श्रीनगर। आतंकियों को अपना भाई बताने वाले पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के वरिष्ठ नेता और विधायक एजाज मीर का फरार एसपीओ आदिल बशीर अब हिजबुल मुजाहिदीन का आतंकी बन चुका है। जबकि आधिकारिक रिकॉर्ड के मुताबिक, पिछले 7 सालों के भीतर 14 से अधिक पुलिसवाले आतंकियों के साथ जा मिले हैं। इनमें से कई को मार भी गिराया जा चुका है।
हिज्ब ने सोशल मीडिया पर उसकी हथियारों संग तस्वीर वायरल कर इसकी पुष्टि कर दी है। गौरतलब है कि एसपीओ आदिल बशीर गत शुक्रवार को विधायक की लाइसेंसी पिस्तौल और सुरक्षा गार्ड में शामिल आठ पुलिसकर्मियों की राइफलें लेकर फरार हो गया था। पहले ही दिन से उसके आतंकियों से जा मिलने की आशंका जताई जा रही थी, जो आज सही हो गई।
विधायक एजाज मीर के आग्रह पर ही आदिल बशीर को उनके सुरक्षा दस्ते में शामिल किया गया था। आदिल और विधायक एक ही गांव के हैं और विधायक के आग्रह पर आदिल को पहले एसपीओ बनाया गया और उसके बाद उनके सुरक्षा दस्ते में शामिल किया गया था। एजाज जिला शोपियां में वाची क्षेत्र से चुने गए हैं और श्रीनगर के राजबाग में उन्हें सरकारी आवास प्रदान किया गया है। उनके सरकारी निवास से ही उनका एक एसपीओ हथियार लेकर फरार हुआ है।
7 साल में 14 पुलिस वाले बने आतंकवादी : वैसे यह कोई पहला मौका नहीं है कि कोई आतंकी हथियार लेकर भागा हो और बाद में आतंकी ग्रुप में शामिल हो गया हो बल्कि पिछले 7 सालों के आंकड़े बताते हैं कि 14 पुलिस वाले ऐसा कर चुके हैं। ऐसा कई बार हुआ है, जब जम्मू कश्मीर के पुलिसकर्मी सर्विस राइफलें लेकर भागे हैं और विभिन्न आतंकी संगठनों में शामिल हो गए हैं।
वैसे एक कांस्टेबल नसीर अहमद पंडित 27 मार्च 2015 को पीडीपी के मंत्री अलताफ बुखारी के आवास से दो एके राइफल के साथ भाग निकला था और अप्रैल 2016 में शोपियां जिले में एक मुठभेड़ में मारा गया था।
आंकड़ों के मुताबिक पिछले 7 सालों में घाटी में 12 पुलिसकर्मी आतंकी बने हैं। रविवार को फरार हुए बड़गाम पुलिस के नावीद मुश्ताक के अलावा साल 2016 में रैनावाड़ी पुलिस स्टेशन पर तैनात एक पुलिसकर्मी एके-47 के साथ फरार होकर आतंकी बन गया था। इसके अलावा जनवरी 2017 में भी एक पुलिसकर्मी एके-47 के साथ आतंकी गुट लश्कर-ए-तैयबा के साथ मिल गया था।
साल 2015 की बात करें तो रियाज अहमद और गुलाम मुहम्मद नाम के दो पुलिसकर्मी आतंकी गुट के साथ जुड़ गए थे। हालांकि बाद में एक एनकाउंटर के दौरान दोनों मारे गए थे।
साल 2015 में ही पुलवामा जिले के राकिब बशीर ने पुलिस सेवा ज्वाइन करने के 1 माह बाद ही हिजबुल मुजाहिद्दीन का दामन थाम लिया था। वहीं साल 2014 में नसीर अहमद पंडित नाम के पुलिसकर्मी ने भी हिजबुल का साथ थामा लेकिन एक एनकाउंटर के दौरान वो भी मारा जा चुका है। साल 2012 में भी एक पुलिसकर्मी को आतंकी गुटों के साथ संपर्क रखने पर गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था।
जम्मू कश्मीर पुलिस के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि पुलिसकर्मियों के आतंकी गुटों में जाने का कारण है कि इससे आतंकियों को हथियार भी मिलते हैं और साथ ही उनकी मूवमेंट को काफी उत्साह मिलता है, जिसकी मदद से वह युवाओं को बरगलाने में कामयाब हो जाते हैं। हालांकि अब पुलिस ने कई आतंकी मॉडयूल को घाटी से खत्म कर दिया है, लेकिन अभी भी कुछ मॉड्यूल सक्रिय है। जिनसे नौजवानों की भर्ती की जा रही है।