One country one election : केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा बुधवार को स्वीकार की गई समिति की रिपोर्ट के अनुसार एक देश, एक चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति ने 62 राजनीतिक दलों से संपर्क किया था जिनमें से 47 ने जवाब दिया। इनमें से 32 ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया और 15 ने इसका विरोध किया।
अपनी एक देश, एक चुनाव योजना पर आगे बढ़ते हुए सरकार ने बुधवार को देशव्यापी आम सहमति बनाने की कवायद के बाद चरणबद्ध तरीके से लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि पंद्रह राजनीतिक दलों ने कोई जवाब नहीं दिया। राष्ट्रीय दलों में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने प्रस्ताव का विरोध किया जबकि भारतीय जनता पार्टी और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने इसका समर्थन किया।
रिपोर्ट में कहा गया है, 47 राजनीतिक दलों से प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं। पंद्रह राजनीतिक दलों को छोड़कर शेष 32 राजनीतिक दलों ने न केवल एक साथ चुनाव की प्रणाली का समर्थन किया, बल्कि सीमित संसाधनों को बचाने, सामाजिक सद्भाव की रक्षा करने और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए इसे अपनाने की वकालत भी की।
इसमें कहा गया है, एक साथ चुनाव का विरोध करने वालों ने आशंका जताई थी कि इसे अपनाने से संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन हो सकता है, यह लोकतंत्र और संघीय व्यवस्था विरोधी हो सकता है, इससे क्षेत्रीय दलों को हाशिए पर डाला जा सकता है और राष्ट्रीय दलों के प्रभुत्व को बढ़ावा मिल सकता है।
मार्च में समिति द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी गई रिपोर्ट के अनुसार, आप, कांग्रेस और माकपा ने इस प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह लोकतंत्र और संविधान के मूल ढांचे को कमजोर करता है। बसपा ने इसका स्पष्ट रूप से विरोध नहीं किया, लेकिन देश के बड़े क्षेत्रीय विस्तार और जनसंख्या के संबंध में चिंताओं को उजागर किया, जिससे इसका कार्यान्वयन चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
समाजवादी पार्टी (सपा) ने कहा कि यदि एक साथ चुनाव कराए जाते हैं तो जहां तक चुनावी रणनीति और खर्च का सवाल है तो राज्य स्तरीय पार्टियां राष्ट्रीय पार्टियों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगी, जिससे इन दोनों दलों के बीच मतभेद बढ़ जाएगा। राज्य की पार्टियों में एआईयूडीएफ, तृणमूल कांग्रेस, एआईएमआईएम, भाकपा, द्रमुक, नगा पीपुल्स फ्रंट और सपा ने प्रस्ताव का विरोध किया।
अन्नाद्रमुक, ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन, अपना दल (सोनेलाल), असम गण परिषद, बीजू जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी (आर), मिजो नेशनल फ्रंट, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी, शिवसेना, जनता दल (यूनाइटेड), सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, शिरोमणि अकाली दल और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल ने प्रस्ताव का समर्थन किया।
भारत राष्ट्र समिति, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस, जनता दल (सेक्युलर), झारखंड मुक्ति मोर्चा, केरल कांग्रेस (एम), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट, तेलुगु देशम पार्टी और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी समेत अन्य दलों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
अन्य दलों में भाकपा (एमएल) लिबरेशन और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया ने इसका विरोध किया। राष्ट्रीय लोक जनता दल, भारतीय समाज पार्टी, गोरखा नेशनल लिबरल फ्रंट, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा, राष्ट्रीय लोक जन शक्ति पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार) इसका विरोध करने वालों में शामिल थे। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour