नई दिल्ली। भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौते पर बातचीत बेहद सौहार्दपूर्ण माहौल में चल रही है। हर साल होने वाली यह बैठक इस बार दो साल बाद हो रही है। इसमें पानी के बंटवारे के साथ-साथ एक-दूसरे की चिंताओं पर भी बात होगी। ऐसा माना जा रहा है कि इस बैठक से दोनों देशों के संबंध फिर पटरी पर आ सकते हैं। दूसरी ओर, यह भी खबर आ रही है कि पाकिस्तान के पब्बी क्षेत्र में आतंकवाद विरोधी युद्धाभ्यास में भी भारतीय सेना शामिल हो सकती है।
बैठक में शामिल हुए भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व पीके सक्सेना कर रहे हैं और इसमें केंद्रीय जल आयोग, केंद्रीय बिजली प्राधिकरण एवं राष्ट्रीय जल विद्युत ऊर्जा निगम के उनके सलाहकार शामिल हैं। पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व सिंधु आयोग (पाकिस्तान) के आयुक्त सैयद मुहम्मद मेहर अली शाह कर रहे हैं। पाकिस्तानी प्रतिधिनिमंडल सोमवार शाम को यहां पहुंचा।
2020 में नहीं हुई थी बात : कोरोना भारत ने जुलाई 2020 में कोविड-19 महामारी के चलते सिंधु जल समझौते से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करने के लिए ऑनलाइन बैठक करने का प्रस्ताव किया था लेकिन पाकिस्तान ने बैठक अटारी सीमा चौकी पर करने पर जोर दिया जिसे भारत ने महामारी के मद्देनजर अस्वीकार कर दिया था। सिंधु जल आयोग की पिछली बैठक वर्ष 2018 में लाहौर में हुई थी।
क्या है सिंधु जल संधि : सिंधु जल संधि पानी के वितरण लिए भारत और पाकिस्तान के बीच संधि हुई थी, जिस पर 19 सितंबर, 1960 को कराची में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे।
इस समझौते के अनुसार तीन पूर्वी नदियों- ब्यास, रावी और सतलुज का नियंत्रण भारत को तथा तीन पश्चिमी नदियों- सिंधु, चिनाब और झेलम का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया। पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियों का प्रवाह पहले भारत से होकर आता है। संधि के अनुसार भारत को उनका उपयोग सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन हेतु करने की अनुमति है।
सिंधु जल संधि की प्रमुख बातें
1. समझौते के अंतर्गत सिंधु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में विभाजित किया गया। सतलज, ब्यास और रावी नदियों को पूर्वी नदी बताया गया जबकि झेलम, चिनाब और सिंधु को पश्चिमी नदी बताया गया।
2. समझौते के मुताबिक पूर्वी नदियों का पानी, कुछ अपवादों को छोड़े दें, तो भारत बिना रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता है। पश्चिमी नदियों का पानी पाकिस्तान के लिए होगा लेकिन समझौते के भीतर कुछ इन नदियों के पानी का कुछ सीमित इस्तेमाल का अधिकार भारत को दिया गया, जैसे बिजली बनाना, कृषि के लिए सीमित पानी। अनुबंध में बैठक, साइट इंस्पेक्शन आदि का प्रावधान है।
3. समझौते के अंतर्गत एक स्थायी सिंधु आयोग की स्थापना की गई। इसमें दोनों देशों के कमिश्नरों के मिलने का प्रस्ताव था। ये कमिश्नर हर कुछ वक्त में एक दूसरे से मिलेंगे और किसी भी परेशानी पर बात करेंगे।
4. अगर कोई देश किसी प्रोजेक्ट पर काम करता है और दूसरे देश को उसकी डिजाइन पर आपत्ति है तो दूसरा देश उसका जवाब देगा, दोनों पक्षों की बैठकें होंगी। अगर आयोग समस्या का हल नहीं ढूंढ़ पाती हैं तो सरकारें उसे सुलझाने की कोशिश करेंगी।
5. इसके अलावा समझौते में विवादों का हल ढूंढने के लिए तटस्थ विशेषज्ञ की मदद लेने या कोर्ट आफ आर्बिट्रेशन में जाने का भी रास्ता सुझाया गया है।
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