जिनपिंग के दिल्ली न आने क्यों खुश हैं इटली की PM मेलोनी?

राम यादव
Italy Upset With China: इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी खुश हैं कि नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन के समय उन्हें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सामने झुक कर उनसे हाथ नहीं मिलाना पड़ेगा, क्योंकि वे दिल्ली में नहीं होंगे। बात यह है कि 'न्यू सिल्क रोड' (नया रेशम मार्ग/बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव) कहलाने वाली चीनी तानाशाह की सबसे बड़ी प्रतिष्ठा-परियोजना से इटली तंग आ चुका है और यथाशीघ्र उससे अपना पिंड छुड़ाना चाहता है।
 
चीन से मुंह मोड़ने वाला इटली पहला यूरोपीय देश नहीं है, हालांकि मेलोनी भी जानती हैं कि जो कोई चीन के जाल में एक बार फंस गया, उसे बाहर निकलने का रास्ता आसानी से नहीं मिलता। प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी और उनके रक्षा मंत्री ने जुलाई के अंत में घोषित किया था कि चीन के साथ हुए अनुबंध से बाहर निकलने के बारे में अंतिम निर्णय दिसंबर में लिया जाएगा। 
 
चीन के इरादों के प्रति संशय : रूस के पड़ोसी बाल्टिक सागरीय देश एस्तोनिया, लातविया और लिथुआनिया तथा चेक गणराज्य के बाद इटली एक और यूरोपीय देश है, जो अब चीन से मुंह मोड़ने जा रहा है। तीनों बाल्टिक देश और चेक गणराज्य तो बहुत कम जनसंख्या और बहुत छोटी अर्थव्यवस्था वाले देश है, जबकि इटली उनसे कई गुना बड़ी जनसंख्या एवं अर्थव्यवस्था वाला ऐसा पहला मध्य यूरोपीय देश है, जो चीन से पीछा छुड़ाना चाहता है। इन देशों के बाहर निकल जाने से 'न्यू सिल्क रोड' परियोजना विफल तो नहीं होने जा रही, किंतु उसकी छवि को क्षति अवश्य पहुंची है। इस परियोजना से मुंह मोड़ने को चीन के इरादों के प्रति पश्चिम में लगातार बढ़ते हुए संशय की अभिव्यक्ति के तौर पर देखा जाने लगा है।
 
'न्यू सिल्क रोड' शी जिनपिंग की एक प्रिय भू-रणनीतिक परियोजना है, जिसमें शामिल होने का निर्णय जियोर्जिया मेलोनी से पहले की इतालवी सरकार ने 2019 में लिया था। यदि उससे हाथ नहीं खींचा गया, तो आगामी 2024 में यह समझौता अपने आाप बढ़ जाएगा। प्रधानमंत्री मेलोनी ने पिछले साल दिसंबर में ही इस समझौते को एक 'बड़ी गलती' बता दिया था। अमेरिका भी यही चाहता था कि इटली इस समझौते से हाथ खींच ले। पिछले मई महीने में मेलोनी ने अमेरिका से कहा कि वे यही करेंगी। पिछली जुलाई में वे अमेरिकी राट्रपति जो बाइडन से वॉशिंगटन में मिलीं। उनसे संभवतः यही कहा कि इटली इस साल दिसंबर तक चीन की 'न्यू सिल्क रोड' परियोजना से नाता तोड़ लेने का निर्णय कर लेगा। 
 
2013 में परियोजना शुरू हुई : 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' के नाम से भी प्रसिद्ध चीन की 'न्यू सिल्क रोड' परियोजना चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 शुरू की थी। उस समय चीन के पास अमेरिकी डॉलर का बहुत बड़ा भंडार जमा हो गया था। वहां की सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों ने बुनियादी ढांचों के निर्माण वाली परियोजनाओं के बारे में काफी अनुभव भी प्राप्त कर लिया था। भारत से भी चीन की इस पहल में शामिल होने के लिए कहा गया, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने इससे दूर रहने में ही बुद्धिमत्ता देखी, जो बिल्कुल सही साबित हो रही है। 
 
शी जिनपिंग ने सोचा कि क्यो न कुछ ऐसा किया जाए, जिससे चीन की वैश्विक पहुंच का विस्तार हो सके। 'न्यू सिल्क रोड' के साथ, चीन ने 2013 से विशेषकर एशिया और अफ्रीका के उदयीमान देशों को अरबों डॉलर का ऋण देना शुरू किया। चीनी बैंकों ने बंदरगाहों, सड़कों, रेलवे लाइनों और हवाई अड्डों के निर्माण के लिए इस शर्त पर धन उधार दिया कि इन परियोजनाओं के लिए चीन की सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों को ही ठेके दिए जाएंगे और उन्हीं के कर्मचारी सारे काम भी करेंगे। स्थानीय लोगों को दूर रखा गया।
 
कई देश झांसे में आ गए : एशिया-अफ्रीका के विशेषकर ऐसे देश चीन के झांसे में आ गए, जिन के पास धन की तंगी और रेलवे, सड़कें, बंदरगाह इत्यादि जैसी आधारभूत संरचनाओं का अभाव था। जल्द ही कई पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी यूरोपीय देश भी चीनी ऋणों के आकांक्षी बन गए। उदाहरण के लिए, चीनी कंपनियों ने भूतपूर्व युगोस्लाविया का अंग रहे मोंटेनेग्रो के आर-पार एक तेज़गति एक्सप्रेस हाईवे बनाया। सर्बिया की राजधानी बेलग्रेड से हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट तक एक तेज़गति रेल मार्ग बनाया और ग्रीस (यूनान) के पीरेयुस बंदरगाह का विस्तार किया।
 
माना जाता है कि चीन इस तरह की परियोजनाओं के नाम पर दुनिया भर में अब तक लगभग एक लाख करोड़ (एक ट्रिलियन) डॉलर निवेश कर चुका है। कोई सटीक संख्या ज्ञात नहीं है, क्योंकि चीन परियोजनाओं की न तो कोई सटीक सूची जारी करता है और न ही लागत धनराशि के बारे में कोई सटीक आंकड़े प्रकाशित करता है। तब भी इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि दुनिया के बहुत से देशों में चीन का रोब-दाब और मान-सम्मान बढ़ा है।
 
G-7 गुट में इटली एकमात्र अपवाद : अमीर देशों वाले G-7 गुट का सदस्य इटली इस गुट का एकमात्र ऐसा देश है, जो चीन की 'न्यू सिल्क रोड' परियोजना में शामिल हुआ। हालांकि, 2019 में, जब इटली की तत्कालीन सरकार ने समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, तब परिदृश्य अलग था। अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन करते हुए चीन द्वारा हांगकांग की स्वायत्तता का अंत नहीं हुआ था। ताइवान द्वीप के आसपास तनाव प्रबंधनीय लग रहा था और चीन के शिंजियांग प्रदेश में वहां के उइगरों के मानवाधिकारों के हनन के बारे जानकारी भी बहुत कम थी।
 
वैसे, सबसे निर्णायक बात तो यह थी कि यूरोपीय संघ के मुख्‍यालय ब्रुसेल्स और जर्मनी की राजधानी बर्लिन में निर्णायक पदों पर बैठे लोग चीन के साथ व्यापार और आर्थिक संबंधों में विषमताओं को अनदेखा करके खुश थे, नए भू-राजनीतिक तनाव के लिए अकेले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को दोषी ठहराया करते थे।
 
परिदृश्य बदल गया है : चार साल बाद अब परिदृश्य बदल गया है- यूक्रेन पर रूसी आक्रमण और रूस के प्रति चीनी नीति की अस्पष्टता के कारण ही नहीं। 'न्यू सिल्क रोड' भी इस बीच और अधिक बदनाम हो गया है। अनेक परियोजनाएं अनावश्यक या बहुत भारी-भरकम साबित हुई हैं। कई देश चीनी ऋणों के बोझ से इतने दब गए हैं कि अपनी किश्तों के भुगतान नहीं कर पा रहे हैं।
 
अंतरराष्ट्रीय ऋणदाताओं के साथ एक मेज़ पर बैठने और ऋणों के पुनर्गठन पर बातचीत करने से चीन ने इनकार कर दिया है। श्रीलंका एक ऐसा ही उदाहरण है, जिसे भुगतान की समस्याओं में उलझा कर चीन ने उसके एक बंदरगाह को 99 साल के पट्टे पर ले लिया है। अफ्रीका और एशिया के दर्जनों देश कर्ज में डूब जाने के कारण चीन पर निर्भर हो गए हैं।
 
चीनी निवेश तेज़ी से गिरा है : यूरोप में, 'महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचों' में होने वाले चीनी निवेशों की, 2019 की तुलना में, अब कहीं अधिक बारीकी से जांच की जाती है। चीनी सरकार की देखरेख वाली वहां की कंपनी हुआवेई को अब कई देशों में 5G नेटवर्क के विस्तार से बाहर कर दिया गया है। यूरोपीय संघ में चीनी निवेश तेजी से गिर गया है: 2022 में, चीन से यूरोप में लगभग आठ अरब डॉलर का प्रवाह हुआ था। 2016 में वह 37 अरब डॉलर था। इटली के हट जाने से चीन की बहुप्रचारित 'न्यू सिल्क रोड' परियोजना की छवि को ठेस पहुंच सकती है, किंतु चीन के रुख में शायद ही कोई बदलाव देखने में आएगा। पृथ्वी के उन दक्षिणवर्ती देशों पर चीन का ध्यान पूर्ववत केंद्रित रहेगा, जहां उसने पैर जमा लिए हैं। 
 
हंगरी को छोड़कर लगभग सभी यूरोपीय देश चीन से मिलने वाले धन से परहेज़ करते हैं। किंतु, यूरोप के बाहर चीनी धन का लालच अब भी बना हुआ है। चीन के शिनजियांग प्रांत में मानवाधिकारों के हनन पर बहस के लिए पिछले साल अक्टूबर में संयुक्त राष्ट्र में जब मतदान हुआ, तो परिणाम बहस करने के विरुद्ध रहा। चीन के 'न्यू सिल्क रोड' के हामी कई इस्लामी देशों सहित सभी 19 देशों ने इस विषय को एजेंडे में नहीं रखने के लिए चीन के पक्ष में मतदान किया। 
 
चीन की ओर से बदले का डर : इटली में लोगों को फिलहाल यह डर भी ज़रूर सता रहा है कि चीन की 'न्यू सिल्क रोड' परियोजना से हाथ खींच लेने पर चीन कोई न कोई आर्थिक बदला लेगा। इतालवी टायर निर्माता कंपनी 'पिरेली' में सबसे बड़ी शेयरधारक विदेशी कंपनी 'सिनोकेम' है, जो वास्तव में चीनी सरकार के स्वामित्व वाली एक कंपनी है। इटैलियन पावर ग्रिड भी चीन ने खरीद रखा है। पहले से ही बीमार इतालवी अर्थव्यवस्था के लिए इस पचड़े से बाहर निकल पाना बहुत पीड़ादायक सिद्ध हो सकता है। प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी किंतु एक दृढ़निश्चयी महिला हैं। जो ठान लेती हैं, उसे कर दिखाती हैं।

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