कश्मीर में आईएसआईएस पर घमासान
खुफिया एजेंसियां बोलीं रिस्क नहीं ले सकते, डीजीपी बोले वजूद नहीं
श्रीनगर। कश्मीर में एक और आतंकी हमले की जिम्मेदारी लेने के बाद कश्मीर में आईएसआईएस के वजूद और मौजूदगी पर चल रहा घमासान तेज हो गया है। पुलिस महानिदेशक ने इस मामले पर सफाई देते हुए कहा है कि कश्मीर में आईएसआईएस का न तो कोई वजूद है और न ही मौजूदगी। दूसरी ओर खुफिया एजेंसियां डीजीपी के इस बयान से सहमत नहीं हैं। वे कहती हैं कि वे आईएसआईएस के मामले पर कोई रिस्क नहीं ले सकतीं। उनके मुताबिक आईएसआईएस का खतरा बहुत बढ़ा है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
पुलिस महानिदेशक डॉ. एसपी वैद ने कश्मीर में आईएसआईएस की मौजूदगी से इंकार किया है। उन्होंने कहा कि जब तक सौरा हमले में लिप्त आतंकी पकड़े नहीं जाते तब तक कुछ नहीं कहा जा सकता। मुझे यकीन है कि आम कश्मीरी ऐसे संगठनों को कश्मीर में पांव नहीं पसारने देगा। गौरतलब है कि रविवार को आतंकियों ने श्रीनगर के सौरा इलाके में एक पुलिसकर्मी फारूक अहमद की हत्या कर उसकी राइफल लूट ली थी। सोमवार शाम आईएस ने अपनी बेबसाइट अमाक पर इसकी जिम्मेदारी लेते हुए लूटी हुई राइफल की तस्वीर भी अपलोड की थी। हालांकि यह पहला अवसर नहीं है जब कश्मीर में किसी हमले की जिम्मेदारी आईएस ने ली हो। पिछले वर्ष भाजपा कार्यालय पर हुए हमले की जिम्मेदारी भी अमाक पर एलान करते हुए आईएस ने ली थी।
डॉ. एसपी वैद ने आईएस द्वारा सौरा हमले की जिम्मेदारी लेने पर कहा कि यह आतंकी संगठन का दावा है। उसने अपनी बेबसाइट पर ही इस वारदात की जिम्मेदारी ली है। हम तब तक कुछ नहीं कह सकते, जब तक सौरा हमले में लिप्त आतंकियों को पकड़ कर पूरे मामले को हल नहीं कर लेते। हमने हमलावर के बारे में कुछ सुराग जुटाए हैं। हम उसे जल्द ही पकड़ लेंगे। हो सकता है वह आईएस की विचारधारा से प्रभावित हो। हम कश्मीर को सीरिया व इराक नहीं बनने देंगे।
डीजीपी ने कहा कि शहर में लगातार आईएसआईएस का झंडा फहराने वालों में कोई भी आतंकवाद से जुड़ा नहीं है। उनका कहना था कि जिन आतंकी हमलों की जिम्मेदारी आईएस ने ली है पुलिस उन मामले में जांच कर रही है और आईएसआईएस का झंडा फहराने के सिलसिले में अब तक जितने भी लोगों की पहचान की गई है उनमें से कोई भी आतंकवाद से जुड़ा नहीं है। पुलिस महानिदेशक के बकौल इन घटनाओं में शामिल लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। सेना ने इस मामले पर आवाज उठाई थी और कहा था कि यह चिंता का विषय है और सुरक्षा की दृष्टि से इस पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है। शहर के पुराने इलाके में कुछ अरसा पहले एक विरोध प्रदर्शन के दौरान कुछ युवाओं ने आईएसआईएस का झंडा फहराया था।
उन्होंने कहा कि उन्होंने झंडा क्यों फहराया इसके बारे में पूछताछ पूरी होने के बाद ही पता चल सकेगा। इतना जरूर था कि पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के शासनकाल में उन्होंने इन घटनाओं को को कुछ मूर्ख लोगों द्वारा किया गया कार्य बताया था, जिसे मीडिया दुर्भाग्यवश तवज्जो दे रही है। पिछले एक अरसे से कई बार कश्मीर में आईएसआईएस के झंडे लहराने की खबरें आईं थी। इन घटनाओं के बाद कहा जाने लगा था की आईएसआईएस ने भारत में दस्तक दे दी है।
अब इस मुद्दे पर यह कहा जा रहा है कि आईएसआईएस के झंडे लहराने की जो घटनाएं सामने आई थीं उन झंड़ा लहराने वाले व्यक्तियों में किसी का भी संबंध किसी भी आतंकवादी संगठन से नहीं है। बताया जाता है कि पुलिस ने इस मामले में जांच की है। इस जांच में उन्हें झंड़ा लहराने वाले अधिकांश लोगों की पहचान कर ली है। इनमें से किसी का भी संबंध किसी भी आंतकी ग्रुप से नही है। वैसे आईएसआईएस का झंड़ा लहराने वाले लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया है। सेना ने भी पुराने शहर क्षेत्र में विरोध प्रदर्शन के दौरान कुछ युवाओं द्वारा आईएसआईएस झंडे के लहराते पर चिंता जताई थी।
अधिकारियों ने कहा कि इन हालात में उन्होंने झंडा क्यों लहराया इस बारे में जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है। डीजीपी कहते हैं कि ये आपको समझना होगा कि अब तक घाटी में आईएस से जुड़ा कोई समूह या संगठन नहीं पाया गया है न ही ऐसी कोई खबर है। कुछ मूर्ख आईएसआईएस का झंडा लहरा दें इसका अर्थ ये नहीं है कि घाटी में आईएसआईएस मौजूद है। हालांकि कुछ अधिकारी कहते थे कि मीडिया द्वारा इस मुद्दे को बिना बात का तूल देना सही नहीं है, सरकार इस बारे में अपनी तरफ से हर संभव कोशिश करके सच का पता लगा रही है। पर खुफिया एजेंसियां इस मामले को हलके से नहीं ले रही हैं।
उनका मानना है कि लोन वोल्फ अटैक का तरीका आईएसआईएस का ही है और आने वाले दिनों में इसमें वृद्धि होने का अंदेशा है। घमासान का परिणाम यह है कि राज्य की जनता के दिलोदिमाग पर अब आईएसआईएस का खतरा और दहशत मंडराने लगी है। इतना जरूर है कि करीब तीन साल पहले कश्मीर पुलिस ने उन 12 आईएसआईएस समर्थकों को हिरासत में लिया था जिनकी पहचान जुम्मे के दौरान लगातार होने वाले प्रदर्शनों में आईएसआईएस के झंडे फहराने के आरोप में हुई थी। उसके बाद आईएसआईएस को लेकर मामला ठंडा हो गया क्योंकि पुलिस ने इन गिरफ्तारियों के साथ ही आईएसआईएस का कश्मीर में खात्मा समझ लिया। हालांकि ऐसा हुआ नहीं। दो साल के बाद भी कश्मीर में आईएसआईएस के झंडों का दिखना खत्म नहीं हुआ है। हालात और बिगड़ रहे हैं।
आईएसआईएस के झंडों का दायरा बढ़ता जा रहा है। साथ में कश्मीर में आईएसआईएस के आने की दहशत भी। पुलिस कहती है कि उसने करीब 12 आईएसआईएस समर्थकों को पकड़ा था। कुछेक को बाद में समझाने बुझाने के बाद रिहा इसलिए कर दिया गया था क्योंकि उन्हें नासमझ और बरगलाए गए बच्चे समझा गया था। पर अभी भी यह सवाल मुंह बाए खड़ा है कि अगर इन गिरफ्तारियों के साथ ही कश्मीर में आईएसआईएस के खात्मे का जो दावा किया गया था वह कहां तक सही था। सवाल का जवाब इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इन दो सालों के दौरान शायद ही कोई शुक्रवार ऐसा खाली गया होगा जिस दिन आईएसआईएस के समर्थकों ने जुम्मे की नमाज के बाद पाकिस्तानी झंडों के साथ-साथ आईएसआईएस के झंडे लहराकर आईएसआईएस के कश्मीर में आने का संदेश न दिया हो।
कश्मीर में आईएसआईएस की दस्तक का इंतजार कर रहे सुरक्षाबलों के रवैये के प्रति सच्चाई यह है कि उन्होंने इस खतरे को बहुत ही हल्के से लिया है। आईएसआईएस के नाम की दहशत भी उसी समय कश्मीर में फैली जब आईएसआईएस के आतंकियों ने पेरिस में वहिशयाना तरीके से आतंकी हमले किए। इन हमलों के बाद ही कश्मीर में आनन-फानन आईएसआईएस के समर्थकों की पहचान, उन पर निगरानी रखने और उनकी गतिविधियों को जांचने की प्रक्रिया में बिजली सी तेजी लाई गई। साथ ही दावा भी हो गया कि कश्मीर में ऐसा कोई खतरा नहीं है। रोचक बात पुलिस द्वारा किए गए इस दावे की यह थी कि इसके दो ही दिन बाद राज्य में तैनात सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने यह भी दावा कर दिया कि आईएसआईएस कश्मीर में हमले कर सकता है।
यह बात अलग है कि उन्होंने यह जरूर कहा कि वह लश्कर के साथ मिल कर या उसके नाम पर ऐसी कार्रवाई कर सकता है। फिलहाल किसी को उम्मीद नहीं है कि आईएसआईएस के खतरे से कश्मीर को मुक्ति मिलेगी क्योंकि कश्मीर में तालिबानियों और अफगान मुजाहिदीनों के पर्दापण से पहले भी सेना और पुलिस ने ऐसे दावों की झड़ी लगाई थी और अंततः उसके बाद के परिणाम को कश्मीर आज भी भुगत रहा है। याद रहे कश्मीर में फिदायीन हमले, कार बम हमले और आत्मघाती हमले इन्हीं तालिबानियों तथा मुजाहिदीनों की देन थी।