इस तरह पाकिस्तान से भारत तक फैल गया आईएस...

Webdunia
बुधवार, 8 मार्च 2017 (12:27 IST)
नई दिल्ली। कुछ समय पहले पाकिस्तान के सिन्ध प्रांत की एक सूफी दरगाह और शिया मुस्लिमों के धार्मिक स्थानों पर हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी आईएसआईएस के लेने से भारतीय एजेंसियों को चौकन्ना हो जाना था। पड़ोस तक आईएस की दस्तक को भारत के लिए भी एक बड़े खतरे की घंटी माना जा सकता है।
 
दुनिया के सबसे खूंखार आतंकी संगठन आईएस का खतरा भारत के पड़ोसी मुल्कों में ही लगातार बढ़ता जा रहा है। पाकिस्तान से पहले आईएस ने बांग्लादेश, अफगानिस्तान और मालदीव में की गई आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया है।
 
लेकिन मध्यप्रदेश की एक पैसेंजर ट्रेन में विस्फोट, पिपरिया से आईएस संदिग्धों की गिरफ्तारी, भोपाल में इनकी मौजूदगी तथा कानपुर-लखनऊ तक इसकी मौजूदगी इस बात का संकेत करती है कि मौजूदा स्थिति में सुरक्षा एजेंसियां आईएस या दाएश को आतंकियों के भारत में प्रवेश के लिए जम्मू-कश्मीर को सबसे संवेदनशील मानती है। 
 
लेकिन आईएस एजेंटों की मध्यप्रदेश समेत देश के 14 संदिग्ध आतंकवादियों की गिरफ्तारी यह बताने के लिए काफी है कि आतंकवादियों ने भारत में भी काफी मजबूत जड़ें जमा ली हैं। जम्मू-कश्मीर में फिर से अशांति के दौर की शुरुआत और सीमापार से लोगों के उकसाने पर उग्रवादियों के जनाजे में हजारों की भीड़ यह बताने के लिए काफी है कि खतरा किस हद तक गंभीर हो चला है। 
 
जम्मू-कश्मीर में स्थानीय लोगों के आतंकवादी घटनाओं में मारे गए सैनिकों, पुलिसकर्मियों के जनाजों की बजाय हजारों की संख्या में आतंकवादियों के जनाजे में पहुंचना यह दर्शाता है कि भाजपा के कथित राष्ट्रवादियों की पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाना कितनी बड़ी भूल है, जो कि घाटी को फिर से विस्फोटों से दहलाने के लिए की शुरुआत समझी जा सकती है। पाकिस्तान में आतंकवादी हमले आईएस ने कराए हैं, इसकी पुष्टि करना मुश्किल नहीं है। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियां भी पाक में आईएस की मौजूदगी को पुख्ता सबूत मान रही हैं। 
 
सुरक्षा एजेंसियों को खुफिया जानकारी मिली थी कि दाएश के एक समूह को पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई ने ही शुरू में संरक्षण देकर उसे अफगानिस्तान सीमा स्थित कैंपों में भेजा था। इसका मकसद अफगानिस्तान में आतंकी हमलों को अंजाम देना था। पाकिस्तान में सक्रिय कई आतंकी गुट दाएश के आतंकियों से जुड़े हैं जिन्हें संभालना अब पाकिस्तान के लिए मुश्किल हो रहा है। 
 
सूत्रों का कहना है कि पाकिस्तान के आतंकी गुट जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की मदद करते हैं। ऐसे में आईएस के आतंकियों को भी वे भारत में भेज रहे हों, तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। भारत में आईएस के कई संदिग्ध पकड़े गए हैं और यहां भी उनके किसी संगठित ढांचे के होने से इनकार नहीं किया जा सकता है। कम से कम आतंकी हमले तो इसी बात की पुष्टि करते हैं। इस मुसीबत से निपटने के लिए मजबूत रणनीति की जरूरत है। 
 
सुरक्षा मामलों के जानकार पूर्व एयर वाइस मार्शल कपिल काका का कहना है कि अगर पाकिस्तान में आईएस की मौजूदगी सच है तो वह पूरे देश के लिए खतरा है। हमें समय रहते रणनीति बनाने की जरूरत है। खुफिया तंत्र को बेहद मजबूत बनाना होगा। देश से भागकर जो युवा आईएस के संपर्क में आए हैं, उनकी निगरानी के लिए वैश्विक स्तर पर खुफिया जानकारी साझा करने पर जोर देना होगा। भारत के 24 देशों के साथ खुफिया सूचनाएं साझा करने की सहमति है। अमेरिका, यूएई जैसे देशों से लगातार सूचनाएं साझा करने के फलस्वरूप कई कट्टरपंथी पकड़े गए। पड़ोसी देशों जैसे बांग्लादेश, अफगानिस्तान में भी एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार) स्तर पर ऐसी सूचनाएं साझा की जा रही हैं। 
 
देश में केरल, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु सहित कई जगहों से गुमराह युवकों ने आईएस के प्रति अपना रुझान दिखाया है। केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु पुलिस ने इनके खिलाफ मामले दर्ज किए हैं। एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) ने भी अलग से मामले दर्ज किए हैं। करीब 54 युवाओं को गिरफ्तार किया गया है और 150 से ज्यादा युवाओं पर नजर रखी जा रही है। कई युवक आतंकी संगठन आईएस में शामिल होने बाहर भी गए हैं जबकि 4 युवक आईएस के लिए लड़ते हुए मारे जा चुके हैं।
 
यहां यह बता दें कि पाकिस्तान के सिन्ध प्रांत में शहबाज कलंदर की दरगाह पर पिछले दिनों हुए हमले के बाद पाक के सुरक्षा बलों ने पूरे देश में आतंकियों के खिलाफ सघन अभियान चलाया था। इसमें कम से कम 100 संदिग्ध आतंकी मारे गए। पाक सेना ने शुक्रवार को दावा किया कि दरगाह पर हुए हमले में 88 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 343 लोग घायल हो गए। आईएस ने इस हमले की जिम्मेदारी ली थी। पाक सेना ने इसी दिन अफगानिस्तान दूतावास के अफसरों को तलब किया और उनकी सीमा में छिपे 76 आतंकियों को सौंपने की मांग की थी। अफगानिस्तान के साथ लगती तुर्खम सीमा अनिश्चितकाल के लिए पाक ने सील कर दी है।
 
यहां यह उल्लेखनीय है कि आईएस का सीरिया और इराक के कुछ-कुछ हिस्सों पर कब्जा है, पर उसका आतंक वहीं तक सीमित नहीं है। दुनिया में जहां से भी संभव हो, वह लड़ाकों और अपने शरीर पर बम बांधकर मरने-मारने के लिए तैयार नौजवानों की तलाश में रहता है। कुछ वर्षों से सबसे ज्यादा पश्चिमी देश आईएस को लेकर दहशत में रहे हैं, पर इस्लामी या मुस्लिम बहुल मुल्कों को भी आईएस ने बख्शा नहीं है। इस संदर्भ में पाकिस्तान से पहले हम तुर्की और बांग्लादेश में हुए उसके हमलों को याद कर सकते हैं। 
 
यह भी उल्लेखनीय है कि जिस दिन पाक के सिन्ध प्रांत के सहवान में हुए फिदायीन हमले ने पाकिस्तान को दहला दिया, उसी दिन बगदाद में भी एक कार बम विस्फोट ने 45 लोगों की जान ले ली थी। और इस वारदात के बाद आईएस की सूचना या प्रचार एजेंसी ने विस्फोट की खबर देते हुए कहा कि शिया लोगों की भीड़ को निशाना बनाया गया। 
 
जहां तक पाकिस्तान की बात है, वहां आईएस के सक्रिय होने से पहले भी शियाओं पर कई बार आतंकी हमले हुए थे यानी शिया-सुन्नी टकराव की खूनी कोशिशें पहले भी होती रही हैं। 2005 से वहां 25 से अधिक दरगाहों पर हमले हो चुके हैं और अब हो सकता है कि वैसे उन्मादी तत्वों ने आईएस का दामन थाम लिया हो। ताजा हमले ने स्वाभाविक ही पूरे पाकिस्तान को स्तब्ध कर दिया है। अच्छी बात यह है कि वहां सेना से लेकर सरकार और समाज तक सब तरफ आतंकवाद के खिलाफ सख्ती बरतने की जरूरत का अहसास दिख रहा है। आतंकी हमले के 24 घंटों से पहले पाक सुरक्षा बलों ने देश के विभिन्न स्थानों पर की गई कार्रवाई में 37 आतंकियों को मार गिराने का दावा किया था। 
 
जैसा कि पूर्व में लिखा जा चुका है कि अफगानिस्तान से लगी सीमा भी फिलहाल सील कर दी गई है, पर सवाल यह है कि इतने कम समय में सेना ने इतनी ज्यादा जगहों पर मुठभेड़ कैसे की? क्या उसे वे सारे ठिकाने पता थे और सब कुछ जानते हुए भी खामोशी बरती जा रही थी? पाकिस्तान कहता रहा है कि वह खुद आतंकवाद से पीड़ित है। 
 
ताजा हमले से यह बात भी जाहिर होती है कि यह तथ्य अपनी जगह सही है, पर पाकिस्तान आतंकवाद का एक बड़ा अड्डा भी है। इसे नेस्तनाबूद करने की जिम्मेदारी किसकी है। यो तो आतंकवाद के मद्देनजर पाकिस्तान खुद जब-तब कठघरे में खड़ा दिखता है, पर विडंबना यह है कि इन दिनों वही आतंकवाद से सबसे ज्यादा पीड़ित नजर आ रहा है। लेकिन यह भस्मासुर खुद पाकिस्तान ने ही पाला-पोसा है और इसे दूसरे देशों के खिलाफ इस्तेमाल किया है और यह अभी भी कर रहा है। 
 
क्वेटा में पुलिस ट्रेनिंग सेंटर पर हुआ हमला उन्हीं हमलों की एक कड़ी थी, जो सिलसिलेवार तरीके से पाकिस्तान की जमीन पर होते रहे हैं। ये वो आतंकवादी संगठन हैं, जो पाकिस्तान की फौज और सरकार के नियंत्रण से बाहर हो चुके हैं। हालांकि इस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान-तालिबान, लश्कर-ए-झांगवी के साथ-साथ आईएस ने भी ली है। इससे सवाल खड़ा होता है कि क्या आईएस अब पाकिस्तान में भी अपनी मौजूदगी दिखा रहा है? यहां बलूचिस्तान के हालात भी हमें मथ रहे हैं! 
 
आखिर यह नौबत आई कैसे? जवाब के लिए इतिहास खंगालना होगा। ज्यादा वक्त नहीं बीता है, जब क्वेटा में सरकार (इसे फौज ही समझें) के संरक्षण में बहुत सारी दहशतगर्द तंजीमों को पनपने दिया गया था। इनमें लश्कर-ए-झांगवी, सिपह-ए-सहाबा, जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठन प्रमुख थे। 
 
इन्हें वहां 2 वजहों से अपना जाल बिछाने दिया गया। पहली वजह थी कि पाकिस्तानी हुकूमत की नजर में बुरे मुसलमान बन चुके बलूचिस्तान के तरक्कीपसंद लोगों, जिनमें आजादी की मांग करने वाले लोग शामिल हैं, को 'अच्छे मुसलमानों' यानी दहशतगर्द तंजीमों द्वारा सुधारना। ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि पाकिस्तान का यह पुराना फलसफा है कि राष्ट्रवाद की तमाम गतिविधियों को नियंत्रित करने का सबसे अच्छा तरीका इस्लाम ही है और दूसरी वजह तालिबान को मजबूत बनाने से जुड़ी थी। बलूचिस्तान प्रांत का उत्तरी हिस्सा पश्तून बहुल है, जहां क्वेटा शहर को छोड़कर आसपास के सारे क्षेत्रों में पश्तूनों का दबदबा है। 
 
अमेरिका के 9/11 हमले के बाद जब अफगानिस्तान से तालिबान को खदेड़ दिया गया, तो पाकिस्तान ने तालिबानी नेतृत्व को क्वेटा के आसपास बसाने में काफी मदद की। इस कारण वहां तालिबान का बड़ा नेटवर्क फैल गया। उनका रिश्ता सुन्नी आतंकवादी संगठनों के साथ पहले से था, जो शुरुआत में शिया-विरोधी गतिविधियों तक सीमित थीं। चूंकि तालिबान को अपनी गतिविधियां चलाने की छूट दी जा रही थीं, लिहाजा इन सुन्नी तंजीमों को भी अपने पांव पसारने का सुनहरा मौका मिल गया। मगर बाद में इनकी शिया-विरोधी गतिविधियां पाकिस्तान के विरोध में बदल गईं जिसके कारण अब ये गुट पाकिस्तान के गले की फांस बनते जा रहे हैं।
 
यहां यह भी बताता चलूं कि लश्कर-ए-झांगवी जैसी तंजीमों (धार्मिक संगठनों) का साथ तालिबान ने तब भी नहीं छोड़ा था, जब उसकी हुकूमत अफगानिस्तान में थी। यहां तक कि पाकिस्तान के कहने पर भी नहीं, जो तब उसका एकमात्र खैरख्वाह था। बहरहाल, जब बलूचिस्तान में शियाओं के खिलाफ इन संगठनों की गतिविधियां तेज हुईं, तो पाकिस्तानी हुकूमत के लिए चुपचाप बैठना संभव नहीं रहा। उसी दौरान पाकिस्तान के अंदर अपनी जड़ें जमा चुके तालिबान में मतभेद शुरू हुए और उसका एक बड़ा धड़ा आईएस के प्रति रुझान दिखाने लगा, नतीजतन वहां दहशतगर्द तंजीमों में कशमकश बढ़ने लगी।
 
पाकिस्तानी फौज का बेशक आईएस पर नियंत्रण नहीं था, मगर इसी बहाने उसको एक मौका दिखा कि अफगानिस्तान में अगर तालिबान को मान्यता दिलानी है, तो दुनियाभर को आईएस का खतरा दिखाना होगा। उसने यह कहकर अमेरिका, रूस और चीन जैसे मुल्कों में भ्रम फैलाया कि वे तालिबान को समर्थन देना शुरू करें, नहीं तो आईएस का प्रसार तेज होगा। इसका एक असर यह हुआ कि आईएस को वहां अपनी जड़ें जमाने का खूब मौका मिला।
 
 हालांकि यह भी किसी विरोधाभास से कम नहीं कि पाकिस्तानी हुकूमत अपने यहां आईएस की मौजूदगी से हमेशा इंकार करती रही है, मगर उसने कई लोगों को आईएस की विचारधारा का समर्थन करने के कारण गिरफ्तार भी किया है। बेशक, यह अब तक साफ नहीं है कि आईएस इन तंजीमों को किस हद तक निर्देश देता है, मगर यह तय है कि इन गुटों के साथ आईएस का रिश्ता जरूर है। असल में आईएस शिया-विरोधी विचारधाराओं का पोषण करता है। यह विचारधारा लश्कर-ए-झांगवी और तहरीक-ए-तालिबान जैसी तंजीमों को उसके करीब लाती है। बस, अपना वर्चस्व कायम करने के लिए ये एक-दूसरे से होड़ करती हैं।
 
क्वेटा हमले में 2-3 गुटों के जिम्मेदारी लेने को इसी रूप में देखना चाहिए कि पहले भी एक से ज्यादा तंजीमें मिलकर आतंकी घटनाओं को अंजाम देती रही हैं। इनमें कोई गुट रणनीति बनाता है तो किसी के गुर्गे हमलों को अंजाम देते हैं तो किसी से आर्थिक मदद मिलती है। इस बार भी ऐसा ही कुछ हो सकता है।
 
जहां तक भारत की बात है तो हमारे लिए भी सीधे तौर पर आईएस का खतरा दिख रहा है। हमारे ऊपर जो आतंकवाद थोपा जाता है, वह मूल रूप से आईएसआई के माध्यम से होता है। लेकिन अगर पाकिस्तान अस्थिर होता है, तो उसकी आंच से हम भी नहीं बच पाएंगे। हमने पहले भी देखा है कि अफगानिस्तान में अस्थिरता फैलने से कैसे पूरा एशिया महाद्वीप प्रभावित हुआ था। इन दहशतगर्दों का इस्तेमाल पाकिस्तान हमारे खिलाफ भी करता रहा है। यह आशंका बेजा नहीं कि इन दहशतगर्द तंजीमों में इस्लामीकरण को बढ़ावा देकर उसका इस्तेमाल कश्मीर व देश के अन्य हिस्सों में किया जाए, इससे हमारे यहां अस्थिरता फैलने के खतरे हैं।
 
वैसे, इन तमाम खतरों से ज्यादा बड़ा खतरा यह है कि अगर आईएस के लोग यहां अपनी जगह बना लेते हैं, तो हमारे सामने चुनौतियां बढ़ सकती हैं। इसकी आशंका इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि पश्चिम एशिया में आईएस के लिए हालात बद से बदतर हो रहे हैं। और अगर वहां आईएस अपने कब्जे वाला क्षेत्र गंवा देता है, तो उसका बड़ा तबका अफगानिस्तान की तरफ आना चाहेगा। ऐसा इसलिए भी होगा, क्योंकि तब तक अफगानिस्तान में अमेरिकी फौजें नहीं होंगी। 
 
यदि यह विचारधारा अफगानिस्तान या पाकिस्तान में अपने पांव पसारती है, तो इसकी तरफ रुझान रखने वाले लोगों पर इसका कितना असर पड़ेगा, इसका अभी अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता। ये लोग पाकिस्तान में भी हो सकते हैं और यहां भारत में भी। हमें इन्हीं खतरों को देखते हुए तत्काल रणनीति बनानी चाहिए और संभव हो तो इस दिशा में ठोस पहल भी शुरू कर देनी चाहिए।
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