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राष्‍ट्र मजबूत होगा तो सरकारें आपकी चौखट पर नाक रगड़ेंगी : Pushpendra Kulshrestha

राष्‍ट्रवादी विचारक और पूर्व पत्रकार पुष्‍पेंद्र कुलश्रेष्‍ठ के साथ वेबदुनिया की विशेष चर्चा

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नवीन रांगियाल

इस देश के सुप्रीम कोर्ट में 5 करोड़ केसेस लंबित हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जज साहब को न्‍याय से कोई लेना-देना नहीं है, उन्‍हें तो हिन्‍दुत्‍व की परिभाषा से मतलब है। हम कोई ऐसी मांग नहीं कर रहे हैं कि 20 करोड़ मुस्‍लिमों को भारत से उठाकर हिंद महासागर में फेंक दो, हम तो यह कह रहे हैं कि जब भारत एक सेक्‍यूलर देश है तो फिर मुस्‍लिम पर्सनल लॉ बोर्ड क्‍यों है, मुस्‍लिम एजुकेशन बोर्ड क्‍यों है, वक्‍फ बोर्ड क्‍यों है, प्‍लेसेस ऑफ वरशिप एक्‍ट 1991 क्‍यों है? सच्‍चर कमीशन का साढ़े 5 हजार करोड़ का बजट क्‍यों है?
पूर्व पत्रकार और राष्‍ट्रवादी चिंतक पुष्‍पेंद्र कुलश्रेष्‍ठ ने वेबदुनिया से विशेष चर्चा में यह बात कही। उन्‍होंने आरक्षण को लेकर भी भेदभाव के आरोप लगाए और कहा कि 17 प्रतिशत लोगों को अल्‍पसंख्‍यक माना जाएगा, जबकि 2 प्रतिशत जैन भी हैं, 35 हजार पारसी भी हैं, ढाई प्रतिशत सिख भी हैं। इनको कुछ नहीं चाहिए। देश में नरेटिव क्‍यों है। पढते हैं विस्‍तृत साक्षात्‍कार।

सवाल : आपकी अच्‍छी- खासी फैन फॉलोइंग है, यूट्यूब पर आपको काफी देखा और सुना जाता है, आपको नहीं लगता कि आपको राजनीति में आना चाहिए?
जवाब :
देखिए, राजनीति से देश चलता है। मेरा राजनीति जाने का इरादा इसलिए नहीं है, क्‍योंकि देश संविधान, ज्‍यूडिसरी से चलता है, पुलिस से चलता है। नियम कानून से चलता है। नियम- कानून की अपनी बाध्‍यताएं हैं। वे नियम अच्‍छे हैं या बुरे हैं वो एक अलग बात है, लेकिन मैं देश की नहीं, राष्‍ट्र की बात करता हूं और राष्‍ट्र समाज से चलता है। जब राष्‍ट्र कमजोर होता है तो सरकारें अपने पैर फैलाने लगती हैं तो वो हमारी मान्‍यताओं, परंपराओं और आस्‍थाओं में दखल देने लगती हैं। इसके साथ ही राजनीति में अपनी सुविधाओं के लिए सच और झूठ बोलना पड़ता है। इसलिए राजनीति में जाने का मेरा कोई इरादा नहीं है। हमारे देश में चार सर्वोच्‍च पद हैं, वे हैं हमारे शंकराचार्य। अगर कोई विवाद है तो हमें अपने शंकराचार्यों से राय लेना चाहिए। लेकिन सबरीमला में जेंडर जस्‍टिस के बारे में बताने में काले कोट वालों को बोलने का कोई अधिकार नहीं है, क्‍योंकि सबरीमला में जेंडर जस्‍टिस का मुद्दा नहीं है, बल्‍कि यह उसके साइंस के बारे में है। एक जीवन मिला है, इसलिए सच बोलकर मरो, क्‍यों राजनीतिक पार्टी की बाध्‍यता में बंधें।

सवाल : आप हिन्‍दुत्‍व और आस्‍था, परंपरा आदि की बातें करते हैं, लेकिन हाल ही के दिनों में ऐसा हुआ है कि हिन्‍दुत्‍व की बात करने वालों से उसी भाजपा ने पीछा छुड़ा लिया जो हिन्‍दुत्‍व के मुद्दे पर सत्‍ता में आई थी और उसी के लिए जानी जाती है। उदाहरण के तौर पर नूपुर शर्मा, टी राजा सिंह, काजल हिंदुस्‍तानी, मनीष कश्‍यप ऐसे कई नाम हैं, जिनसे पार्टी ने किनारा कर लिया?
जवाब :
कोई हिन्‍दुत्‍व की बात करेगा और पार्टी में रहेगा ये दो अलग-अलग बातें हैं। नूपुर शर्मा को लेकर मेरा गुस्‍सा यह है कि वो अच्‍छी लीडर हैं, पढी लिखी हैं। अगर पार्टी ने उसका साथ नहीं दिया तो कोई बात नहीं, लेकिन 95 करोड़ सनातनियों ने उससे अपना हाथ क्‍यों खींच लिया। जो संगठन सुबह से शाम तक हिन्‍दुत्‍व का ठेका लेकर घूमते हैं उन्‍होंने नूपुर शर्मा के पक्ष में क्‍यों नहीं बोला। एक वाक्‍य नहीं बोलते, कमलेश तिवारी की हत्‍या हो जाती है तो कोई बोलता नहीं है और कहते हैं कि हम सबसे बड़े संगठन हैं हिन्‍दुत्‍व के। मेरा सवाल उनसे हैं, पार्टी की अपनी लाइन हो सकती है। पार्टी की अपनी मजबूरी होगी, कब उन्‍हें सेक्‍यूलर होना है, कब नहीं होना है। कब किसका साथ लेना है, कब नहीं लेना। ये अलग बात है।

सवाल : पार्टी ही साथ नहीं देगी तो फिर कैसे होगा?
जवाब :
मैं कह रहा हूं कि राष्‍ट्र मजबूत होगा तो सरकारें आपकी चौखट पर नाक रगड़ेंगी। नहीं तो 95 करोड़ सनातनी भीख मांगेगे कि आज हमें ये दे दीजिए, कल वो दे दीजिए। मांगने से कभी कुछ नहीं मिलता है, अपनी सामूहिक शक्‍ति को आप समझें। आप कोई ऐसी मांग नहीं कर रहे हैं कि भारत से 20 करोड़ मुस्‍लिमों को हिंद महासागर में फेंक दीजिए। लेकिन अगर भारत का संविधान सेक्‍यूलर है तो फिर मुस्‍लिम पर्सनल लॉ बोर्ड क्‍यों है, मुस्‍लिम एजुकेशन बोर्ड क्‍यों है, वक्‍फ बोर्ड क्‍यों है, प्‍लेसेस ऑफ वरशिप एक्‍ट 1991 क्‍यों है। सच्‍चर कमीशन का साढ़े 5 हजार करोड़ का बजट क्‍यों है। हमसे कहते हैं सेक्‍यूलर रहो और आप एक पेरेलल संविधान चलाकर अरबों-खरबों रुपया देते हैं और उसमें भी आपने तय कर दिया है कि अल्‍पसंख्‍यक के नाम पर 17 प्रतिशत लोगों को मायनोरिटी मानेंगे, जबकि 2 प्रतिशत जैन भी हैं, 35 हजार पारसी भी हैं, ढाई प्रतिशत सिख भी हैं। इनको कुछ नहीं चाहिए, ये जो नरेटिव बन गया है, क्‍या ये सही है? एक पार्टी ने तो कह दिया कि आतंकवादी को भी छोड़ देंगे। तो मैं देश की बात नहीं करता राष्‍ट्र की बात करता हूं।

सवाल : क्‍या यह सही है कि अतीक की हत्‍या के बारे हत्‍यारों ने जय श्रीराम के नारे लगाए। इससे हिन्‍दुत्‍व की छवि खराब नहीं होगी?
जवाब :
दिल्‍ली में नारंग अपने घर में किरमिच की बॉल से खेल रहा था और वो बॉल सड़क पर जा रहे एक मुस्‍लिम को लग गई तो नारंग को सड़क पर काट दिया गया, इसे क्‍या कहेंगे? पिछले 30 सालों से हिन्‍दुस्‍तान में नंगा नाच चल रहा है। कश्‍मीर में जब नारे लगते थे, हिन्‍दू महिलाओं के रेप होते थे। मस्‍जिदों से नारे लगाए जाते थे कि हमें कश्‍मीर चाहिए हिन्‍दू महिलाओं के साथ और मर्दों के बिना कश्‍मीर चाहिए। तब आपने नहीं पूछा कि अल्‍ला हू अकबर के नारे क्‍यों लगते हैं। इसलिए कि आप सिलेक्‍टिव हैं। आपको जयश्री राम का नारा खराब लगा, कश्‍मीर में अल्‍ला हू अकबर का नारा खराब नहीं लगा। तब नहीं लगा जब हिंदू पंडित औरतों को काटा जा रहा था। तो ऐसा नहीं होगा कि लोगों में गुस्‍सा नहीं होगा, लोग आम लोग होते हैं, उनका गुस्‍सा फूटता है। तब आप क्‍यों नहीं गए टेलीविजन से निकलकर कश्‍मीर। तब आपको सेक्‍यूलरिज्‍म का बुखार था। इस देश के सुप्रीम कोर्ट में 5 करोड़ केसेस लंबित हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जज साहब को कभी जस्‍टिस से मतलब है? उन्‍हें तो हिन्‍दुत्‍व की परिभाषा से मतलब है। उनको हर काम से मतलब है, लेकिन 5 करोड़ केस से कोई लेना-देना नहीं है।  

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