दरअसल, बिहार सरकार 50 फीसदी आरक्षण को बढ़ाकर 65 प्रतिशत करना चाहती थी, लेकिन पटना उच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी थी। बाद में राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई जाए।
क्या कहा शीर्ष अदालत ने : हालांकि, प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने पटना उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ बिहार सरकार की ओर से दायर 10 याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए सहमति जताई। शीर्ष अदालत, जिसने याचिकाओं पर नोटिस भी जारी नहीं किया, ने अपील की इजाजत दे दी और कहा कि याचिकाओं पर सितंबर में सुनवाई की जाएगी।
राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने पीठ से उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने का आग्रह किया। दीवान ने छत्तीसगढ़ के ऐसे ही एक मामले का जिक्र किया और कहा कि शीर्ष अदालत ने उस मामले में उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि हम मामले को सूचीबद्ध करेंगे, लेकिन हम (उच्च न्यायालय के फैसले पर) कोई रोक नहीं लगाएंगे।
उच्च न्यायालय ने 20 जून के अपने फैसले में कहा था कि पिछले साल नवंबर में बिहार की द्विसदनीय विधायिका द्वारा सर्वसम्मति से पारित किए गए संशोधन संविधान में प्रदत्त 'अधिकार से परे', 'कानून की दृष्टि से त्रुटिपूर्ण' और 'समानता के अधिकार का उल्लंघन' है।
नवंबर 2023 में पारित हुआ था कानून : बिहार सरकार ने 9 नवंबर 2023 को एक कानून पारित किया था कि सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण 65 फीसदी होगा। राज्य सरकार ने यह निर्णय पिछले साल हुई जातीय जनगणना के बाद लिया था। इसके तहत ओबीसी, अति पिछड़ा वर्ग, दलित और आदिवासियों को आरक्षण का फायदा मिलना था।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala