मायावती के निशाने पर रहे नरेंद्र मोदी और अखिलेश यादव

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लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी ने इस गुजरते साल में जहां अपने कई कद्दावर नेताओं को पार्टी का दामन छोड़ते देखा, वहीं नोटबंदी ने पार्टी को एक ऐसा मुद्दा दे दिया जिससे वह भारतीय जनता पार्टी पर सीधे निशाना साध सकी और पार्टी को विश्वास है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में जीत उसके ही हाथ लगेगी। मायावती को यह भी विश्वास है कि इस बार अल्पसंख्यक विशेषकर मुसलमान उनके साथ होंगे।
मायावती की पार्टी से इस वर्ष कई कद्दावर नेताओं ने किनारा कर लिया। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य इनमें प्रमुख नाम है, जो बसपा छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। आरके चौधरी और ब्रजेश पाठक ने भी बसपा छोड़ दी।
 
अक्सर धन लेकर टिकट देने के आरोपों का सामना करने वालीं मायावती ने कहा कि उनकी पार्टी देश में एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसके पास गलत तरीके से अर्जित धन नहीं है। उन्होंने माना कि टिकट चाहने वाले आर्थिक योगदान करते हैं और इस राशि का उपयोग पार्टी संगठन को मजबूत करने एवं चुनाव लड़ने में किया जाता है।
 
नोटबंदी पर मायावती के तेवर काफी कड़े हैं। उन्होंने मोदी सरकार पर देश में अघोषित 'आर्थिक इमरजेंसी' लगाने का आरोप मढ़ा। उन्होंने आरोप लगाया कि इतना बड़ा फैसला लेने से पहले गरीबों के बारे में नहीं सोचा गया और पूंजीपतियों को बड़े पैमाने पर लाभ पहुंचाया गया। बसपा का मानना है कि नोटबंदी का यह फैसला भाजपा के लिए विनाशकारी साबित होगा और लोग बसपा पर आस टिकाएंगे। वर्षभर मायावती के निशाने पर एक ओर केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार रही तो दूसरी ओर उत्तरप्रदेश की सपा सरकार पर भी उन्होंने जमकर हमला बोला।
 
कानून व्यवस्था के मुद्दे पर मायावती ने सपा सरकार और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नाकाम होने का दावा करते हुए कहा कि सपा सरकार की नीतियां ढुलमुल हैं और उसकी भाजपा से मिलीभगत है। सपा की सरकार बनने के बाद से ही कानून का राज समाप्त हो गया।

मुसलमानों को अगले विधानसभा चुनाव में बसपा की ओर आकर्षित करने की कवायद में मायावती ने कहा कि उत्तरप्रदेश के सर्वसमाज विशेषकर मुसलमानों को यह समझना बहुत जरूरी है कि सपा में उनके हित सुरक्षित नहीं हैं। दो खेमों (अखिलेश-शिवपाल) में बंटी सपा को वोट देने का मतलब भाजपा को जिताना है।
 
मायावती एक ओर मुसलमानों से खुलकर वोट मांग रही हैं तो उन्हीं की पार्टी के नेता महासचिव सतीश मिश्र भाईचारा सम्मेलनों के जरिए समाज के अन्य तबकों खासकर ब्राह्मणों को जोड़ने की कवायद में लगे हुए हैं।
 
'नोटों की माला' वाली प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की टिप्पणी पर भी मायावती ने पलटवार करते हुए कहा कि दलित की बेटी माला पहने, ये बात प्रधानमंत्री को हजम नहीं होती। मोदी खुद अपने गिरेबान में झांककर देखें कि वे दूध के कितने धुले हैं? 
 
मूर्तियों और पार्कों के निर्माण के लिए विरोधियों के निशाने पर रहने वाली मायावती ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि इस बार बसपा की सरकार बनी तो उनका पूरा ध्यान कानून व्यवस्था दुरुस्त करने और विकास की ओर होगा। भाजपा के निष्कासित नेता दयाशंकर सिंह की पत्नी और बेटी पर बसपा नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी की विवादास्पद टिप्पणी भी इस वर्ष चर्चित रही।
 
कांशीराम द्वारा 1984 में गठित बसपा का मुख्य आधार उत्तरप्रदेश में ही है। मायावती ने 1993 में सपा के साथ गठबंधन सरकार बनाई थी। 2 जून 1995 को बसपा ने सपा सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। इसके बाद 3 जून 1995 को भाजपा की मदद से मायावती मुख्यमंत्री बनीं लेकिन अक्टूबर 1995 में भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया।
 
मायावती ने वर्ष 2007 में 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' का नारा देते हुए पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई लेकिन 2012 में सपा के हाथों सत्ता गंवा दी। इस बार पार्टी फिर सत्ता में लौटने की आस बांधे हुए है। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में 21 सांसद भेजने वाली मायावती की पार्टी 2014 के आम चुनाव में खाता भी नहीं खोल पाई।
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