"दुनिया में रहना है तो काम कर प्यारे, हाथ जोड़, सब को सलाम कर प्यारे..." यह गाना तो आपने सुना ही होगा, लेकिन मध्यप्रदेश की पुलिस इसे अब जिंदगी का मूलमंत्र बनाने पर मजबूर है। डीजीपी कैलाश मकवाना ने एक ऐसा फरमान जारी किया है कि अब हर पुलिसकर्मी—चाहे सिपाही हो या थानेदार—मुख्यमंत्री, मंत्रियों, सांसदों और विधायकों को देखते ही सैल्यूट ठोकेगा। सड़क पर, दफ्तर में, या विधायक जी की गाड़ी का हॉर्न सुनते ही—बस, कंधा उठाओ, सैल्यूट मारो! और इस तमाशे की शुरुआत?
सूत्रों के मुताबिक, एक कैबिनेट मंत्री ने हाल ही में डीजीपी कैलाश मकवाना से शिकायत की कि एक सरकारी कार्यक्रम में पुलिसकर्मियों ने उन्हें सैल्यूट नहीं किया। मंत्रीजी ने इसे अपनी 'गरिमा' पर हमला माना। इसके बाद डीजीपी ने तुरंत यह आदेश जारी कर दिया कि सभी पुलिसकर्मी जनप्रतिनिधियों को सैल्यूट करेंगे।
डीजीपी साहब का दावा है कि यह नियम जनप्रतिनिधियों की 'गरिमा' बढ़ाने के लिए है। लेकिन सवाल यह है कि क्या गरिमा सल्यूट से बढ़ती है, या फिर काम से? मध्यप्रदेश में साइबर क्राइम, चोरी और गुंडागर्दी के मामले बढ़ रहे हैं। भोपाल के रानी कमलापति स्टेशन पर हाल ही में एक हेड कांस्टेबल की पिटाई हुई, सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्होंने शराब पीने से रोका। ऐसे में पुलिस को सल्यूट की ट्रेनिंग चाहिए, या अपराध से लड़ने की आजादी?
पुलिस का नया 'फिटनेस मंत्र': इस फरमान ने मध्यप्रदेश पुलिस को हास्य का पात्र बना दिया है। एक्स पर एक यूजर ने लिखा की "अब पुलिसवाले सुबह सैल्यूट की प्रैक्टिस, दोपहर में सैल्यूट, और रात में सैल्यूट का रिव्यू करेंगे। अपराधी पकड़ने का टाइम कहां से लाएंगे?" एक पुलिसवाले ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "साहब, पहले हमारा काम था चोर-बदमाश पकड़ना। अब विधायक जी को सलाम करना ड्यूटी लिस्ट में टॉप पर है। कंधा तो जवाब दे देगा!"
फरमान के पीछे का 'सियासी तमाशा' : सोशल मीडिया पर इस आदेश को लेकर बहस छिड़ी है। कुछ का मानना है कि यह नौकरशाही और जनप्रतिनिधियों के बीच तनाव कम करने की कोशिश है। लेकिन विपक्ष ने इसे पुलिस की बेइज्जती करार दिया। पीसीसी चीफ जीतू पटवारी ने कहा, "यह आदेश खाकी का अपमान है। पुलिस का मनोबल तोड़कर लोकतंत्र पर हमला किया जा रहा है।" सवाल वाजिब है—जब पुलिस सल्यूट ठोकने में व्यस्त होगी, तो अपराधियों को कौन रोकेगा?
क्या दूसरे राज्यों में भी ऐसा सर्कस?
हमने अन्य राज्यों में इस तरह के आदेशों की खोज की, लेकिन मध्यप्रदेश जैसा अनोखा तमाशा कहीं नहीं मिला। हालांकि, कुछ राज्यों में पुलिस और जनप्रतिनिधियों के बीच तनाव की खबरें जरूर हैं। 2023 में उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में बीजेपी विधायक प्रदीप चौधरी पर थाने में हंगामा करने का आरोप लगा था। 2024 में बिहार के पटना में जेडीयू विधायक गोपाल मंडल और पुलिस के बीच तीखी झड़प हुई, जब विधायक ने पुलिस पर पक्षपात का इल्जाम लगाया। लेकिन इन राज्यों में कहीं भी पुलिस को सल्यूट करने का लिखित फरमान नहीं जारी हुआ।
छत्तीसगढ़ में 2022 में एक अनौपचारिक प्रथा की खबर आई थी, जहां पुलिस को नेताओं के स्वागत में विशेष व्यवस्था करने को कहा जाता था, लेकिन वहां भी कोई आधिकारिक आदेश नहीं था। मध्यप्रदेश ने इस 'सैल्यूट सर्कस' में सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए।
जनता का तल्ख तंज : "एक्स" पर लोग इस आदेश पर जमकर मजे ले रहे हैं। एक यूजर ने लिखा, "अब पुलिसवाले सल्यूट करते-करते थक जाएंगे, और चोर-डकैत मजे में घूमेंगे।" भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 हर नागरिक को समानता और सुरक्षा का हक देते हैं। पुलिस का काम है कानून लागू करना, न कि नेताओं की चापलूसी।
सैल्यूट या सलामती?
इस फरमान ने मध्यप्रदेश की सियासत में नया रंग भर दिया। कुछ इसे वोट की राजनीति बता रहे हैं, तो कुछ नौकरशाही पर नकेल कसने की कोशिश। एक पुलिसकर्मी ने मजाक में कहा, "अब हम सैल्यूट का हिसाब रखेंगे—विधायक जी को दो, सांसद जी को तीन, और पार्षद जी को आधा!"
लेकिन असल सवाल यह है—क्या हम चाहते हैं कि हमारी पुलिस अपराधियों से लड़े, या सैल्यूट की परेड करे? यह आदेश न सिर्फ पुलिस का मनोबल तोड़ रहा है, बल्कि आम आदमी की सुरक्षा पर भी सवाल उठा रहा है। मध्यप्रदेश का यह 'सैल्यूट ड्रामा' हमें सोचने पर मजबूर करता है कि खाकी की असली ताकत कानून लागू करने में होनी चाहिए, न कि खादी की चाकरी में। तो, अगली बार जब आप मध्यप्रदेश में किसी पुलिसवाले को सैल्यूट ठोकते देखें, तो हंसिए मत—यह खाकी का खादी को सलाम है। लेकिन सवाल वही—आम आदमी की सलामती का क्या? हमें अपनी राय जरूर शेयर करें।
नोट: यह लेख व्यंग्यात्मक है और इसका मकसद मनोरंजन के साथ-साथ विचार उत्पन्न करना है