जम्मू कश्मीर में चलेंगे दो 'संविधान' और दो 'निशान'

सुरेश एस डुग्गर
श्रीनगर। जम्मू कश्मीर में इस साल 14 मार्च को उस समय सत्ता पार्टनर भाजपा ने खुशी मनाई थी जब वह अपनी ही सरकार के उस आदेश को वापस करवाने में कामयाब हुई थी, जिसमें कहा गया था कि राज्य में सरकारी इमारतों और सरकारी वाहनों पर जम्मू कश्मीर के झंडे को फहराया जाना अनिवार्य है।

जम्मू कश्मीर सरकार का यह फैसला भाजपा की उस नीति से उलट था जिसमें वह हमेशा इसके प्रति जंग छेड़ती आई थी कि उसे जम्मू कश्मीर में ‘दो संविधान और दो निशान’ मंजूर नहीं हैं। यह बात अलग थी कि सत्ता पाने के लालच में वह डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान को भी भुला बैठी थी जिन्होंने इसी नारे की खातिर अपनी कुर्बानी दी थी और अब उसके लिए समस्या जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के उस आर्डर ने पैदा कर दी है जिसमें राज्य के झंडे को फहराया जाना अनिवार्य कर दिया गया है।

दरअसल इस साल 13 मार्च को मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्‍मद सईद ने भाजपा के गाल पर एक जबरदस्त ‘चांटा' मारा था। सईद के निर्देशों के बाद राज्य प्रशासनिक विभाग ने राज्य में संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों तथा उन सभी इमारतों पर जहां भारतीय तिरंगा फहराया जाता है, भारतीय तिरंगे के साथ ही स्टेट फ्लैग को फहराना जरूरी कर दिया था। ऐसा न करने पर सजा का प्रावधान रखा गया था। मुफ्ती सरकार का यह आदेश भाजपा की उस मांग और उस नारे का ‘जवाब’ माना गया था जिसमें वह राज्य से दो संविधान और दो निशान हटाने की मांग करती रही है।

बताया जाता है कि मुफ्ती सरकार इस अध्यादेश को जारी करने को मजबूर इसलिए हुई थी क्योंकि उसके सत्ता पार्टनर भाजपा के कुछ मंत्रियों ने अपने सरकारी वाहनों से राज्य के फ्लैग को लगाने से आनाकानी करनी आरंभ की थी। जानकारी के लिए राज्य का अपना संविधान होने के कारण सरकारी वाहनों और सरकारी इमारतों पर तिरंगे के साथ ही स्टेट फ्लैग को भी फहराना आवश्यक होता है और 1952 में हुए दिल्ली समझौते के बाद इस अधिकार को जारी रहने दिया गया था।

मंत्रियों तथा जिन संवैधानिक अधिकार प्राप्त सरकारी वाहनों और इमारतों पर भारतीय तिरंगे को फहराया जाता है, उसके साथ ही स्टेट फ्लैग को लगाने के सख्त आदेश जम्मू कश्मीर स्टेट ऑनर एक्ट 1979 के तहत निकाले गए थे। हालांकि यह आदेश जीएडी विभाग द्वारा निकले गए थे पर कहा यही जा रहा था कि यह सब मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्‍मद सईद के कहने पर हुआ था जिनके पास जीएडी अर्थात सामान्य प्रशासनिक विभाग का कार्यभार भी है।

मुख्यमंत्री सईद के इस निर्देश के बाद भाजपा के मंत्री बुरी तरह से फंस गए थे क्योंकि उन्होंने अंदरखाने से अपने दो निशान और दो संविधान नहीं चलेंगे के नारे को लागू करने की प्रक्रिया आरंभ तो की थी पर वह औंधे मुंह गिर गई थी। यह बात अलग थी कि भाजपा के विरोध के बाद 24 घंटे के भीतर इस आदेश को वापस ले लिया गया था, पर अब भाजपा के पास कोई रास्ता नहीं बचा है। वह जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के ऑर्डर को मानने को मजबूर है।

हालांकि जानकारी के मुताबिक, भाजपा इस संबंध में मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने का विचार रखती है, पर वह ऐसा शायद इसलिए भी न कर पाए क्योंकि वह खुद सत्ता में है और इसके लिए सत्ता पार्टनर पीडीपी का समर्थन चाहिए, जो पहले ही कोर्ट आर्डर का स्वागत कर चुकी है।
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