया है।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

महाराष्ट्र में कौनसी पार्टी असली और कौनसी नकली, भ्रमित हुआ मतदाता

Prajwal Revanna : यौन उत्पीड़न मामले में JDS सांसद प्रज्वल रेवन्ना पर एक्शन, पार्टी से कर दिए गए सस्पेंड

क्या इस्लाम न मानने वालों पर शरिया कानून लागू होगा, महिला की याचिका पर केंद्र व केरल सरकार को SC का नोटिस

MP कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और MLA विक्रांत भूरिया पर पास्को एक्ट में FIR दर्ज

टूड्रो के सामने लगे खालिस्तान जिंदाबाद के नारे, भारत ने राजदूत को किया तलब

कोविशील्ड वैक्सीन लगवाने वालों को साइड इफेक्ट का कितना डर, डॉ. रमन गंगाखेडकर से जानें आपके हर सवाल का जवाब?

Covishield Vaccine से Blood clotting और Heart attack पर क्‍या कहते हैं डॉक्‍टर्स, जानिए कितना है रिस्‍क?

इस्लामाबाद हाई कोर्ट का अहम फैसला, नहीं मिला इमरान के पास गोपनीय दस्तावेज होने का कोई सबूत

पुलिस ने स्कूलों को धमकी को बताया फर्जी, कहा जांच में कुछ नहीं मिला

दिल्ली-NCR के कितने स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी, अब तक क्या एक्शन हुआ?

अगला लेख