40000 से अधिक तमिल ब्राह्मण युवकों को नहीं मिल रहा जीवनसाथी
30-40 आयु वर्ग के 40,000 से अधिक तमिल ब्राह्मण पुरुष शादी नहीं कर सके क्योंकि वे तमिलनाडु के भीतर अपने लिए दुल्हन नहीं ढूंढ पा रहे हैं। अनुमानित आंकड़ा बताते हुए उन्होंने कहा कि अगर तमिलनाडु में विवाह योग्य आयु वर्ग में 10 ब्राह्मण लड़के हैं, तो इस आ
चेन्नई। तमिलनाडु के 40 हजार से अधिक युवा तमिल ब्राह्मणों को राज्य के भीतर दुल्हन ढूंढना मुश्किल हो रहा है। अब तमिलनाडु स्थित ब्राह्मण संघ ने उत्तर प्रदेश और बिहार में समुदाय से संबंधित उपयुक्त जोड़े की तलाश के लिए विशेष अभियान शुरू किया है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में जेंडर रेशो की स्थिति 1000 पुरुषों पर 996 है। इसे बुरी स्थिति नहीं कहा जा सकता। वहीं, ब्राह्मणों में यह अनुपात 10 पर 6 है।
थमिजनाडु ब्राह्मण एसोसिएशन (थंब्रास) के अध्यक्ष एन. नारायणन ने एसोसिएशन की मासिक तमिल पत्रिका के नवंबर अंक में प्रकाशित एक खुले पत्र में कहा, हमने अपने संगम की ओर से एक विशेष आंदोलन शुरू किया है।
मोटे अनुमानों का हवाला देते हुए नारायणन ने कहा कि 30-40 आयु वर्ग के 40,000 से अधिक तमिल ब्राह्मण पुरुष शादी नहीं कर सके क्योंकि वे तमिलनाडु के भीतर अपने लिए दुल्हन नहीं ढूंढ पा रहे हैं। अनुमानित आंकड़ा बताते हुए उन्होंने कहा कि अगर तमिलनाडु में विवाह योग्य आयु वर्ग में 10 ब्राह्मण लड़के हैं, तो इस आयु वर्ग में केवल 6 लड़कियां उपलब्ध हैं।
एसोसिएशन प्रमुख ने अपने पत्र में कहा कि इस पहल को आगे बढ़ाने के लिए दिल्ली, लखनऊ और पटना में समन्वयकों की नियुक्ति की जाएगी। नारायणन ने कहा कि हिंदी में पढ़ने, लिखने और बोलने में सक्षम व्यक्ति को यहां एसोसिएशन के मुख्यालय में समन्वय की भूमिका निभाने के लिए नियुक्त किया जाएगा।
अब उत्तर भारत में ढूंढी जा रही हैं लड़कियां : थंब्रास प्रमुख ने बताया कि वह लखनऊ और पटना के लोगों के संपर्क में हैं और इस पहल को अमल में लाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि मैंने इस संबंध में काम शुरू कर दिया है।
कई ब्राह्मण लोगों ने इस कदम का स्वागत किया, वहीं समुदाय के भीतर से अलग विचार भी सामने आए। शिक्षाविद एम. परमेश्वरन ने कहा कि विवाह योग्य आयु वर्ग में पर्याप्त संख्या में तमिल ब्राह्मण कन्याएं उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि लड़कों को दुल्हन नहीं मिल पाने का यही एकमात्र कारण नहीं है। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि भावी दूल्हों के माता-पिता शादियों में धूमधाम और दिखावे की उम्मीद क्यों करते हैं।
सादगी का उपदेश : परमेश्वरन ने कहा कि महापेरियाव ने जीवन के हर क्षेत्र में सादगी का उपदेश दिया और लोगों को रेशमी कपड़े का इस्तेमाल नहीं करने की सलाह दी। महापेरियाव, महास्वामी और परमाचार्य स्वर्गीय शंकराचार्य, श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती (1894-1994), कांची कामकोटि पीठम के 68वें पुजारी थे। इस मठ को शंकर मठ के नाम से भी जाना जाता है।
परमेश्वरन ने कहा कि लड़की के परिवार को शादी का पूरा खर्च उठाना पड़ता है और यह तमिल ब्राह्मण समुदाय का अभिशाप है। उन्होंने कहा कि आभूषण, मैरिज हॉल का किराया, भोजन और उपहारों पर खर्च इन दिनों आसानी से कम से कम 12-15 लाख रुपए हो जाएगा।
अच्छे लोग त्यागें अहंकार : उन्होंने कहा कि मैं व्यक्तिगत रूप से ऐसे गरीब ब्राह्मण परिवारों को जानता हूं जो अपनी बेटियों की शादी के लिए धन जुटाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अगर अच्छे लोग अपने अहंकार को त्यागने के लिए तैयार हैं, तो वे तमिलनाडु में दुल्हन ढूंढ सकते हैं। तभी वे हमारे ऋषियों और शास्त्रों द्वारा प्रतिपादित धर्म का अनुयायी होने का दावा कर सकते हैं।
परमेश्वरन ने कहा कि समाधान प्रगतिशील होने में है और विवाह समारोह समय के साथ बिल्कुल सरल होना चाहिए। परमेश्वरन ने देश के दक्षिणी और पश्चिमी हिस्सों में शैक्षणिक संस्थानों में काम किया है।
उत्तर भारतीय और तमिल ब्राह्मणों के बीच विवाह : दुल्हन की तलाश कर रहे एक युवक अजय ने कहा कि अब तमिल-तेलुगू ब्राह्मण विवाह या कन्नड़ भाषी माधवों और तमिल भाषी स्मार्तों के बीच शादियों को देखना असामान्य नहीं है। कई दशक पहले ऐसा कुछ अकल्पनीय था। पहले भी हमने उत्तर भारतीय और तमिल ब्राह्मणों के बीच परिवार की रजामंदी से विवाह होते देखा है।
मध्व ब्राह्मण एक वैष्णव संप्रदाय है और श्री माधवाचार्य के अनुयायी हैं। तमिलनाडु में अय्यर के रूप में भी मशहूर स्मार्त सभी देवताओं की पूजा स्वीकार करते हैं और श्री आदि शंकर के अनुयायी हैं।
नाम न जाहिर करने की शर्त पर एक वैष्णव तमिल ब्राह्मण ने कहा कि कुछ वर्ष पहले तक अयंगर समुदाय में थेंकलाई और वडकलाई संप्रदायों के बीच विवाह भी असंभव था, लेकिन आज यह हो रहा है और एसोसिएशन के इस कदम का स्वागत है। (भाषा)