नई दिल्ली। विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि गाजा हिंसा जांच संबंधी प्रस्ताव पर मतदान के दौरान संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (यूएनएचआरसी) में भारत के अनुपस्थित रहने का रुख नया नहीं है और पहले भी वह अनुपस्थित रहा है।
विदेश मंत्रालय (एमईए) के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने डिजिटल माध्यम से यह बात कही। उनसे फलस्तीन के विदेश मंत्री रियाद माल्की द्वारा गाजा हिंसा पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में मतदान के दौरान भारत की अनुपस्थिति को लेकर विदेश मंत्री एस जयशंकर को पत्र लिखे जाने के संबंध में सवाल किया गया था।
बागची ने कहा कि फलस्तीन ने उन सभी देशों को ऐसा ही पत्र लिखा है जो इस मामले में अनुपस्थित रहे थे।उन्होंने कहा, फलस्तीन ने उन सभी देशों को ऐसा ही पत्र लिखा है जो इस मामले में अनुपस्थित रहे। हमने जो रुख अख्तियार किया, वह नया नहीं है। हम पहले भी अनुपस्थित रहे थे। मैं समझता हूं कि यह हमारे रुख को स्पष्ट करता है और इस बारे में सवालों का जवाब भी है।
इस पर चिंता व्यक्त करते हुए फलस्तीन के विदेश मंत्री रियाद माल्की ने जयशंकर को पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत ने जवाबदेही, न्याय और शांति की राह पर इस महत्वपूर्ण अवसर पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ शामिल होने का अवसर खो दिया।
गौरतलब है कि गाजा में इसराइल और हमास के बीच 11 दिन तक चले संघर्ष के दौरान उल्लंघनों एवं अपराधों की जांच शुरू करने के संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के प्रस्ताव पर पिछले सप्ताह मतदान से 13 अन्य देशों के साथ भारत अनुपस्थित रहा था।
संयुक्त राष्ट्र के इस 47 सदस्यीय निकाय के जिनेवा स्थित मुख्यालय में पिछले गुरुवार को बुलाए गए विशेष सत्र की समाप्ति पर यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया, क्योंकि 24 देशों ने इसके पक्ष में वोट डाला, जबकि नौ ने इसका विरोध किया।
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, भारत ने समूह के 13 अन्य सदस्य राष्ट्रों के साथ मतदान से खुद को अलग रखा। चीन और रूस ने इसके पक्ष में मतदान किया। जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र के लिए भारत के स्थाई प्रतिनिधि इंद्र मणि पांडे ने विशेष सत्र में कहा था कि भारत गाजा में इसराइल और सशस्त्र समूह के बीच संघर्ष विराम में सहयोग देने वाले क्षेत्रीय देशों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के कूटनीतिक प्रयासों का स्वागत करता है।
उन्होंने कहा था, भारत सभी पक्षों से अत्यधिक संयम बरतने और उन कदमों से गुरेज करने की अपील करता है, जो तनाव बढ़ाते हों और ऐसे प्रयासों से परहेज करने को कहता है, जो पूर्वी यरुशलम और उसके आस-पड़ोस के इलाकों में मौजूदा यथास्थिति को एकतरफा तरीके से बदलने के लिए हों।
पांडे ने कहा था कि भारत इस बात से पूरी तरह सहमत है कि क्षेत्र में उत्पन्न स्थितियों और वहां के लोगों की समस्याओं के प्रभावी समाधान के लिए वार्ता ही एकमात्र विकल्प है।(भाषा)