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कश्मीर में न पत्थरबाजी रुकी और न ही विरोध प्रदर्शन

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सुरेश डुग्गर

जम्मू। कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा दिए जाने और 5 अगस्त से राज्य के 2 टुकड़े करने और उसकी पहचान खत्म किए जाने की कवायद के बाद से दावा जो भी रहा हो कश्मीर की परिस्थितियों को लेकर, लेकिन अब यह सच्चाई सामने आई है कि कश्मीर में न पत्थरबाजी रुकी है, न ही विरोध प्रदर्शन।

हालांकि प्रशासन लगातार इस बात के दावे कर रहा है कि हालात सामान्य हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय मीडिया के साथ-साथ अब सामने आ रही ख़बरें बताती हैं कि केंद्र और जम्मू कश्मीर सरकार के दावे सच्चाई से परे हैं। अगर सरकारी सूत्रों पर विश्वास करें तो कश्मीर में पिछले 2 महीने में पत्थरबाज़ी की 306 घटनाएं हुई हैं और पत्थरबाजी की इन घटनाओं में सुरक्षाबलों के लगभग 100 जवानों के घायल होने की खबर है। घायल हुए जवानों में केंद्रीय सुरक्षाबलों के 89 जवान शामिल हैं। यही नहीं सुरक्षाबलों को दर्जनों बार भारत विरोधी प्रदर्शनों का सामना भी करना पड़ा है।
 
यही नहीं संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के भाषण के बाद कश्मीर में 24 घंटे के भीतर कुल 23 जगहों पर प्रदर्शन हुए थे। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने जमकर नारेबाज़ी भी की थी। प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसूगैस के गोले छोड़े थे। ये प्रदर्शन बाटापोरा, लाल बाजार, सौरा, चानापोरा, बाग-ए-मेहताब और कई दूसरी जगहों पर हुए थे। एक पुलिस अफ़सर के बकौल, कई प्रदशर्नकारी मस्जिदों में घुस गए थे और उन्होंने वहां से भारत के विरोध में नारेबाजी की और धार्मिक गाने बजाए थे।

याद रहे कि केंद्र सरकार ने 5 अगस्त को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा दिया था और जम्मू कश्मीर को 2 हिस्सों में बांट दिया था, तभी से वहां कई तरह की पाबंदियां लागू हैं। कश्मीर में 67 दिनों के बाद भी हालात सामान्य नहीं हो सके हैं। सभी हिस्सों में मोबाइल फ़ोन नहीं हैं और इस वजह से लोगों को ख़ासी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

कश्मीर में तैनात कुछ सरकारी अधिकारियों के अनुसार, केंद्र सरकार यह दावा करती है कि इतने दिनों में कश्मीर में कोई बड़ी घटना नहीं हुई है और इसका मतलब हालात सामान्य हैं, लेकिन यह दावा पूरी तरह गलत है। कुछ पुलिस अफसरों का कहना है कि घाटी में कई जगहों पर स्थानीय लोग अपनी दुकानों को खोलने के लिए तैयार नहीं हैं। यह भी सच है कि लोग अनुच्छेद 370 को हटाए जाने से नाराज हैं और वे अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे हैं।

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