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History of Vaccination in India : भारत में टीकाकरण का इतिहास, पहला Vaccine 3 साल की बच्ची को

हमें फॉलो करें History of Vaccination in India : भारत में टीकाकरण का इतिहास, पहला Vaccine 3 साल की बच्ची को

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, शनिवार, 12 जून 2021 (09:00 IST)
कोरोनावायरस (Coronavirus) काल में भारत ही नहीं पूरी दुनिया में टीकाकरण (Vaccination) पर जोर है। क्योंकि कोविड-19 (Covid-19) का कोई कारगर इलाज अभी सामने नहीं आया है। इस महामारी के चलते दुनिया में करोड़ों लोग संक्रमित हुए, वहीं लाखों लोगों ने अपनी जान गंवा दी। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि भारत में वैक्सीनेशन की शुरुआत कब और कैसे हुई? हालांकि 1897 में पहली बार देश में कोई टीका बना था। भारत में क्या है टीकाकरण का इतिहास (History of Vaccination in India) आइए जानते हैं...
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भारत में सबसे पहले चेचक का टीका एक तीन साल की बच्ची को लगाया गया था। बंबई की अन्ना दुस्थाल नामक बच्ची को भारत में पहली बार 14 जून, 1802 में चेचक के टीके की पहली खुराक दी गई। 1827 में बांबे सिस्टम ऑफ वैक्सीनेशन की शुरुआत की गई। इस सिस्टम के तहत टीकाकरण टीम एक जगह से दूसरी जगह जाने लगी। आपको याद भी होगा कि पोलियो की खुराक बच्चों को सेंटरों के साथ ही घर-घर जाकर भी पिलाई गई थी। 
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अनिवार्य टीकाकरण कानून : वैक्सीनेशन को लेकर समय के साथ ही अन्य सुधार भी सामने आए। 1892 में अनिवार्य टीकाकरण कानून पारित हुआ ताकि चेचक को महामारी बनने से रोका जा सके। चेचक का टीका 1850 तक ब्रिटेन से आयात किया जाता था। वहीं, 1832 में मुंबई (तब बंबई) और 1879 में मद्रास में चेचक के टीके के विकास के प्रयास हुए, लेकिन सफलता 1880 में मिली। 
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प्लैग की वैक्सीन : हॉफकाइन ने 1893 में आगरा में कॉलरा के टीके का परीक्षण किया और यह परीक्षण सफल भी रहा। 1896 में भारत में प्लेग महामारी फैली। सरकार के अनुरोध पर डॉ हॉफकाइन ने प्लेग टीका विकसित किया। परीक्षण के बाद 1897 में प्लेग की वैक्सीन बनी। यह देश की पहली वैक्सीन थी। 1899 तक डॉ. हॉफकाइन की लैब को प्लेग लैबोरेटरी कहा गया, लेकिन 1925 में इस लैब का नाम बदलकर हॉफकाइन इंस्टीट्यूट कर दिया गया। प्लेग की महामारी के चलते ही एपीडेमिक एक्ट 1896 बना। 
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बीसवीं सदी के शुरुआती वर्षों तक भारत में कम से कम चार वैक्सीन- चेचक, कॉलरा, प्लेग और टाइफाइड की देश में उपलब्धता सुनिश्चित हो चुकी थी। 1890 में चेचक वैक्सीन लिंफ शिलांग में भी तैयार होने लगी। दक्षिण भारत के कुन्नूर में पाश्चर इंस्टीट्यूट स्थापित हुआ, जहां 1907 में न्यूरॉल टिश्यू एंटी रैबीज वैक्सीन तैयार किया। बाद में इनफ्लूएंजा, पोलियो की ओरल खुराक भी यहीं तैयार की गई।
 
भारत में 1948 में टीबी को महामारी जैसा माना गया। 1948 में ही पहली बीसीजी वैक्सीनेशन किया गया, जो बाद में 1962 में शुरू हुए राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम का हिस्सा बना। 1977 आते-आते वैक्सीन निर्माता इकाइयों में डीपीटी, डीटी, टीटी, ओपीवी जैसे टीके बनने लगे।
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पल्स पोलियो अभियान : तमिलनाडु ने रोटरी के सहयोग से पोलियो प्लस अभियान की शुरुआत 1985 में की, जबकि वर्ल्ड हेल्थ असेंबली के रेजोल्यूशन को अपनाते हुए तमिलनाडु और केरल में 1993-94 में बड़े स्तर पर टीकाकरण अभियान शुरू किया गया। दिल्ली में अक्टूबर 1994 में पहली बार पूरे राज्य में पोलियो टीकाकरण अभियान की शुरुआत की गई और दूसरा चरण दिसंबर में शुरू किया गया।
 
साल 1995 के दिसंबर महीने में भारत सरकार ने इस मुहिम को अपनाया और देशभर में लागू किया और तीन साल तक की उम्र के बच्चों को पोलियो टीकाकरण अभियान के दायरे में लाया गया। एक साल में करीब 8.7 करोड़ बच्चों को टीका लगाया गया। 
 
एक साल बाद उम्र सीमा 5 साल बढ़ा दी गई और इस दौरान करीब 12.5 करोड़ बच्चों को टीका लगाया गया। 1997 में नेशनल पोलियो सर्विलांस प्रोजेक्ट (NPSP) की शुरुआत हुई। साल 2014 के मार्च महीने में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत को पोलियो मुक्त घोषित कर दिया। 1997 में हैपिटाइटिस बी का टीका भारत में विकसित हुआ।
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अब कोरोना वैक्सीन : कोरोनावायरस ने दुनिया के साथ ही भारत को भी काफी नुकसान पहुंचाया है। जहां हमने लाखों लोगों को खोया, वहीं आर्थिक रूप से भी देश को काफी नुकसान हुआ। हालांकि कोरोना काल में भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही है कि भारत बायोटैक ने बहुत ही कम समय में स्वदेशी वैक्सीन 'कोवैक्सीन' विकसित की। यह सबसे कम समय में तैयार हुई स्वदेशी वैक्सीन है। कोविशील्ड वैक्सीन भी भारत में सीरम इंस्टीट्‍यूट द्वारा बनाई गई है, लेकिन इसका फॉर्मूला विदेशी (ऑक्सफोर्ड एस्ट्रोजेनिका) है।
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वैक्सीन कंपनियां : भारत में वैक्सीन बनाने वाली 5 प्रमुख कंपनियां हैं। इनमें सीरम इंस्टीट्‍यूट पुणे, हैदराबाद की भारत बायोटेक, हैदराबाद की इंडियन इम्युनोलॉजिकल लिमिटेड (IIL), अहमदाबाद की जायडस कैडिला और बायोजन इंडिया प्रायवेट लि. हैं। 
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पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी है। कंपनी सालाना करीब 1.5 बिलियन डोज बनाती है। एक जानकारी के मुताबिक दुनियाभर की लगभग 60 प्रतिशत वैक्सीन भारत में बनती हैं।
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1966 में साइरस पूनावाला ने इस कंपनी की शुरुआत की थी। इन्हें वैक्सीन किंग कहा जाता था। वर्तमान में सीरम के मुखिया (सीईओ) अदार पूनावाला हैं। 

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