महाराष्ट्र में मराठा क्रांति मोर्चा के बैनर तले एक साल बाद फिर का मराठा समाज आरक्षण की मांग को लेकर सड़क पर उतर आया है। आंदोलनकारी मराठों की मांग है कि उन्हें नौकरियों के साथ ही शिक्षण संस्थाओं में भी आरक्षण दिया जाना चाहिए। हालांकि पहली नजर में यह लड़ाई आरक्षण के साथ ही राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई भी दिखाई दे रही है।
इस बीच, आंदोलन के दौरान छिटपुट हिंसा भी हुई। वाहनों को जलाने के साथ ही एक व्यक्ति ने आंदोलन के समर्थन में खुदकुशी कर ली, वहीं तीन अन्य लोग खुदकुशी का प्रयास कर चुके हैं।
उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष भी अगस्त माह में मराठों ने मूक मोर्चा निकाला था। तब आरक्षण की मांग के साथ ही अहमदनगर ज़िले के कोपर्डी गांव की रेप पीड़ित 9वीं की छात्रा को न्याय दिलाने की मांग भी शामिल थी। इस गैंग रेप में दलित समाज के युवकों के शामिल होने का आरोप था। इस साल की तरह पिछली साल भी आंदोलन में महिलाओं और लड़कियों ने बड़ी संख्या में भागीदारी की थी।
तब आंदोलनकारियों का कहना था कि दलितों पर कोई भी अत्याचार हो तो एससी/एसटी एक्ट के तहत उन्हें आर्थिक मुआवजा मिल जाता है और हमें सजा। मुआवजा पाने और सजा दिलाने के लालच में वे हमारे खिलाफ झूठे मुकदमे दायर करते हैं। उस समय शिवसेना के मुखपत्र सामना में मूक मोर्चा को 'मूका मोर्चा' कहने पर काफी बवाल भी हुआ था।
क्या हैं मराठा समाज की मांगें : मराठा समाज की मांग है कि उन्हें ओबीसी में शामिल किया जाए और उन्हें सरकारी नौकरियों में 16 फीसदी आरक्षण दिया जाए। शिक्षण संस्थाओं में भी मराठा समाज आरक्षण चाहता है। स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे और छगन भुजबल जैसे पिछड़े नेता मराठा समाज को आरक्षण देने का विरोध कर चुके हैं।
ताकतवर समाज : एक जानकारी के मुताबिक महाराष्ट्र में मराठी समाज की आबादी 33 प्रतिशत के लगभग है। कुल कृषि-भूमि का 72% हिस्सा मात्र 3000 मराठा परिवारों के कब्जे में है। राज्य के 50% शिक्षा संस्थान, 70% जिला सहकारी बैंक और 90% चीने मिलें मुट्ठी भर मराठा नेताओं का ही नियंत्रण है।
इसके साथ ही प्रशासनिक पदों से लेकर राजनीतिक दलों में भी मराठों का वर्चस्व रहा है। 1960 में महाराष्ट्र की स्थापना के बाद जितने भी मुख्यमंत्री राज्य में बने हैं उनमें अधिकांश मराठा थे। इनमें यशवंतराव चव्हाण, शंकरराव चव्हाण, शरद पवार, विलासराव देशमुख, अशोक चव्हाण, पृथ्वीराज चव्हाण आदि प्रमुख हैं।
राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई : मराठा आंदोलन को राज्य में राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई से भी जोड़कर देखा जा रहा है। राज्य के अब तक के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो तो पता चलता है कि राज्य की सत्ता पर ज्यादा समय तक मराठा मुख्यमंत्री ही काबिज रहे हैं। भाजपा ने अपने घोषणापत्र में मराठाओं को आरक्षण देने का वादा किया था। वर्तमान मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ब्राह्मण समुदाय से आते हैं। ऐसे में इस लड़ाई को मराठा बनाम ब्राह्मण से भी जोड़कर देखा जा रहा है।