कश्मीर एक, उमर दो, हल भी सुझाते हैं दो...

सुरेश डुग्गर
श्रीनगर। कश्मीर के ‘शेर’ और ‘बकरा’ परिवार एक बार फिर आमने-सामने हैं। शेरे कश्मीर स्व. शेख मुहम्मद अब्दुल्ला के परिवार को कश्मीर में ‘शेर’ और स्व. मीरवायज मौलवी फारूक की दाढ़ी के कारण ‘बकरा’ परिवार के नाम से जाना जाता था। और अब उनके वंशज (मीरवायज उमर फारूक तथा उमर फारूक अब्दुल्ला) एक बार फिर आमने-सामने हैं। दोनों का यूं तो मकसद एक ही है लेकिन रास्ते अलग-अलग हैं।
अगर उमर अब्दुल्ला अपने दादाजान शेरे कश्मीर शेख मुहम्मद अब्दुल्ला के कदमों को फॉलो करते हुए कश्मीर के लिए अटानिमी की ही मांग कर रहे हैं तो मीरवायज उमर फारूक ने अपना रास्ता बदलकर कश्मीर के लिए सेल्फरूल को तरजीह देना आरंभ किया है। इन दोनों मामलों पर करीब आधी सदी तक ‘शेर’ व ‘बकरा’ परिवार कश्मीर में राजनीतिक जंग भी लड़ चुके हैं।
 
मीरवायज उमर फारूक जिस सेल्फरूल या यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ कश्मीर को कश्मीर घाटी के हल के रूप में पेश करते हैं उसमें और नेकां के अध्यक्ष उमर अब्दुल्ला द्वारा मांग की जा रही अटानिमी के बीच का खास फर्क यही है कि उमर अब्दुल्ला भारतीय संविधान के तहत रहते हुए ऐसा सब कुछ चाहते हैं तो मीरवाइज की मांग कश्मीर को अर्द्ध स्वतंत्रता देने की है।
 
उमर अब्दुल्ला इस सच्चाई से वाकिफ हैं कि कश्मीर के लिए स्वतंत्रता या अर्द्ध स्वतंत्रता घातक साबित हो सकती है। कारण स्पष्ट है। पाकिस्तान ऐसा कभी नहीं चाहेगा और वह अपने कब्जे वाले कश्मीर के हिस्सों को भी कभी खाली नहीं करेगा। हालांकि मीरवायज उमर फारूक कहते हैं कि सेल्फरूल अटानिमी और पूर्ण आजादी के बीच का रास्ता है, पर कई पक्ष इससे सहमत नहीं हैं। सच्चाई यह है कि सेल्फरूल अमेरिकी योजना चिनाब प्लान कह लीजिए या फिर डिक्सन प्लान का बिगड़ा और संशोधित रूप है। 
 
मगर भारत सरकार भी इसके लिए हामी भरने को तैयार नहीं है। तभी तो उमर अब्दुल्ला भी चाहते हैं कि कश्मीर के दोनों हिस्सों को ग्रेटर अटानिमी दी जाए। वे पाकिस्तान से भी मांग करते हैं कि वह अपने वाले कश्मीर को भी ऐसी ही अटानिमी दे ताकि वहां के लोग भी अपनों से मिलने के लिए आसानी से आरपार आ-जा सकें। वैसे दोनों की मांग का एक अन्य खास पहलू एलओसी को लचीला बनाना है।
 
देखा जाए तो यूं दोनों उमर का मकसद कश्मीर को सुलझाना और दोनों ओर के कश्मीर के हिस्सों के कश्मीरियों के दुख-दर्द को कम करना है, पर दोनों के रास्ते अलग हैं। चाहे मंजिल एक ही है। मीरवायज उमर फारूक अर्द्ध स्वतंत्रता का पक्ष लेते हुए कश्मीरियों के उस सपने को भी पूरा करने की कोशिश में हैं जिसे कश्मीरियों को पाकिस्तान ने आतंकवाद के शुरू में दिखाया था, परंतु उमर अब्दुल्ला इसमें कश्मीर और कश्मीरियों के लिए खतरा देख रहे हैं, तभी तो वे कहते हैं कि बजाए इसके कि कश्मीर को बफर स्टेट बना दिया जाए, कश्मीर के दोनों हिस्सों को भारत और पाक की सरकारों के संविधान के तहत ही ग्रेटर अटानिमी देकर कश्मीरियों के आरपार आने-जाने के हक को बहाल कर दिया जाए। 
 
वैसे उमर अब्दुल्ला की मांग भी अर्द्ध स्वतंत्रता की पक्षधर है। फर्क इतना ही है कि यह अर्द्ध स्वतंत्रता ग्रेटर अटानिमी के नाम से हो तथा दोनों मुल्कों का अपने-अपने हिस्से पर कंट्रोल रहे, पर मीरवाइज को यह इसलिए भी मंजूर नहीं है क्योंकि अभी तक वह कश्मीर में सभी मंचों पर ‘बकरा’ परिवार की ‘शेर’ परिवार के हाथों हार को सहन करता आया है।
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