सोशल मीडिया पर हेट स्पीच पर कैसे लगेगी लगाम, डिजिटल मीडिया पर पॉलिसी वैक्यूम से गुजर रहा भारत?

सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 66-A के तहत केस दर्ज करने और गिरफ्तारी पर लगाई रोक

विकास सिंह
गुरुवार, 13 अक्टूबर 2022 (13:05 IST)
बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट के आए दो बड़े फैसलों ने देश में हेट स्पीच और सोशल मीडिया को लेकर फिर एक नए सिरे से बहस छेड़ दी है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने एक फैसले में आईटी एक्ट की धारा 66A  में अब भी केस दर्ज होने पर गहरी नाराजगी जाहिर की। वहीं एक अन्य फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच पर नाराजगी जाहिर करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने एक फैसले में सूचना प्रद्यौगिकी अधिनियम, 2000 (आईटी एक्ट) की धारा 66A में केस दर्ज होने पर गहरी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि इसके तहत किसी भी व्यक्ति पर अब कार्रवाई नहीं की जाएगी। चीफ़ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट की बेंच ने कहा ये एक गंभीर चिंता का विषय है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद कुछ राज्यों में इस धारा में केस दर्ज हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों के गृह सचिव और डीजीपी को लंबित मामलों से भी धारा 66-A हटाने का कहा है।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस सहित दो न्यायाधीशों की बेंच ने साल 2015 में श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ के मामले में फ़ैसला सुनाते हुए आईटी एक्ट, 2000 की धारा 66A को रद्द कर दिया था, लेकिन इसके बावजूद इसके तहत लोगों पर केस दर्ज किए जाते रहे। मध्यप्रदेश देश के उन राज्यों में सबसे उपर है जहां आईटी एक्ट के तहत सबसे ज्यादा मामले दर्ज है।

क्या थी आईटी एक्ट की धारा 66 (A)-आईटी एक्ट 2000 की धारा 66 (A) के तहत किसी भी व्यक्ति के लिए कंप्यूटर या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का इस्तेमाल करके आपत्तिजनक जानकारी भेजना दंडनीय अपराध था। इस नियम के तहत किसी व्यक्ति का ऐसी जानकारी भेजना भी दंडनीय अपराध था जिसे वह गलत मानता है,यहां तक कि अगर मैसेज से किसी को गुस्सा आए, असुविधा हो वो भी अपराध था. गुमराह करने वाले लिए ईमेल भेजना भी इस धारा के तहत दंडनीय अपराध माने गए थे।

इसके तहत प्रावधान था कि सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक, उत्तेजक या भावनाएं भड़काने वाले पोस्ट पर व्यक्ति को गिरफ्तारी किया जा सकता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकार के ख़िलाफ़ बताकर निरस्त कर दिया था।

हेट स्पीच पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार-एक ओर सुप्रीम कोर्ट ने धारा 66 A के तहत गिरफ्तारी, केस दर्ज करने पर तुरंत रोक लगाने की बात कही है तो दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अन्य फैसले में हेटस्पीच पर लगाम लगाने को लेकर केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि नफरत फैलाने वाले भाषणों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। चीफ़ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट की बेंच ने कहा कि सरकार को नफरत फैलाने वाले बयानों पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नफरत भरे भाषणों से देश का महौल खराब हो रहा है औऱ इस रोकने की जरूरत है।

सोशल मीडिया पर हेट स्पीच कैसे लगेगी लगाम?- सुप्रीम कोर्ट के आईटी एक्ट के धारा 66 A पर दिए फैसले के बाद सवाल है कि सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक, उत्तेजक या भावनाएं भड़काने वाले पोस्ट को कैसे प्रभावी तरीके से रोका जाएगा। ‘वेबदुनिया’ से बातचीत में दुनिया के मशूहर साइबर लॉ एक्सपर्ट पवन दुग्गल कहते हैं कि भारत के मौजूदा आईटी एक्ट में सोशल मीडिया प्रोवाइडर तमाशबीन बनकर रह गए है।

वह कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के 2015 श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ में एक ऐतिहासिक निर्णय में यह दिशा निर्देश दिया है कि सोशल मीडिया सर्विस प्रोवाइडर आप सिर्फ सर्विस प्रोवाइडर है और आप जज नहीं बने। आपके के प्लेटफॉर्म पर कुछ भी रहा है तो आप कुछ भी नहीं कीजिए इंतजार कीजिए। अगर आपको सरकार की संस्था से या सुप्रीम कोर्ट से ऑर्डर आ जाए तब आप एक्शन लीजिए वरना कुछ नहीं कीजिए। ऐसे में सर्विस प्रोवइडर कोर्ट के आदेश का हवाला देकर कोई कार्रवाई नहीं करते है। 

सोशल मीडिया पर पॉलिसी वैक्यूम खतरनाक- 
आईटी लॉ एक्सपर्ट पवन दुग्गल कहते हैं कि सोशल मीडिया के क्षेत्र में आज भारत एक तरह के पॉलिसी वैक्यूम में कार्रवाई कर रहा है। भारत के पास आज न कोई साइबर सुरक्षा संबंधी कानून है, न फेक न्यूज संबंधी कानून है, न डेटा प्रोटेक्शन संबंधी कानून है और न ही निजता संबंधी कानून है। ऐसे में जब इतना ज्यादा पॉलिसी वैक्यूम है तो सर्विस प्रोवाइडर जानबूझकर पॉलिसी वैक्यूम का शोषण करते है।

वेबदुनिया’ से बातचीत में पवन दुग्गल कहते हैं कि केंद्र सरकार पिछले साल सूचना प्रौद्योगिक नियम-2021 लेकर आई थी जिन्होंने 2011 के आईटी नियमों का स्थान लिया था। इसमें कानूनी कार्रवाई की बात भी कही गई थी लेकिन 2021 में कानून तो बन गए थे लेकिन उनका पालन नहीं हो पाया। शुरु में ट्वीटर के खिलाफ चार केस हुए लेकिन उसके बाद कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पाई। अधिकांश सर्विस प्रोवाइडर ने इन नियमों का पालन नहीं किया। 

सोशल मीडिया को रेगुलेट करने के लिए बने कड़ा कानून- देश के जाने-माने साइबर लॉ एक्सपर्ट पवन दुग्गल ‘वेबदुनिया’ से बातचीत में कहते हैं कि अब जरूरी हो गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ओनर और सर्विस प्रोवाइडर की जवाबदेही और जिम्मेदारी तय की जाए। इसके साथ ही उन पर यह जिम्मेदारी भी डाली जाए कि इस तरह के अनावश्यक कंटेट चाहे वह हेट हो या मानहानि से जुड़ा हो उनके प्लेटफॉर्म पर नहीं हो। 

1-सोशल मीडिया पर फेक कंटेट रोकने के लिए भारत को तुरंत डेडिकेटेड फेक न्यूज लॉ बनाने होंगे।
2-डेडिकेटेड ऑनलाइन हेट स्पीच लॉ लेकर आए, जिससे ऐसे कंटेट से समुदाय के बीच टकराव को रोका जा सके। 
3-सूचना प्रौद्योगिकी कानून को संशोधित कर कड़े कानून बनाए जाए।
4-आईटी रूल्स-2021 में सरकार और ज्यादा सख्ती लेकर आए। आईटी रूल- 2021 के मुताबिक अगर कोई कंटेट अश्लील है तो वह 24 घंटे में रिमूव होता है, वहीं अगर कोई कंटेट कम्युनल है तो उसे हटाने के लिए 15 दिन का समय दिया जाता है। अब समय आ गया है कि 6 घंटे में रिमूव करने के सख्त प्रावधान करना होगा जिसमें ऐसा करने वाले शख्स को जेल भेजने का भी प्रावधान हो। 
5-भारतीय दंड संहिता के प्रावधान में संशोधन करने की आवश्यकता है। सोशल मीडिया क्राइम को भारतीय दंड संहिता में लाएंगे तो पुलिस जल्द प्रभावी कार्रवाई कर सकेगी।

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