नई दिल्ली। केंद्र ने बुधवार को राज्यों से पुलिस को यह निर्देश देने को कहा कि वे सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कानून, 2000 की निष्प्रभावी की गई धारा 66ए के तहत मामला दर्ज नहीं करें। यह धारा ऑनलाइन टिप्पणी करने से संबंधित है।
उल्लेखनीय है कि 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने ऑनलाइन 'अपमानजनक' टिप्पणी करने को अपराध की श्रेणी में डालने वाली विवादित धारा 66ए को खत्म कर दिया था। इस धारा के तहत कारावास की सजा का प्रावधान था। शीर्ष न्यायालय ने यह फैसला अभिव्यक्ति की आजादी के समर्थकों के लंबे समय तक चलाए गए अभियान के बाद दिया था।
हाल में शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि उसे इस बात की हैरानी है कि उक्त धारा को निष्प्रभावी करने के फैसले को अब तक भी लागू नहीं किया गया है। गृह मंत्रालय की ओर से जारी वक्तव्य में कहा गया है कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि वे अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले सभी पुलिस थानों से कहें कि वे आईटी कानून की हटा दी गई धारा 66ए के तहत मामले पंजीकृत नहीं करें।
इसमें मंत्रालय ने यह अनुरोध भी किया कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में यदि कोई मामला उक्त धारा के तहत दर्ज हुआ है तो ऐसे मामलों को तुरंत रद्द कर दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने धारा रद्द करने का फैसला 24 मार्च 2015 को श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ के मामले में दिया था। इस धारा को आदेश की तारीख से निष्प्रभावी कर दिया गया था अत: इसके तहत कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती।
इस धारा में पुलिस को ऑनलाइन 'अपमानजनक' टिप्पणी करने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार था तथा इसमें तीन साल की जेल की सजा का प्रावधान था। उच्चतम न्यायालय ने इस माह की शुरुआत में केंद्र को आईटी कानून की धारा 66ए के इस्तेमाल को लेकर नोटिस जारी किया था और कहा था कि यह हैरानी की बात है कि धारा को रद्द करने का फैसला अब तक लागू नहीं किया गया है।(भाषा)