मोहम्मद रफी का जन्म 24 दिसंबर 1924 को पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह गांव में हुआ और 31 जुलाई 1980 को उनका निधन हो गया। इस शख्सियत की पुण्यतिथी पर आइए जानते हैं उनके बारे खास 10 बातें।
1. मोहम्मद रफी कभी भी संगीतकार से ये नहीं पूछते थे कि उन्हें गीत गाने के लिए कितना पैसा मिलेगा। वह सिर्फ आकर गीत गा दिया करते थे और कभी-कभी तो 1 रुपये को लेकर भी गीत उन्होंने गाया है।
2. लता मंगेशकर रफी साहब के बारे कहती हैं, 'सरल मन के इंसान रफी साहब बहुत सुरीले थे। ये मेरी खुस्किस्मती है कि मैंने उनके साथ सबसे ज्यादा गाने गाए।
3. मोहम्मद रफी का आखिरी गीत फिल्म 'आसपास' के लिए था, जो उन्होंने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के लिए अपने निधन से ठीक दो दिन पहले रिकॉर्ड किया था, गीत के बोल थे 'शाम फिर क्यों उदास है दोस्त'
4. मोहम्मद रफी ने किशोर कुमार की फिल्मों के लिए भी गीत गाये हैं जिनमें फिल्म 'बड़े सरकार', 'रागिनी' और कई फिल्में शामिल थीं। रफी ने किशोर कुमार के लिए करीब 11 गाने गाए।
5. फिल्म 'नील कमल' का गाना 'बाबुल की दुआएं लेती जा' को गाते वक्त बार-बार रफी की आंखों में आंसू आ जाते थे और उसके पीछे कारण था कि इस गाने को गाने के ठीक एक दिन पहले उनकी बेटी की सगाई हुई थी इसलिए वो काफी भावुक थे। इस गीत के लिए उन्हें 'नेशनल अवॉर्ड' मिला।
6. हिन्दी सिनेमा के शुरुआती दौर में रफी को कोई नहीं जानता था लेकिन जब नौशाद ने फिल्म 'बैजू बावरा' के लिए रफी को मौका दिया तो उन्होंने कहा था की 'इस फिल्म के साथ ही, तुम सबकी जुबां पर छा जाओगे' और वही हुआ।
7. 1976 में फिल्म 'लैला मजनू' बन रही थी, तो ऋषि कपूर चाहते थे की सिर्फ किशोर कुमार ही उनके लिए गीत गाएं, जबकि संगीतकार मदन मोहन ने कहा की इस फिल्म में तो मोहम्मद रफी ही गाना गाएंगे नहीं तो हम फिल्म नहीं करेंगे। मोहम्मद रफी ने ही गीत गाए और वो इतने सराहे गए की फिर फिल्मों ऋषि कपूर की आवाज रफी साहब ही बन गए।
8. जिस दिन मोहम्मद रफी निधन हुआ उस दिन मुंबई में जोरों की बारिश हो रही थी और फिर भी अंतिम यात्रा के लिए कम से कम 10,000 लोग सड़कों पर थे और उस दिन मशहूर एक्टर मनोज कुमार ने कहा, 'सुरों की मां सरस्वती भी अपने आंसू बहा रही हैं आज'!
9. रफी को घंटों गीत गाने के बाद अपनी छत पर पतंग उड़ाने का बड़ा शौक था और जब उनकी पतंग कभी कट जाती थी तो छोटे बच्चे कि तरह मचल जाते थे।
10. 6 फिल्मफेयर और 1 नेशनल अवार्ड रफी के नाम हैं। उन्हें भारत सरकार की तरफ से 'पद्मश्री' सम्मान से भी सम्मानित किया गया था। रफी साहब ने भारतीय भाषाओं जैसे असामी, कोंकणी, पंजाबी, उड़िया, मराठी, बंगाली, भोजपुरी के साथ-साथ उन्होंने पारसी, डच, स्पेनिश और इंग्लिश में भी गीत गाए थे।