महात्मा गांधी हत्याकांड मामले में आप्टे की पहचान संदेह के घेरे में

Webdunia
बुधवार, 15 नवंबर 2017 (18:22 IST)
नई दिल्ली। महात्मा गांधी हत्याकांड में मुख्य हत्यारे नाथूराम गोडसे के साथ नारायण दत्तात्रेय आप्टे को 15 नवंबर, 1949 को फांसी पर लटकाया गया था। उच्चतम न्यायालय में एक याचिका में दावा किया गया है कि आप्टे की पहचान संदेह के घेरे में है और इसमें महात्मा गांधी हत्याकांड की जांच फिर से कराने का अनुरोध किया गया है।
 
इस घटना के 68 साल बाद, आज उच्चतम न्यायालय में एक याचिका में दावा किया गया है कि आप्टे की पहचान संदेह के घेरे में है और इसमें महात्मा गांधी हत्याकांड की जांच फिर से कराने का अनुरोध किया गया है। महात्मा गांधी हत्याकांड की पूरी साजिश का पता लगाने के लिए 1966 में गठित न्यायमूर्ति जेएल कपूर आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि आप्टे भारतीय वायुसेना में रह चुका था।
 
हालांकि रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने सात जनवरी, 2016 को शोधकर्ता और शीर्ष अदालत में याचिका दायर करने वाले डॉ. पंकज फडनीस को सूचित किया कि नारायण दत्तात्रेय आप्टे के वायुसेना का एक अधिकारी होने के बारे में कहीं भी कोई जानकारी नहीं मिली है। 
 
शोधकर्ता और अभिनव भारत के ट्रस्टी फडनीस ने महात्मा गांधी हत्याकांड की जांच पर सवाल उठाते हुए कहा है कि यह इतिहास में लीपा-पोती वाला एक सबसे बड़ा मामला है। उन्होंने याचिका के साथ तत्कालीन रक्षामंत्री, अब गोवा के मुख्यमंत्री, पर्रिकर का पत्र भी संलग्न किया है। याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि इस तरह की सूचना से 30 जनवरी, 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या में कथित विदेशी हाथ की संलिप्तता साबित होती है।
 
पर्रिकर के पत्र में कहा गया है, मैंने मामले की जांच कराई। मुझे सूचित किया गया है कि यह मामला वायुसेना के भीतर ही विभिन्न एजेंसियों, रक्षा मंत्रालय की डिवीजन और ब्रिटेन के एचसीआई स्थित एए, के पास इस अनुरोध के साथ भेजा गया था कि नारायण दत्तत्रेय आप्टे से संबंधित कोई भी जानकारी उपलब्ध कराई जाए। इन सभी एजेंसियों ने पुष्टि की है कि उन्हें नारायण दत्तात्रेय आप्टे से संबंधित कोई रिकॉर्ड नहीं मिला है। 
 
रक्षा मंत्रालय के इतिहास प्रकोष्ठ ने तो राष्ट्रीय अभिलेखागार, केन्द्रीय सचिवालय पुस्तकालय से भी संपर्क किया और महात्मा गांधी हत्याकांड के मुकदमे के निजी कागजात का भी अध्ययन किया गया है। पत्र में यह भी कहा गया है कि 1943-46 के लिए भारत के राजपत्र (वायु प्रकोष्ठ) की भी खोजबीन की गई, परंतु उसके भारतीय वायुसेना का अधिकारी होने के बारे में कोई भी जानकारी कहीं नहीं मिली।
 
फडनीस ने पर्रिकर के पत्र के आधार पर गांधी हत्याकांड मामले की फिर से जांच कराने का अनुरोध करते हुए शीर्ष अदालत में तर्क दिया है कि ऐसी स्थिति में इस तथ्य पर भरोसा करने का पर्याप्त आधार है कि आप्टे ब्रिटिश फोर्स 136 का ऑपरेटिव था। इसकी पुष्टि इस मामले में आगे जांच के बाद ही हो सकती है।
 
शीर्ष अदालत ने इस मामले में पूर्व अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल और वरिष्ठ अधिवक्ता अमरेन्द्र शरण को न्याय मित्र नियुक्त किया है, जो इस हत्याकांड के बारे में फडनीस की याचिका और उनके द्वारा उपलब्ध कराए गए दस्तावेजों का अध्ययन करेंगे। इस याचिका में गांधी हत्याकांड में ‘तीन बुलेट की कहानी’ पर प्रश्न चिह्न लगाने के साथ यह सवाल भी उठाया गया है कि क्या नाथूराम गोडसे के अलावा किसी अन्य व्यक्ति ने चौथी बुलेट भी दागी थी? 
 
इस हत्याकांड में अदालत ने 10 फरवरी, 1949 को गोडसे और आप्टे को मौत की सजा सुनाई थी जबकि विनायक दामोदर सावरकर को साक्ष्यों की कमी के कारण संदेह का लाभ दे दिया गया था। पूर्वी पंजाब उच्च न्यायालय द्वारा 21 जून, 1949 को गोडसे और आप्टे की मौत की सजा की पुष्टि के बाद दोनों को 15 नवंबर, 1949 को अंबाला जेल में फांसी दे दी गई थी। (भाषा)

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