जैसे-जैसे चुनाव पास आ रहे हैं लोगों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के प्रति आक्रोश भी बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। लोकसभा चुनावों से ठीक छ माह पहले किसानों का इस तरह सड़क पर उतरना किसी भी लिहाज से सरकार के लिए अच्छे संकेत नहीं है। इस राजनीतिक स्तर के साथ खुफिया स्तर पर भी उनकी असफलता ही कहा जाएगा।
हर बार सरकार आंदोलन को पढ़ने में चूक जाती है और मामले बढ़ने पर किसी तरह उसे संभाल लिया जाता है। सरकार भले आंदोलनकारियों को आश्वासन देकर घर भेजने में सफल रही हो पर अंदर ही अंदर उनका गुस्सा बढ़ ही रहा है।
लोकसभा चुनाव से पहले मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी चुनाव होने हैं। इन राज्यों में भी भाजपा की सरकारों को कई आंदोलनों का सामना करना पड़ा है। मध्यप्रदेश के सपाक्स आंदोलन ने तो शिवराज सरकार का हाल बेहाल कर दिया है। राजस्थान में भी मुख्यमंत्री वसुंधरा के प्रति नाराजगी साफ दिखाई दे रही है।
दिल्ली सीमा के बाहर डटे किसानों पर पुलिस द्वारा पानी की बौछार, आंसूगैस के गोले छोड़ने संबंधी घटना ने सरकार की मुश्किलें और बढ़ा दी है। हालांकि बाद में बातचीत में सरकार ने किसानों की सात मांगें मान ली। अब किसान भले ही घर लौट जाए पर सवाल यह उठता है कि वह क्या आगामी चुनाव में प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी पर दोबारा भरोसा करेंगे?
किसानों को जिस तरह दिल्ली से बाहर रोक दिया गया, उसने भी किसानों की नाराजगी को बढ़ाया ही है। किसान यह सवाल भी पूछ रहे थे कि उन्हें दिल्ली में क्यों नहीं जाने दिया जा रहा है? हमारी बात क्यों नहीं सुनी जा रही है? क्या हमें अपनी बात कहने के लिए पाकिस्तान और बांग्लादेश जाना होगा?
2 अक्टूबर को गांधी जंयती और लालबहादुर शास्त्री की जयंती पर किसानों और जवानों की भिड़ंत ने सभी को खासा निराश किया। महात्मा गांधी ने देश को अहिंसा का पाठ पढ़ाया था। लालबहादुर शास्त्री ने भी जय जवान, जय किसान का नारा दिया था। बापू और शास्त्री की जयंती पर इस स्थिति का निर्मित होना बेहद शर्मनाक है।
आम लोग भी इस बात से परेशान हैं कि किसान बार-बार क्यों आंदोलन कर रहे हैं। वह भी तब जब मोदी सरकार ने किसानों के हित में कई बड़ी घोषणाएं की है। मोदी राज में अगर सब कुछ अच्छा है तो आखिर किसानों की नाराजगी का कारण क्या है?