नई दिल्ली। इन दिनों केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक के बीच खींचतान चल रही है। इस खींचतान के बीच अब देश के पूर्व प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री रह चुके मनमोहन सिंह का एक बयान सामने आया है। पूर्व पीएम ने कहा है कि वित्त मंत्री का दर्जा हमेशा रिजर्व बैंक के गवर्नर से ऊपर होता है। गवर्नर कोई फैसला लेना चाहे तो उसे सरकार को विश्वास में लाना होता है। वह न तो वित्त मंत्री से ऊपर हो सकता है और न ही उनका आदेश टाल सकता है। लेकिन अगर वह नौकरी गंवाना चाहता है तो आदेश को टाल सकता है। हालांकि, पूर्व पीएम का ये बयान पुराना है।
मनमोहन सिंह ने अपनी बेटी दमन सिंह की किताब 'स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन गुरुशरण' में उनका यह भी मानना है कि रिजर्व बैंक का गवर्नर तभी सरकार के खिलाफ होता है जब वह नौकरी छोड़ने का मन बना ले। दमन सिंह की यह किताब 2014 में प्रकाशित हुई थी।
उन्होंने अपने दिनों को याद करते हुए कहा कि जब भी गवर्नर कोई फैसला लेना चाहे तो उसे सरकार को विश्वास में लाना होता है। वह न तो वित्त मंत्री से ऊपर हो सकता है और न ही उनका आदेश टाल सकता है। लेकिन अगर वह नौकरी गंवाना चाहता है तो आदेश को टाल सकता है। उन्होंने 1983 में इंदिरा गांधी सरकार के दौरान जिस संघर्ष का सामना किया, उसकी बात भी कही। उन्होंने कहा कि स्वायत्ता बैंकों के लाइसेंस देने वाले मामले में उन्होंने इस्तीफा देने के बारे में सोचा था।
इंदिरा सरकार के समय की बात बताते हुए उन्होंने कहा कि उस वक्त ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो गई थीं, जिससे उनका टकराव सरकार से हो गया। उन्होंने सराकर को भी आरबीआई का नजरिया बताया। बाद में सरकार के निर्देश के बाद मामला सुलझ गया।
इन दिनों केंद्र की मोदी सरकार और रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल के बीच तनाव की खबरें मीडिया में छाई हुई हैं। ऐसी चर्चा भी थी कि सरकार आरबीआई एक्ट का सेक्शन-7 लागू करके इसकी स्वायत्तता पर लगाम लगाना चाहती है। जवाहर लाल नेहरू के समय में भी आरबीआई के चौथे गवर्नर रहे बेनेगल रामा राव और सरकार के बीच मतभेद थे। जिसकी वजह से उन्होंने जनवरी 1957 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। (एजेंसी)