किसने शुरु करवाया था कसाईखानों में गौवध...

Webdunia
बुधवार, 31 मई 2017 (15:41 IST)
गाय आज राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है। गाय को लेकर राजनीति होती है या नहीं यह कहना संभव नहीं। दरअसल, गाय, गंगा, गीता और गायत्री हिन्दुओं की आस्था के केंद्र में है। ऐसे में यदि कोई सरेआम बछड़ा या गाय का कत्ल करता है तो करोड़ों हिन्दुओं का दिल दुखता है। इस दुख की कोई दवा नहीं है सिवाय इसके की काटने वाले को फांसी की सजा मिले।
 
गोवंश सदैव से भारतीय धर्म कर्म एवं संस्कृति का मूलाधार रहा है। कृषि प्रधान देश होने से भारतीय अर्थव्यवस्था का स्त्रोत भी रहा है। गाय का दूध, दही, घी, मूत्र, गोबर आदि सभी मानव के लिए उपयोगी और जीवनदायी है लेकिन सिर्फ यही नहीं गाय में ऐेसे भी कुछ है जिसके चलते गाय को देवीय और पवित्र माना गया है। वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि गाय में जितनी सकारात्मक ऊर्जा होती है उतनी किसी अन्य प्राणी में नहीं। दूसरी बात गाय की पीठ पर रीढ़ की हड्डी में स्थित सूर्यकेतु स्नायु हानिकारक विकिरण को रोककर वातावरण को स्वच्छ बनाने में सक्षम हैं। यह पर्यावरण के लिए लाभदायक है। सूर्यकेतु नाड़ी सूर्य के संपर्क में आने पर यह स्वर्ण का उत्पादन करती है। गाय के शरीर से उत्पन्न यह सोना गाय के दूध, मूत्र व गोबर में मिलता है। यह स्वर्ण दूध या मूत्र पीने से शरीर में जाता है और गोबर के माध्यम से खेतों में। कई रोगियों को स्वर्ण भस्म दिया जाता है। खैर.. 
 
मुस्लिम काल में अपवाद स्वरूप ही होता था गोवध : श्रीधर्मपाल द्वारा लिखित साहित्य में दिए गए प्रमाणों के अनुसार मुस्लिम शासन के समय गोवध अपवादस्वरूप ही होता था। अधिकांश शासकों ने अपने शासन को मजबूत बनाने और हिन्दुओं में लोकप्रिय होने के लिए गोवध पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि औरंगजेब सहित कुछ मुस्लिम शासक गोवध के खिलाफ नहीं थे। ऐसे में छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप, गुरुगोविंदसिंह आदि महान पुरुषों ने गो हत्या के कलंक के विरुद्ध निरन्तर संघर्ष किया।  
 
यह तो वे अंग्रेज और ईसाई आक्रमणकारी थे जिन्होंने भारत में गोवध को बढ़ावा दिया। अपने इस कुकर्म पर पर्दा डालने और हिंदू एवं मुसलमानों के बीच खाई को बढ़ाने के लिए उन्होंने मुस्लिम कसाइयों की ही नियुक्ति बूचड़खानों में की। इससे मुस्लिमों की छवि हिंदू समाज के मानस पटल पर बदल गई। यदि ऐसा नहीं होता और सभी समाज के लोगों की नियुक्त होती तो आज बूचड़खाने बंद करने पर किसी एक समाज को ही ऐतराज नहीं होता और यह मुद्दा सांप्रदायिक या जीतीय नहीं होता।
 
धर्मपालजी द्वारा दिए प्रमाणों से पता चलता है कि ‍ब्रिटेन की रानी के निर्देशन पर मुस्लिम कसाइयों को नियुक्त करने की नीति अपनाई गई थी। आज भी देश में वही अंग्रेजकालीन नीतियां जारी हैं। इनके चलते देश में गोवधबंदी असंभव है। स्मरणीय है कि भारत आज भी इंग्लैंड की डौमिन स्टेट हैं तथा अभी तक हम स्वतंत्र देश नहीं है। यही कारण है कि पूरी संसद द्वारा गौवध बंदी करने का समर्थन करने पर भी प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि यदि यह प्रस्ताव पास होता है तो मैं प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र पद से त्यागपत्र दे दूंगा। अनुमान यह है कि गौवध बंदी न करने का इंग्लैंड सरकार का आदेश नेहरू को मिला था।  
 
- पत्रिका 'गवाक्ष भारती', धर्मपाल की 'भारत में गौरक्षा...' और 'गौ की महिमा' पुस्तिका से साभार उद्धृत  
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