कोरोनाकाल में एक और आफत की आहट, जम्मू-कश्मीर में तेजी से पिघल रहे हैं हिमनद

Webdunia
मंगलवार, 8 सितम्बर 2020 (18:06 IST)
श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) और लद्दाख में हिमनद काफी तेज गति से पिघल रहे हैं। अपनी तरह के पहले अध्ययन में ऐसा दावा किया गया है जिसने उपग्रह आंकड़ों का इस्तेमाल कर यह जाना कि हिमालय क्षेत्र में करीब 12,000 हिमनदों की बर्फ 2000 से 2012 के बीच सालाना औसतन 35 सेंटीमीटर तक पिघली है।
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यह अध्ययन नियंत्रण रेखा (LoC) और वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के इलाकों समेत जम्मू, कश्मीर और लद्दाख क्षेत्र पर किया गया और हिमनदों की मोटाई एवं द्रव्यमान में हुए परिवर्तनों को जानने के लिए कुल 12,243 ग्लेशियरों का अध्ययन किया गया।
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अध्ययन से संबंधित लेखक, प्रख्यात प्राध्यापक शकील अहमद रोमशू ने कहा कि सामान्य तौर पर, यह पाया गया कि पीर पंजाल क्षेत्र में हिमनद अधिक गति से यानह प्रतिवर्ष एक मीटर से अधिक की दर से पिघल रहे हैं जबकि काराकोरम क्षेत्र में ग्लेशियर तुलनात्मक रूप से धीमी गति से यानी करीब 10 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष की दर से पिघल रहे हैं। 
 
श्रीनगर में कश्मीर विश्वविद्यालय में अनुसंधान के डीन, रोमशू ने बताया कि काराकोरम क्षेत्र में कुछ हिमनद यहां तक की बढ़ भी रहे हैं या स्थिर हैं। अन्य पर्वतीय श्रृंखलाओं जैसे वृहद हिमालयन पर्वत श्रृंखला,जंस्कार पर्वतमाला, शामाबरी श्रृंखला, लेह पर्वतमालाओं में हिमनद बेशक पिघल रहे हैं लेकिन पिघलने की दर अलग-अलग है।
 
अनुसंधान टीम ने नासा द्वारा 2000 में और जर्मनी की अंतरिक्ष एजेंसी डीएलआर द्वारा 2012 में किए गए उपग्रह अवलोकनों का इस्तेमाल किया। इस टीम में कश्मीर विश्वविद्यालय के भूसूचना विभाग के तारिक अब्दुल्ला और इरफान राशिद दोनों शामिल थे।
 
 उन्होंने इस आंकड़े का उपयोग 12,000 हिमनदों वाली समूची ऊपरी सिंधु घाटी में ग्लेशियर की मोटाई में हुए परिवर्तनों को निर्धारित करने के लिए किया।
 
रोमशू ने कहा कि दुनिया में 2012 के बाद से ऐसे कई आंकड़े (उपग्रह अवलोकन) उपलब्ध नहीं है। यह क्षेत्र में अपने आप में पहले तरह का अध्ययन है और क्षेत्र में हिमनदों के साथ क्या हो रहा है, इस संबंध में अच्छी जानकारी उपलब्ध कराता है। 
 
उन्होंने कहा कि आज की तारीख तक क्षेत्र में केवल 6 हिमनदों का क्षेत्रीय अवलोकन का इस्तेमाल करते हुए मोटाई एवं द्रव्यमान परिवर्तन के लिए अध्ययन किया गया है। यह अध्ययन ‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। (भाषा)  (Symbolic image)

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