जम्मू। भारतीय सेना समेत अन्य सुरक्षाबलों के लिए कश्मीर का आतंकवाद महंगा साबित हो रहा है। जबकि 30 सालों के दौरान कुल 7200 सुरक्षाबल शहादत पा चुके हैं, जबकि गैर सरकारी आंकड़ा बताता है कि 10000 से अधिक सुरक्षाकर्मी मारे जा चुके हैं। इनमें 1700 पुलिसकर्मी भी शामिल हैं जबकि 1700 पुलिसकर्मियों में 500 के करीब पीएसओ अर्थात निजी अंगरक्षक भी शामिल हैं।
आंकड़ों के अनुसार, भारतीय सेना इन 30 सालों के आतंकवाद के दौर में राज्य में छेड़े गए आतंकवाद विरोधी अभियानों में लगभग 4000 सैनिकों को खो चुकी है और इनमें प्रत्येक 25 सैनिकों के पीछे एक अधिकारी भी शामिल है। ठीक इसी प्रकार 30 सालों से चल रहे आतंकवाद विरोधी अभियानों में भारतीय सेना के लगभग 17 हजार 600 जवान व अधिकारी घायल भी हुए। इनमें से करीब 3900 को समय से पूर्व सेवानिवृत्ति इसलिए देनी पड़ी क्योंकि वे आतंकवादी हमलों तथा मुठभेड़ों में घायल होने से शारीरिक रूप से अपंग हो चुके थे।
यही नहीं कश्मीर में पिछले 30 सालों में विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं की रक्षा करते हुए जम्मू-कश्मीर पुलिस के करीब 1700 पुलिसकर्मियों ने शहादत पाई है। इनमें 508 निजी सुरक्षा अधिकारी (पीएसओ) भी शामिल हैं। राजनीतिक दलों के नेताओं, मंत्रियों के साथ तैनात पीएसओ आधुनिक हथियारों से भले लैस न हों परंतु उनकी नौकरी का समय निर्धारित किया गया है। उनकी जिम्मेदारी संरक्षित व्यक्ति की रक्षा करना है। चाहे वह घर में हो या फिर किसी राजनीतिक कार्यक्रम में। वे हमेशा आतंकी हमलों का शिकार हो जाते हैं।
एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि सोमवार को पीडीपी नेता पर हुआ आतंकी हमला सुरक्षा में चूक नहीं है। आतंकियों की संख्या दो से तीन के करीब बताई जा रही है। आतंकवादियों ने घर में घुसते ही पीएसओ मंजूर अहमद पर अंधाधुंध गोलीबारी की। वह पीडीपी नेता हाजी परवेद अहमद के प्रवेश द्वार पर तैनात था। उन्हें कई गोलियां लगी। घायल अवस्था में उन्हें अस्पताल ले जाया गया परंतु जख्मों का ताव न सहते हुए उन्होंने दम तोड़ दिया। दूसरे पीएसओ ने आतंकियों की गोलीबारी का जवाब दिया परंतु आतंकी बच निकलने में सफल रहे।
इसी कारण इस सच्चाई से अब इंकार नहीं है कि आतंकवादग्रस्त कश्मीर घाटी में भारतीय सुरक्षाबलों द्वारा छेड़े गए आतंकवाद विरोधी अभियानों में भारतीय सेना को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों द्वारा उपलब्ध करवाए जाने वाले आंकड़ों के अनुसार, करीब 7200 सुरक्षाकर्मियों का बलिदान यह आतंकवाद अभी तक ले चुका है और यह भी चौंकाने वाला तथ्य है कि विश्व के सबसे ऊंचे युद्धस्थल सियाचिन ग्लेश्यिर पर होने वाली सैनिकों की मौतों के अनुपात में कश्मीर मंे होने वाली मौतें अधिक हैं।