मुस्लिमों के लिए भी आस्था का केंद्र 'नानी का हज' माता हिंगलाज

Webdunia
रविवार, 6 अक्टूबर 2019 (16:30 IST)
जैसलमेर। पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हिन्दुओं के आस्था का केंद्र 'नानी का हज' माता हिंगलाज की मुसलमान भी उपासना एवं पूजा करते हैं। देश के 51 शक्तिपीठों में से एक हिंगलाज शक्तिपीठ पश्चिमी राजस्थान के हिन्दुओं की आस्था का केंद्र है। मुसलमान हिंगुला देवी को 'नानी' तथा वहां की यात्रा को 'नानी का हज' कहते हैं। पूरे बलूचिस्तान के मुसलमान भी इनकी उपासना एवं पूजा करते हैं।

पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। ये अत्यंत पावन तीर्थ कहलाए। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। हिंगलाज की यात्रा कराची से 10 किलोमीटर दूर हॉव नदी से शुरू होती है। हिंगलाज जाने के पहले लासबेला में माता की मूर्ति का दर्शन करना होता है। यह दर्शन छड़ीदार (पुरोहित) कराते हैं। वहां से शिवकुण्ड (चंद्रकूप) जाते हैं, जहां अपने पाप की घोषणा कर नारियल चढ़ाते हैं, जिनकी पाप मुक्ति हो गई और दरबार की आज्ञा मिल गई, उनका नारियल तथा भेंट स्वीकार हो जाती है वरना नारियल वापस लौट आता है।

ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि हिंगलाज माता के दर्शन से पुनर्जन्म कष्ट नहीं भोगना पड़ता है। बृहन्नील तंत्रानुसार यहां सती का 'ब्रह्मरंध्र' गिरा था। हिंगलाज को 'आग्नेय शक्तिपीठ तीर्थ' भी कहते हैं, क्योंकि वहां जाने से पूर्व अग्नि उगलते चंद्रकूप पर यात्री को जोर-जोर से अपने गुप्त पापों का विवरण देना पड़ता है तथा भविष्य में उसकी पुनरावृत्ति न करने का वचन भी देना पड़ता है। इसके बाद चंद्रकूप दरबार की आज्ञा मिलती है। चंद्रकूप तीर्थ पहाड़ियों के बीच में धूम्र उगलता एक ऊंचा पहाड़ है। वहां विशाल बुलबुले उठते रहते हैं। आग तो नहीं दिखती किंतु अंदर से यह खौलता, भाप उगलता ज्वालामुखी है। देवी के शक्तिपीठों में कामाख्या, कांची, त्रिपुरा, हिंगलाज प्रमुख शक्तिपीठ हैं। हिंगुला का अर्थ सिन्दूर है।

हिंगलाज क्षत्रिय समाज की कुल देवी हैं। कहते हैं, जब 21 बार क्षत्रियों का संहार कर परशुराम आए, तब बचे राजागण माता हिंगलाज देवी की शरण में गए और अपनी रक्षा की याचना की, तब मां ने उन्हें ब्रह्म क्षत्रिय कहकर अभयदान दिया। मां के मंदिर के नीचे अघोर नदी है। कहते हैं कि रावण वध के पश्चात् ऋषियों ने राम से ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति हेतु हिंगलाज में यज्ञ करके कबूतरों को दाना चुगाने को कहा। श्रीराम ने वैसे ही किया। उन्होंने ग्वार के दाने हिंगोस नदी में डाले। वे दाने ठूमरा बनकर उभरे, तब उन्हें ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति मिली। वे दाने आज भी यात्री वहां से जमा करके ले जाते हैं।

मां की गुफा के अंतिम पड़ाव पर पहुंचकर यात्री विश्राम करते हैं। अगले दिन सूर्योदय से पूर्व अघोर नदी में स्नान करके पूजन सामग्री लेकर दर्शन हेतु जाते हैं। नदी के पार पहाड़ी पर मां की गुफा है। गुफा के पास ही अतिमानवीय शिल्प-कौशल का नमूना माता हिंगलाज का महल है, जो यज्ञों द्वारा निर्मित माना जाता है। एक नितांत रहस्यमय नगर जो प्रतीत होता है, मानो पहाड़ को पिघलाकर बनाया गया हो। हवा नहीं, प्रकाश नहीं, परंतु रंगीन पत्थर लटकते हैं। वहां के फर्श भी रंगबिरंगे हैं। 2 पहाड़ियों के बीच रेतीली पगडंडी। कहीं खजूर के वृक्ष, तो कही झाड़ियों के बीच पानी का सोता। उसके पार ही है मां की गुफा।

सचमुच मां की अपरंपार कृपा से भक्त वहां पहुंचते हैं। कुछ सीढ़ियां चढ़कर, गुफा का द्वार आता है तथा विशालकाय गुफा के अंतिम छोर पर वेदी पर दीया जलता रहता है। वहां पिंडी देखकर सहज ही वैष्णोदेवी की स्मृति आ जाती है। गुफा के 2 ओर दीवार बनाकर उसे एक संरक्षित रूप दे दिया गया है। मां की गुफा के बाहर विशाल शिलाखंड पर, सूर्य-चंद्र की आकृतियां अंकित हैं। कहते हैं कि ये आकृतियां राम ने यहां यज्ञ के पश्चात स्वयं अंकित की थी। यहां प्रतिवर्ष अप्रैल में धार्मिक महोत्सव का आयोजन होता है, जिसमें दूरदराज के इलाके से लोग आते हैं। हिंगलाज देवी की यात्रा के लिए पारपत्र तथा वीज़ा जरूरी है।

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