भारतीय दूतावास कर्मी बच्चों को पाकिस्तान में न पढ़ाएं

Webdunia
नई दिल्ली। भारत ने इस्लामाबाद स्थित अपने उच्चायोग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को परामर्श दिया है कि वे अपने बच्चों को स्थानीय स्कूलों से हटा लें और उनकी पढ़ाई लिखाई का प्रबंध पाकिस्तान के बाहर करे।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने बताया कि सरकार समय-समय पर विदेशों में अपने मिशनों में तैनात कर्मचारियों एवं उनके मुद्दों की तत्कालीन परिस्थितियों की समीक्षा करती रहती है। इसी के तहत इस्लामाबाद में तैनात अपने अधिकारियों को सलाह गई है कि वे अपने बच्चों की शिक्षा का प्रबंध पाकिस्तान के बाहर कर लें।
 
प्रवक्ता ने बताया कि इस संबंध में निर्णय पिछले साल जून में ही ले लिया गया था ताकि अधिकारियों को वैकल्पिक इंतजाम करने का पर्याप्त समय मिल जाए। उन्होंने बताया कि इस बारे में पाकिस्तान सरकार को भी बता दिया गया है।
  
स्कूल आतंकियों के निशाने पर : सरकारी सूत्रों के अनुसार यह परामर्श केवल सुरक्षा कारणों से जारी किया गया है। इस फैसले से करीब 60 बच्चों को आगे की पढ़ाई के लिए इस्लामाबाद से भारत लौटना होगा। इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग के अधिकारियों के बच्चों को सिर्फ दो स्कूलों- इंटरनेशनल स्कूल ऑफ इस्लामाबाद या अमेरिकन स्कूल और रूट्स इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ाने की अनुमति है। समझा जाता है कि इन स्कूलों पर आतंकवादियों की नजर होने की खुफिया सूचनाओं के बाद भारत ने एहतियात के तौर पर यह कदम उठाया है। 
 

यह है फैसले की असली वजह : भारत के इस फैसले की वजह बच्चों की सुरक्षा के साथ ही भारत-पाक संबंधों में बढ़ रही तल्खी से भी जोड़कर देखा जा रहा है। हाल ही में पाकिस्तान ने कश्मीरी आतंकवादी बुरहान वानी को शहीद बताया था। वानी की मौत के बाद पाकिस्तान में भारत विरोधी माहौल भी तेजी से बन रहा है।

इसके साथ ही पाकिस्तान के स्कूलों और कॉलेजों में हुए हमलों को भी इस फैसले की एक अहम वजह माना जा रहा है। उल्लेखनीय है कि पश्चिमोत्तर पाकिस्तान के पेशावर स्थित सैनिक स्कूल पर तहरीक-ए- तालिबान पाकिस्तान के  वर्ष 2014 में हुए हमले में करीब 148 छात्रों की मौत हो गई थी। इसके 2016 की शुरुआत में बाचा खान यूनिवर्सिटी पर हुए तालिबानी हमले में 25 लोग मारे गए थे। 
 
यह पड़ेगा असर : भारत सरकार के इस निर्णय से पाकिस्तान में पढ़ रहे करीब 60 बच्चों पर असर पड़ेगा। इन बच्चों को वापस भारत लौटना होगा या फिर किसी अन्य देश में उनकी पढ़ाई की व्यवस्था करनी होगी। भविष्य में जाने वाले दूतावास कर्मी भी अपने साथ बच्चों को नहीं ले जा सकेंगे। 
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