इनसाइड स्टोरी: कांग्रेस में नयापन लाने का राहुल गांधी का तरीका कितना कारगर?
अमरिंदर की जगह सिद्धू को तरजीह देने और कन्हैया कुमार को पार्टी मेंं शामिल करने के फैसले पर सवाल?
पंजाब में सीनियर नेता अमरिंदर सिंह को दरकिनार कर नवजोत सिंह सिद्धू को अध्यक्ष बनाने और फिर उनके इस्तीफे और कांग्रेस में लेफ्ट नेता कन्हैया कुमार को शामिल कराने के निर्णय के बाद कांग्रेस आलाकमान फिर सवालों के घेरे में है। अपने फैसलों के चलते लगातार पार्टी की हो रही किरकिरी को लेकर एक बार पार्टी में ही पिछले कुछ दिनों से विरोध के सुर उठाने वाले सक्रिय हो गए है। पार्टी के सीनियर नेता कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद ने फिर पार्टी की रीति-नीति को लेकर सवाल उठा दिए है। वहीं कांग्रेस के सीनिया नेता मनीष तिवारी ने कन्हैया कुमार के पार्टी मेंं शामिल होने को लेकर सवाल खड़े कर दिए है।
दूसरी ओर पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने आलाकमान पर सवाल उठाते हुए कहा है कि कांग्रेस का कोई चुना हुआ अध्यक्ष नहीं है, पर कोई-न-कोई तो फैसला ले ही रहा है ना। गलत हो या सही हो, इस पर चर्चा के लिए वर्किग कमेटी बुलाई जानी चाहिए। सिब्बल ने यह भी कहा कि जी-23 के नेता जी-हुजूरी करने वाले नेता भले ही न हो, लेकिन उन लोगों में से नहीं हैं जो पार्टी छोड़कर चले जाएंगे, जबकि पार्टी वहीं लोग छोड़ रहे हैं जो नेतृत्व के करीबी कहे जाते थे। वहीं वरिष्ठ कांग्रेसी गुलाम नबी आजाद ने भी CWC की बैठक बुलाने के लिए सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी है।
कांग्रेस आलाकमान खासकर राहुल गांधी के खिलाफ उन्हीं के पार्टी के नेता पिछले लंबे समय बागी रूख अपनाए हुए है। पंजाब संकट के बहाने इन नेताओं ने फिर इशारों ही इशारों में राहुल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
कांग्रेस के सियासत को बहुत करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई कहते हैं कि राहुल गांधी का कांग्रेस को लेकर नजरिया बहुत अलग है। वह पार्टी में अपने पिता राजीव गांधी के एजेंडा को बढ़ाना चाहते है लेकिन आज की स्थिति में वह पार्टी में मुमकिन नहीं है। राहुल कांग्रेस में नयापन तो लाना चाहते है लेकिन उनके नयापन लाने का तरीका बहुत अलग है।
वह कांग्रेस में बहुत बड़े बदलाव चाहते है जो कि इस वक्त संभव नहीं दिखते है। राहुल आज की स्थिति में कांग्रेस में फिट नहीं हो पा रहे है और एक तरह से कांग्रेस के खिलाफ काम कर रहे है।
रशीद किदवई साफ कहते हैं कि लीडरशिप में तभी तक मान्य है जब तक वह आपको कामयाबी दिलाकर सत्ता का सुख दिलाती है और राहुल गांधी इसी मे बार –बार फेल हो रहे है। वह उदाहरण देते हुए कहते है कि 1977 में जब इंदिरा गांधी की हार हुई तो तीन चौथाई लोगों ने कांग्रेस छोड़ दी। वह कहते हैं कि सत्ता के बाहर की चुनौतियों को सोनिया गांधी और प्रियंका गाधी बाखूबी समझती है लेकिन राहुल गांधी मानसिक रुप से उन चुनौतियों को समझने के लिए तैयार ही नहीं है।
रशीद किदवई आगे कहते हैं कि यह सच है कि आज कांग्रेस एक बुरे दौर से गुजर रही है, लेकिन एक विडंबना यह भी है कि जो नेहरू-गांधी परिवार के विरोधी भी हैं वह भी आज नेहरू परिवार की तरफ ही देख रहे हैं कि वह आगे की दिशा और दशा बताएं। पार्टी में विरोध के सुर उठाने वालों का भी मानना हैं कि वह नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य को ही कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए।