पश्चिम बंगाल में उपचुनाव की घोषणा के साथ ही मुख्यमंत्री बनर्जी ममता बनर्जी को राहत मिल गई है। दरअसल, मुख्यमंत्री बने रहने के लिए उन्हें 6 माह के भीतर चुनाव जीतना आवश्यक है। इसके लिए ममता दीदी ने हाईकोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया था।
जिस समय ममता मुख्यमंत्री बनी थीं, उस समय वे विधानसभा की सदस्य नहीं थीं। उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने तो बहुमत हासिल कर लिया था, लेकिन वे नंदीग्राम से चुनाव हार गई थीं। ममता का मामला अनुच्छेद 164 (4) के तहत आता है।
हकीकत में जिस व्यक्ति ने चुनाव नहीं लड़ा है या फिर वह चुनाव हार गया है तो भी वह मुख्यमंत्री अथवा मंत्री बन सकता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 164 मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति से संबंधित है।
इसके अनुसार (अनुच्छेद 164-4) कोई भी व्यक्ति मुख्यमंत्री या मंत्री तो बन सकता है, लेकिन उसे पद धारण करने के 6 माह में चुनाव जीतना जरूरी होता है। तीरथ सिंह रावत को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा भी इसीलिए देना पड़ा था। क्योंकि जिस समय वे मुख्यमंत्री बने थे, उस समय वे विधानसभा के सदस्य नहीं थे और कोरोना के चलते राज्य में चुनाव कराया जाना संभव नहीं था। अत: तीरथ को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
क्या कहता है अनुच्छेद 164 : भारतीय संविधान का अनुच्छेद 164 मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति से संबंधित है।
अनुच्छेद 164 (4) के अनुसार, एक मंत्री अथवा मुख्यमंत्री जो लगातार 6 महीने तक राज्य के विधानमंडल या विधानसभा का सदस्य नहीं बनता तो उसका कार्यकाल खत्म हो जाएगा। अर्थात उसे पद से त्यागपत्र देना पड़ेगा।
अनुच्छेद 164 (1) के तहत मुख्यमंत्री को राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाएगा। अन्य मंत्रियों को मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाएगा और वे निर्धारित अवधि तक पद पर बने रहेंगे।
मंत्रियों की कुल संख्या के बारे में : 164 (1ए) के अनुसार, मंत्रिपरिषद में, मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या उस राज्य की विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या के 15 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होगी। वहीं, किसी राज्य में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की संख्या 12 से कम नहीं होगी।
क्या कहा था अदालत ने : अनुच्छेद 164 (4) से संबंधित एक मामले में अदालत ने कहा था कि अनुच्छेद 164 का खंड (4) यह कहता है कि एक मंत्री अथवा मुख्यमंत्री जो 6 महीने तक राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं है, इस अवधि के समाप्त होते ही उसका मंत्री पद भी समाप्त हो जाता है। इसका अभिप्राय यह है कि कोई भी मंत्री विधानसभा अथवा विधानमंडल का सदस्य बने बिना 6 महीने तक पद पर बना रह सकता है। इस खंड में मंत्री शब्द में मुख्यमंत्री भी शामिल है।